तुम्हारी कम उम्र के कारण कोई तिरस्कार न करे। तुम वचन, कर्म, प्रेम, विश्वास और शुद्धता में विश्वासियों का आदर्श बनो । मेरे आने तक धर्मग्रन्थ का पाठ करने और प्रवचन तथा शिक्षा देने में लगे रहो। उस कृपादान की उपेक्षा मत करो, जो तुम में विद्यमान है और तुम्हें, भविष्यवाणी के अनुसार, पुरोहित-समुदाय के हस्तारोपण के समय प्राप्त हो गया है। इन बातों का ध्यान रखो और इन में पूर्ण रूप से लीन रहो, जिससे सब लोग तुम्हारी उन्नति देख सकें । तुम इन बातों में दृढ़ बने रहो; अपने तथा अपनी शिक्षा के विषय में सावधान रहो। ऐसा करने से तुम अपनी तथा अपने श्रोताओं की मुक्ति का कारण बनोगे ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु के कार्य महान् हैं। (अथवा : अल्लेलूया !)
1. प्रभु के कार्य सच्चे और न्यायपूर्ण हैं। उसके सभी नियम अपरिवर्तनीय हैं। वे युग-युगों तक बने रहेंगे, उनके मूल में न्याय और सत्य है
2. उसने अपनी प्रजा का उद्धार किया और सदा के लिए अपना विधान निर्धारित किया है। उसका नाम पवित्र और पूज्य है
3. प्रज्ञा प्रभु-भक्ति से प्रारंभ होती है। प्रभु-भक्त अपनी बुद्धिमानी का प्रमाण देते हैं। प्रभु की स्तुति युगानुयुग होती रहेगी ।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो ! तुम सब के सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।" अल्लेलूया !
किसी फरीसी ने येसु को अपने यहाँ भोजन करने का निमंत्रण दिया। वह उस फरीसी के घर आ कर भोजन करने बैठे । नगर की एक पापिनी स्त्री यह जान गयी कि येसु फरीसी के यहाँ भोजन कर रहे हैं। वह संगमरमर के पात्र में इत्र ले कर आयी और रोती हुई येसु के चरणों के पास खड़ी हो गयी। उसके आँसू उनके चरण भिगोने लगे, इसलिए उसने उन्हें केशों से पोंछ लिया और उनके चरणों को चूम-चूम कर उन पर इत्र लगाया। वह फरीसी, जिसने येसु को निमंत्रण दिया था, यह देख कर मन-ही-मन कहने लगा, "यदि यह आदमी नबी होता, तो जरूर जान जाता कि जो स्त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है वह तो पापिनी है।" परन्तु येसु ने उस से कहा, "सिमोन, मुझे तुम से कुछ कहना है।" उसने उत्तर दिया, "गुरुवर ! कहिए।" "किसी महाजन के दो कर्जदार थे। एक पाँच सौ दीनार का ऋणी था और दूसरा, पचास का। उनके पास कर्ज अदा करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए महाजन ने दोनों को माफ कर दिया। उन दोनों में से कौन उसे अधिक प्यार करेगा?" सिमोन ने उत्तर दिया, "मेरी समझ में तो वही, जिसका अधिक ऋण माफ हुआ।" येसु ने उससे कहा, "तुम्हारा निर्णय सही है।" तब उन्होंने उस स्त्री की ओर मुड़ कर सिमोन से कहा, "इस स्त्री को देखते हो? मैं तुम्हारे घर आया, तुमने मुझे पैरों के लिए पानी नहीं दिया; पर इसने मेरे पैर अपने आँसुओं से धोये और अपने केशों से पोछे । तुमने मेरा चुम्बन नहीं किया, परन्तु यह, जब से भीतर आयी है, मेरे पैर चुमती रही है। तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, इसके बहुत-से पाप क्षमा हो गये हैं, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है। पर जिसे कम क्षमा किया गया, वह कम प्यार दिखाता है।" तब येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं।" साथ भोजन करने वाले मन-ही-मन कहने लगे, "यह कौन है, जो पापों को भी क्षमा करता है?" पर येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है। शांति ग्रहण कर जाओ ।"
प्रभु का सुसमाचार।
आज प्रभु येसु हमें एक बहुत ही गहरी शिक्षा देते हैं। जब वे सिमोन नामक फरीसी के घर भोजन करने गए, तो एक पापिनी स्त्री उनके पास आई। उसने आँसुओं से उनके पाँव भिगोए, उन्हें अपने बालों से पोंछा, चूमा और सुगंधित तेल लगाया। सिमोन ने मन ही मन उसे तुच्छ समझा, लेकिन प्रभु येसु ने स्पष्ट कर दिया कि इस स्त्री का गहरा प्रेम और पश्चात्ताप ही उसे क्षमा और शांति दिलाता है। यह घटना हमें दिखाती है कि ईश्वर के सामने हमारी योग्यता या प्रतिष्ठा मायने नहीं रखती, बल्कि विनम्रता और सच्चा पश्चात्ताप ही हमें उनका अनुग्रह दिलाता है। आज का सुसमाचार हमें यह याद दिलाता है कि हम सबको क्षमा की आवश्यकता है। जो अधिक क्षमा पाता है, वह अधिक प्रेम भी करता है। प्रभु येसु हमें आमंत्रित करते हैं कि हम अपने जीवन को गर्व और दिखावे से नहीं, बल्कि नम्रता और पश्चात्ताप से भरें। क्या मैं अपने पापों को पहचानकर येसु के पास सच्चे मन से लौटता हूँ? क्या मैं दूसरों को क्षमा कर पाता हूँ, जैसे येसु मुझे क्षमा करते हैं? क्या मेरे जीवन में प्रेम मेरे पश्चात्ताप की सच्ची गवाही है? आइए, हम यह कृपा माँगें कि हम उस स्त्री की तरह सच्चे पश्चात्ताप और प्रेम से येसु के चरणों पर झुकें, और उनकी क्षमा और शांति का अनुभव करें।
