वर्ष का चौबीसवाँ सप्ताह, शनिवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

तिमथी के नाम सन्त पौलुसँ का पहला पत्र 6:13-16

"प्रभु की अभिव्यक्ति के दिन तक अपना धर्म निष्कलंक बनाये रखो।"

ईश्वर के सामने, जो सब को जीवन प्रदान करता है और येसु मसीह के सामने, जिन्होंने पोंतियुस पिलातुस के सम्मुख अपना उत्तम साक्ष्य दिया है, मैं तुम को यह आदेश देता हूँ कि हमारे प्रभु येसु मसीह की अभिव्यक्ति के दिन तक अपना धर्म निष्कलंक तथा निर्दोष बनाये रखो । यह अभिव्यक्ति यथासमय परमधन्य तथा एकमात्र अधीश्वर के द्वारा हो जायेगी। वह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है, जो अमरता का एकमात्र स्रोत है, जो अगम्य ज्योति में निवास करता है, जिसे न तो किसी मनुष्य ने कभी देखा है और न कोई देख सकता है। उसे सम्मान तथा अनन्तकाल तक बना रहने वाला सामर्थ्य । आमेन ।

📖भजन : स्तोत्र 99:2-5

अनुवाक्य : उल्लास के गीत गाते हुए प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ ।

1. हे समस्त पृथ्वी ! प्रभु की स्तुति करो ! आनन्द के साथ प्रभु की सेवा करो ! उल्लास के गीत गाते हुए उसके सामने उपस्थित हो जाओ

2. यह जान लो कि वही ईश्वर है। उसी ने हम को बनाया है हम उसी के हैं। हम उसकी प्रजा, उसके चरागाह की भेड़ें हैं

3. धन्यवाद देते हुए उसके मंदिर में प्रवेश करो, भजन गाते हुए उसके प्रांगण में आ जाओ, उसकी स्तुति करो और उसका नाम धन्य कहो

4. ओह ! ईश्वर कितना भला है ! उसका प्रेम चिरस्थायी है, उसकी सत्यप्रतिज्ञता युगानुयुग बनी रहती है

📒जयघोष

अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से ईश्वर का वचन सुरक्षित रखते हैं और अपने धीरज के कारण फल लाते हैं । अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 8:4-15

"अच्छी भूमि में गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो वचन को सुरक्षित रखते हैं और अपने धीरज के कारण फल लाते हैं।"

एक विशाल जनसमूह एकत्र हो रहा था और नगर-नगर से लोग येसु के पास आ रहे थे। उस समय वह यह दृष्टान्त सुनाने लगे, "कोई बोने वाला बीज बोने निकला । बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे वे पैरों से रौंदे गये और आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया। कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे वे उग कर नमी के अभाव में झुलस गये । कुछ बीज काँटों में गिरे साथ-साथ बढ़ने वाले काँटों ने उन्हें दबा दिया। कुछ बीज अच्छी भूमि में गिरे - वे उग कर सौ-गुना फल लाये ।" इतना कहने के बाद वह पुकार कर बोले, "जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले ।" शिष्यों ने उन से इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा। उन्होंने उन से कहा, "तुम लोगों को ईश्वर के राज्य का भेद जानने का वरदान मिला है। दूसरों को केवल दृष्टान्त मिले, जिससे वे देखते हुए भी नहीं देखें और सुनते हुए भी नहीं समझें।" "दृष्टान्त का अर्थ इस प्रकार है। ईश्वर का वचन बीज़ है। रास्ते के किनारे गिरे हुए बीज वे लोग हैं जिन्होंने सुना है; परन्तु कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करें और मुक्ति प्राप्त कर लें, इसलिए शैतान आ कर उनके हृदय से वचन ले जाता है। चट्टान पर गिरे हुए बीज वे लोग हैं जो वचन सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करते हैं, किन्तु जिन में जड़ नहीं है। वे कुछ ही काल तक विश्वास करते हैं और संकट के समय विचलित हो जाते हैं। काँटों में गिरे हुए बीज वे लोग हैं जिन्होंने सुना है, परन्तु आगे चल कर वे चिन्ता, धनसम्पत्ति और जीवन के भोग-विलास से दब जाते हैं और परिपक्वता तक नहीं पहुँच पाते । अच्छी भूमि में गिरे हुए बीज वे लोग हैं, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से वचन को सुनकर सुरक्षित रखते हैं और अपने धीरज के कारण फल लाते हैं।"

