इन बातों की शिक्षा और उपदेश दिया करो। यदि कोई भिन्न शिक्षा देता है और हमारे प्रभु येसु मसीह के हितकारी उपदेशों में और भक्ति-सम्मत शिक्षा में विश्वास नहीं करता, तो मैं समझता हूँ कि घमण्ड ने उसे अन्धा बना दिया है, वह कुछ भी नहीं समझता और उसे वाद-विवाद तथा निरर्थक शास्त्रार्थ करने का रोग हो गया है। इस प्रकार के विवादों से ईर्ष्या, फूट, परनिन्दा, दूसरों पर कुत्सित संदेह और निरन्तर झगड़े उत्पन्न होते हैं - यह सब ऐसे लोगों के योग्य है, जिनका मन विकृत और सत्य से वंचित हो गया है और जो यह समझते हैं कि भक्ति से लाभ मिलना चाहिए। भक्ति से तो बड़ा लाभ होता है, किन्तु केवल उसी को जो अपनी धन-सम्पत्ति से सन्तुष्ट रहता है। हम न तो इस संसार में कुछ अपने साथ ले आये और न यहाँ से कुछ साथ ले जा सकते हैं। यदि हमारे पास भोजन-वस्त्र है, तो हमें इस से सन्तुष्ट रहना चाहिए। जो लोग धन बटोरना चाहते हैं, वे प्रलोभन और फन्दे में पड़ जाते हैं और ऐसी मूर्खतापूर्ण तथा हानिकारक वासनाओं के शिकार बनते हैं, जो मनुष्यों को पतन और विनाश के गर्त्त में ढकेल देती हैं। क्योंकि धन का लालच सभी बुराइयों की जड़ है। इसी लालच में पड़ कर कई लोग विश्वास के मार्ग से भटक गये और उन्होंने बहुत-सी यन्त्रणाओं द्वारा अपने को छलनी कर दिया। तुम, ईश्वर के सेवक होने के नाते, उन सब बातों से अलग रह कर, धार्मिकता, भक्ति, विश्वास, प्रेम, धैर्य तथा विनम्रता की साधना करो । विश्वास के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहो और उस अनन्त जीवन पर अधिकार प्राप्त करो, जिसके लिए तुम बुलाये गये हो और जिसके विषय में तुमने बहुत-से लोगों के सामने अपने विश्वास का उत्तम साक्ष्य दिया है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं- स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
1. मैं संकट के समय चिन्ता क्यों करूँ? मैं अपने शत्रुओं से क्यों डरूँ? वे तो अपने धन पर भरोसा रखते और वैभव पर गौरव करते हैं
2. किन्तु कोई भी अपने को छुड़ा नहीं सकता अथवा अपने जीवन का दाम ईश्वर को चुका सकता है। कोई भी अपने प्राणों का मूल्य दे नहीं सकता अथवा पृथ्वी पर चिरस्थायी जीवन खरीद सकता है। कोई भी मृत्यु से नहीं बच सकता है।
3. इसलिए इसकी चिन्ता मत करो कि धनी का वैभव बढ़ता जा रहा है। मरने के बाद वह अपने साथ कुछ भी नहीं ले जायेगा, उसका वैभव उसका साथ नहीं देगा
4. वह अपने जीवन में अपने को धन्य समझता और अपना भाग्य सराहता रहा, किन्तु वह अपने पूर्वजों के पास जायेगा और फिर कभी दिन का प्रकाश नहीं देख पायेगा ।
अल्लेलूया ! हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। अल्लेलूया !
