मुझे आशा है कि मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास आऊँगा, किन्तु यह पत्र इसलिए लिख रहा हूँ कि मेरे आने में देर हुई, तो भी तुम यह जान जाओ कि ईश्वर के घर में लोगों का आचरण कैसा होना चाहिए। ईश्वर का घर जीवन्त ईश्वर की कलीसिया है, जो सत्य का स्तम्भ और मूलाधार है। धर्म का यह रहस्य निस्सन्देह महान् है - मसीह मनुष्य के रूप में प्रकट हुए, आत्मा के द्वारा सत्य प्रमाणित हुए, स्वर्गदूतों को दिखाई पड़े, गैरयहूदियों में प्रचारित हुए, संसार भर में उन पर विश्वास किया गया और वह महिमा में आरोहित कर लिये गये ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु के कार्य महान् हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)
1. धर्मियों की गोष्ठी और उनकी सभा में मैं सारे हृदय से प्रभु की स्तुति करूँगा। प्रभु के कार्य महान् हैं, भक्त जन उनका मनन करें
2. उनके कार्य प्रतापी और ऐश्वर्यमय हैं। उसका न्याय युग-युगों तक बना रहता है। प्रभु के कार्य स्मरणीय हैं। प्रभु दयालु और प्रेममय है।
3. वह अपने भक्तों को तृप्त करता और अपने विधान का सदा स्मरण करता है। उसने अपनी प्रजा को राष्ट्रों की भूमि दिला कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया ।
अल्लेलूया ! हे प्रभु ! आपकी शिक्षा आत्मा और जीवन है। आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश है। अल्लेलूया !
प्रभु ने कहा, "मैं इस पीढ़ी के लोगों की तुलना किस से करूँ? वे किसके सदृश हैं? वे बाजार में बैठे हुए छोकरों के सदृश हैं, जो एक दूसरे को पुकार कर कहते हैं : हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजायी और तुम नहीं नाचे, हमने विलाप किया और तुम नहीं रोये : क्योंकि योहन बपतिस्ता आया, जो न रोटी खाता और न अंगूरी पीता है और तुम कहते हो – उसे अपदूत लगा है। मानव पुत्र आया, जो खाता-पीता है और तुम कहते हो देखो, यह आदमी पेटू और पियक्कड़ है, नाकेदारों और पापियों का मित्र है। किन्तु ईश्वर की प्रज्ञा उसकी प्रजा द्वारा उचित प्रमाणित हुई है।"
प्रभु का सुसमाचार।