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु हमें बीज बोने वाले की दृष्टान्त कथा सुनाते हैं। वे बताते हैं कि ईश्वर का वचन बीज के समान है। कुछ बीज रास्ते पर गिरते हैं, कुछ पथरीली भूमि पर, कुछ काँटों के बीच और कुछ उपजाऊ भूमि पर। बीज का फल न तो बोने वाले पर, बल्कि उस भूमि पर निर्भर करता है जिस पर वह गिरता है। यह दृष्टान्त हमें अपने हृदय की “भूमि” पर विचार करने के लिए आमंत्रित करता है। क्या मेरा हृदय उस मार्ग की तरह कठोर है जहाँ वचन प्रवेश ही नहीं कर पाता? क्या वह पथरीली भूमि की तरह है जहाँ प्रारम्भिक उत्साह तो है, पर कठिनाई आते ही विश्वास सूख जाता है? क्या वह काँटों के बीच की भूमि है जहाँ चिन्ताएँ, धन और सुख वचन को दबा देते हैं? या फिर मेरा हृदय उपजाऊ भूमि की तरह है, जहाँ वचन फलदायी होकर सौ गुना फल ला सकता है? आज मेरा हृदय किस प्रकार की भूमि है – कठोर, उथला, व्याकुल या फलदायी? क्या मैं ईश्वर के वचन को अपने जीवन में जड़ पकड़ने देता हूँ, भले ही इसके लिए बलिदान करना पड़े? क्या मैं कठिनाईयों में भी निष्ठावान रह सकता हूँ ताकि मेरा जीवन अनन्त फल दे?

- फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट


📚 REFLECTION

Today’s Gospel presents the Parable of the Sower. Jesus reminds us that the Word of God is like a seed. Some fall on the path, some on rocky ground, some among thorns, and some on good soil. The fruitfulness of the seed depends not on the sower, but on the soil where it falls. This parable invites us to look at the “soil” of our own hearts. Is my heart hard like the path, where the Word cannot penetrate? Is it shallow like rocky ground, where initial enthusiasm fades in trials? Is it distracted like thorny soil, where worries, riches, and pleasures choke the Word? Or is it rich and open like good soil, ready to bear fruit a hundredfold? What kind of soil is my heart today? Hard, shallow, distracted, or fruitful? Am I willing to let the Word of God take root in my life, even when it demands sacrifice? Can I remain faithful in trials so that my life bears lasting fruit?

-Fr. George Mary Claret


📚 मनन-चिंतन - 2

येसु ने दृष्टांतों में बात की। जबकि योहन के सुसमाचार में कोई दृष्टान्त नहीं है, कुछ दृष्टान्त तीनों समदर्शी सुसमाचारों में पाए जाते हैं। कुछ दृष्टांत किसी एक सुसमाचार में पाये जाते हैं। अधिकांश दृष्टांतों में केवल एक विषय जुड़ा होता है, स्पष्टीकरण नहीं। फिर भी कुछ दृष्टांतों के मामले में, हम स्वयं येसु को स्पष्टीकरण देते हुए पाते हैं। ऐसा ही एक दृष्टांत आज के सुसमाचार में प्रस्तुत किया गया है। इस दृष्टांत को पारंपरिक रूप से बोने वाले के दृष्टांत के रूप में जाना जाता है। लेकिन विरोधाभास यह है कि बोने वाले के बारे में हमें इस दृष्टान्त में कोई विवरण नहीं मिलता। वह बीजों को इधर-उधर फेंकने में लापरवाह प्रतीत होता है। जब हम समझते हैं कि बीज ईश्वर का वचन है, तो हम महसूस करते हैं कि येसु हमें बताना चाहते है कि ईश्वर का वचन हर किसी के लिए सुलभ है, चाहे कोई कितना भी इच्छुक या दुष्ट हो। इस दृष्टान्त में चार प्रकार की ज़मीन की बात होती है – रास्ते के किनारे की ज़मीन, पथरीली ज़मीन, कांटों वाली जमीन और अच्छी ज़मीन। ये विभिन्न प्रकार के लोगों को संदर्भित करते हैं जो ईश्वर के वचन को सुनते हैं। अच्छी भूमि उन लोगों को संदर्भित करती है जिनके पास ईश्वर के वचन को सुनने, स्वीकार करने और पोषण करने का सबसे अच्छा स्वभाव है। अन्य लोग, या तो अपनी स्वयं की तैयारी की कमी के कारण या उन परिस्थितियों के कारण जहां वे स्वयं को पाते हैं, अधिक फल या कोई फल उत्पन्न करने में असमर्थ होते हैं। प्रभु चाहते हैं कि हम ईश्वर के वचन को ग्रहण करने के लिए स्वयं को तैयार करें और अपने जीवन में समृद्ध फल लाएं।