येसु नगर-नगर और गाँव-गाँव घूम कर उपदेश देते और ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते रहे। बारह प्रेरित उनके साथ थे और कुछ नारियाँ भी, जो दुष्ट आत्माओं और रोगों से मुक्त की गयी थीं मरियम, जिसका उपनाम मगदलेना था और जिस से सात अपदूत निकले थे; हेरोद के कारिन्दा खूसा की पत्नी योहन्ना; सुसन्ना और अनेक अन्य नारियाँ भी, जो अपनी सम्पत्ति से येसु और उनके शिष्यों का सेवा-सत्कार करती थीं।
प्रभु का सुसमाचार।
आज का वचन हमें याद दिलाता है कि ख्रीस्तीय शिष्यत्व केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि संघर्ष और समर्पण का मार्ग है। पहले पाठ में संत पौलुस तिमथी से कहते हैं – “विश्वास के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहो और उस अनन्त जीवन पर अधिकार प्राप्त करो, जिसके लिए तुम बुलाये गये हो और जिसके विषय में तुमने बहुत से लोगों के सामने अपने विश्वास का उत्तम साक्ष्य दिया।” (1 तिमथी 6:12)। इसका अर्थ है कि विश्वास केवल सुनने या मानने की चीज़ नहीं है, बल्कि उसे जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। पाप, प्रलोभन और सांसारिक इच्छाओं से लड़ना ही विश्वास की सच्ची लड़ाई है। भजन हमें चेतावनी देता है कि धन, शक्ति और मानव गौरव पर भरोसा न करें। ये सब अस्थायी हैं और मृत्यु के समय कुछ भी साथ नहीं जाएगा। सच्ची संपत्ति केवल ईश्वर में है और सच्ची विरासत केवल अनन्त जीवन है। सुसमाचार में हम देखते हैं कि कई पवित्र स्त्रियाँ – मरियम मगदलेना, योहन्ना, सुसन्ना और अन्य – प्रभु येसु का अनुसरण करती रहीं और अपने संसाधनों से उनकी सेवा की। इनका जीवन हमें यह सिखाता है कि शिष्यत्व केवल सुनने का नाम नहीं है, बल्कि सेवा और उदारता का जीवन है। आज हम स्वयं से पूछें :- क्या मैं अपने विश्वास के लिए संघर्ष करता हूँ? क्या मेरा भरोसा केवल धन और संसार पर है या मसीह पर? क्या मैं भी इन पवित्र स्त्रियों की तरह अपने समय, योग्यता और संसाधनों को प्रभु और कलीसिया की सेवा में लगाता हूँ? आइए प्रार्थना करें कि प्रभु हमें विश्वास की लड़ाई में स्थिर रहने की कृपा दें, संसारिक वस्तुओं से मुक्त होकर उनकी सेवा करने की शक्ति दें।
✍ - फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट
Today’s Word of God reminds us that Christian discipleship is a journey that requires both struggle and surrender. St. Paul in the first reading encourages Timothy: “Fight the good fight of the faith, take hold of the eternal life to which you were called.” (1 Tim 6:12). Faith is not passive but active. It involves resisting temptations, overcoming worldliness, and standing firm in the truth of Christ. This is a daily battle, but one that leads to eternal reward. The Psalm warns us not to put our trust in riches. Wealth, power, and human glory cannot save us from death. The only true wealth is in God, and the only lasting inheritance is eternal life. In the Gospel, we see something very beautiful: the women who followed Jesus—Mary Magdalene, Joanna, Susanna, and many others—supported Him with their resources. They remind us that discipleship is not only about listening to the Word but also about concrete service and generosity. Their lives teach us that every contribution—big or small—given with love becomes part of God’s saving work. Today we are invited to ask : Am I actively fighting for my faith in the midst of challenges? Do I put my trust in worldly wealth, or in Christ alone? Like the holy women, am I using my time, talents, and resources for the mission of the Church? Let us pray for the grace to remain faithful in this spiritual battle, to live with detachment from riches, and to serve the Lord generously like the women disciples.