✍ - फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट
Today Jesus gives us a very profound teaching. When He went to dine at the house of Simon the Pharisee, a sinful woman came to Him. She washed His feet with her tears, wiped them with her hair, kissed them, and anointed them with perfume. Simon silently despised her in his heart, but Jesus made it clear that her deep love and repentance brought her forgiveness and peace. This event shows us that before God, our status or reputation does not matter; rather, it is humility and true repentance that draw His grace upon us. Today’s Gospel reminds us that we all stand in need of forgiveness. The one who has been forgiven more, loves more. Jesus invites us to fill our lives not with pride and self-righteousness, but with humility and repentance. Do I recognize my sins and return to Jesus with a sincere heart? Do I forgive others as Jesus forgives me? Is love in my life a true testimony of my repentance? Let us ask for the grace that, like the woman in the Gospel, we may bow at the feet of Jesus with true repentance and love, and experience His forgiveness and peace.
✍ -Fr. George Mary Claret
जब हम पाप करते है तो हम न केवल अपने लिए दुख लाते है परंतु हम तीन रिश्तों में दरार भी ले आते है। वह है स्वयं और ईश्वर के बीच में रिश्ता, स्वयं और दूसरे व्यक्ति के बीच में रिश्ता और अपने स्वयं के बीच में रिश्ता। एक बार यह रिश्ते में दरार आ जाये ंतो यह इतने आसानी से नहीं जुड़ता। यह तभी जुड़ सकता है जब हमारे पापों को क्षमा मिल जाये।
पापों को क्षमा करने का अधिकार येसु के पास है जिसे वे अर्ध्दांगरोगी की घटना में स्पष्ट भी करते है, ‘‘किन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है - तब वे अर्ध्दांगरोगी से बोले - ‘उठो और अपनी खाट उठा कर घर जाओ’।’’ (मत्ती 9ः6)।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु एक पापिनी स्त्री के पापों को क्षमा करते है जो अपने ऑंसू से येसु के चरणों को भिंगोती है और अपने केशों से पोंछने के बाद उनके चरणों को चूमकर और उन पर इत्र लगाती है। उसका इस प्रकार का व्यवहार अपने पापों के प्रति पश्च्ताप को दर्शाता है। एक सच्चा पश्चाताप हमारे जीवन में परिवर्तन ला सकता है। सबसे पहले तो हमें प्रभु येसु की क्षमा प्राप्त होती है और हमारे तीनों रिश्तों को जोड़ती है जिससे हमारे अंदर खोया हुआ आनंद और शांति फिर से लौट आता है। हम जब कभी भी येसु के पास जाये एक पश्चातापी हृदय लेकर येसु के पास जायें जिससे हम उसके क्षमा और आशिषांे को अपने जीवन में ग्रहण कर सकें।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाWhen we sin then we not only bring sorrows to ourselves but also bring the breakage in three relationships; and that is relationship between oneself and God, relationship between oneself and others and relationship between oneself. Once the breakage comes in this relationship it is not easy to restore it. It can be restored only when we receive forgiveness or absolution for our sins.
Jesus has the authority to forgive sins which he makes it clear in the incident of paralyzed man where Jesus says, “But I want you to know that the Son of Man has authority on earth to forgive sins. So he said to the paralyzed man, ‘Get up, take your mat and go home.’”
In today’s gospel Jesus forgives the sins of a woman who bathe his feet with her tears and drying them with her hair continued kissing his feet and anointed them with the ointment. This kind of behavior of hers demonstrates the true repentance for her sins. A true repentance can bring change in our lives. First thing what we receive is forgiveness from Jesus which restores the three relationships which brings back the lost inner peace and joy back to us. Whenever we go to Jesus we must always go with a repentant heart so that we can receive forgiveness and graces in our lives.
✍ -Fr. Dennis Tigga