- फ़ादर फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus spoke in parables. We have many parables in the Bible. While the Gospel of John does not contain any parable, some parables are found in all three synoptics. Some parables are specific to one or other single evangelist. Most of the parables have only a theme attached to them, not an explanation. Yet, in the case of some parables, we find Jesus himself giving us an explanation. One such parable is presented in today’s Gospel. This parable is traditionally referred to as the parable of the Sower. But regarding the Sower himself, we cannot find any description. He seems to be careless in throwing the seeds everywhere. When we understand that the seed is the Word of God, we realise that Jesus wants to tell us that the Word of God is accessible to everyone no matter how disposed or ill-disposed one is to receive it. In fact, we have four types of soil – the path, the rocky surface, the ground with thorns and the good soil. These refer to different types of people who listen to the word of God. The good soil refers to those who have the best disposition to listen, accept and nurture the Word of God. Other people, either due to their own lack of preparation or because of the circumstances where they find themselves, are unable to produce much fruits or any fruits. The Lord wants us prepare ourselves to receive the Word of God and bring rich fruits in our lives.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन-3

दृष्टान्तों के जरियें प्रभु येसु ने कई रहस्यों को हमारे सामने प्रकट किया है तथा स्वर्गिक बातों को समझाने की कोशिश की है। प्रभु के वचन की वृद्धि के लिए प्रभु येसु बीज बोने वाले का दृष्टांत सुनाते है। यहॉं पर वचन या बीज की क्षमता नहीं अपितु उसे ग्रहण करने वाले हृदय या भूमि की महत्ता पर जोर दिया गया है। प्रभु के वचन में हर प्रकार की क्षमता है कि वह अधिक फल उत्पन्न करें; जिस प्रकार धर्मग्रन्थ में लिखा है, ‘‘मेरी वाणी मेरे मुख से निकल कर व्यर्थ ही मेरे पास नहीं लौटती।’’(इसायह 55ः11), ‘‘आकाश और पृथ्वी टल जायें, तो टल जायें, परंतु मेरे शब्द नहीं टल सकते।’’(मत्ती 24ः35)

परंतु जरूरत है तो उसे ग्रहण करने वाले अच्छे भूमि की। जिस प्रकार अलग अलग तरह की भूमि इस दृष्टांत में बताया गया है वह प्रत्येक मनुष्यों के हृदयांे की स्थिति को इंगित करता है। यह जरूरी नहीं कि अभी हम सबका हृदय अच्छी भूमि के समान हो परंतु हम उसको अच्छी भूमि के समान बना सकते है। यदि हम चाहते है कि प्रभु का वचन हमारे जीवन में फलप्रद हो तो हमें मेंहनत करने की जरूरत है और अपने हृदय रूपी भूमि से हर प्रकार की बाधा को हटाकर अच्छी भूमि में परिवर्तित करने की जरूरत है। प्रभु का वचन हम सबके जीवन में अधिक फल उत्पन्न करें आईये इसके लिए हम प्रयास करें।

फादर डेन्नीस तिग्गा

📚 REFLECTION


Lord Jesus has tried to reveal many mysteries and to explain heavenly things through the parables. For the growth of God’s word Lord Jesus tells about the parable of a Sower. Here not the potency of word or seed but the receptive heart or soil is been given more stress. In the word of God there is all potency to bear much fruit, as it is written in the scripture, “My word that goes out from my mouth; it will not return to me empty” (Isa 55:11), “Heaven and earth will pass away, but my words will never pass away.” (Mt 24:35)

But what is needed is the good soil for its reception. As the different kinds of soil or surface area are mentioned in this parable it indicates the different state of hearts of each person. It is not necessary that at present our heart may be like that of good soil but we can make it to be a good soil. If we want the word of God to bear much fruit then we need to work hard and removing all the obstacles from our heart we can transform it to a good soil or good heart. Let’s put our effort so that God’s word may bear much fruit in our lives.

-Fr. Dennis Tigga