✍ -Fr. George Mary Claret
आज का सुसमाचार कुछ महिलाओं के बारे में हमें बताता है जो येसु और उनके शिष्यों के साथ चल कर उनके सुसमाचारीय कार्य में सहयोग प्रदान करती हैं। कलीसिया की सेवकाई में महिलाएँ एक महान भूमिका निभाती हैं। वर्तमान में यह एक सच्चाई है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं धार्मिक और आध्यात्मिक मामलों में अधिक सक्रिय रहती हैं। प्रभु ने उन्हें प्यार करने और सेवा करने दयालु होने की महान क्षमता प्रदान की है। उनका योगदान कलीसिया और उसकी सेवकाई को सजीव बनाने में सराहनीय है। बच्चों और नाती-पोतों में विश्वास का संचार करने में दादी-नानी बड़ी भूमिका निभाती हैं। जीवन के पोषण और रक्षा में उनकी बड़ी भूमिका है। बहुत बार ऐसी भूमिकाओं और सेवाओं को पर्याप्त रूप से पहचाना और सराहा नहीं जाता है। 20 मई, 2023 को, संत पापा फ्रांसिस ने कैथोलिक महिला संगठनों के विश्व संघ को संबोधित करते हुए कहा, “संबंधों को बनाये रखने और दान देने की महिलाओं की क्षमता सराहनीय है। और पुरुषों को पारस्परिकता की समृद्धि को बेहतर ढंग से समझने के लिए महिलाओं से प्रेरणा पाना चाहिए। मानव पहचान के मानवशास्त्रीय तत्वों को पुनः प्राप्त करने के लिए महिलाएं हमारी मदद कर सकती हैं।” आइए हम भी महिलाओं को समाज और कलीसिया में उचित जगह देने का दृढ़संकल्प करें।
✍ - फ़ादर फादर फ्रांसिस स्करिया
Today’s Gospel speaks about some women who accompanied Jesus in his ministry providing him and his disciples out of their resources. Women play a great role in the ministry of the Church. It is a fact that women are more involved in religious and spiritual matters and ministries than men. The Lord has gifted them with great capacity to love and serve, to be compassionate and kind. Their contributions go a long way in vitalising the Church and her ministry. Grandmothers and mothers play a great role in transmitting faith to the children and grandchildren. They have a great role in nourishing and protecting life. Very often such roles and services are not adequately recognised and appreciated. On May 20, 2023, Pope Francis, addressing World Union of Catholic Women’s Organizations said, “There is a need for greater appreciation of women’s capacity for relationship and giving. And men need to better understand the richness of the reciprocity they owe to women, in order to recover those anthropological elements that characterize human identity and, with it, that of woman and her role in the family and society, where she does not cease to be a beating heart.”
✍ -Fr. Francis Scaria
यूं तो प्रभु येसु के चारों ओर उनके शिष्यों और पुरुषों के बारे में अधिकतर सुनने को मिलता है इसका मतलब यह कतई नहीं कि प्रभु येसु की बाते सुनने, उनका अनुसरण करने या उनकी सेवा करने के लिए नारियॉं नहीं थी। आज के सुसमाचार जो कि संत लूकस का सुसमाचार से लिया गया है उसमें कुछ नारियों का वर्णन है जो प्रभु येसु और उनके शिष्यों की सेवा-परिचर्या करती थी जैसे कि मरियम मगदलेना, योहन्ना, सुसन्ना और अन्य नारियॉं।
यह नारियॉं प्रभु के जीवन से प्रभावित थी- कुछ उनके उपदेशों से, कुछ उनके चमत्कारों से तो कुछ प्रभु येसु द्वारा चंगाई पाने से। ये अपना जीवन येसु के लिए समर्पित करते हुये उनके अनुयायी के रूप में उनकी सेवा करती थी। आज का सुसमाचार का पाठ हमें सिखलाता है कि येसु का अनुसरण या सेवा करने के लिए कोई भी आ सकता है। चाहे वह पुरुष हो या महिला, बूढ़ा हो या बच्चा; हर एक को प्रभु का अनुयायी बनने का आमंत्रण मिला है।
✍फादर डेन्नीस तिग्गाUsually very often we hear about disciples and men around Jesus but that does not mean that there were no women to listen to Jesus, to follow him or to serve him. In today’s gospel which is taken from the gospel of Luke there is the description of some women who provided Jesus and his disciples out of their resources like Mary Magdalene, Joanna, Susanna and many others.
These women were influenced by the life of Jesus – some by his sermons, some by his miracles and some by receiving healing. These women surrendered their lives to Jesus and serve him by being his followers. Today’s gospel teaches that to follow and serve Jesus anyone can come; whether one is male or female, old or young, everyone is invited to be his follower.
✍ -Fr. Dennis Tigga