वर्ष का पच्चीसवाँ सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

एज्रा का ग्रंथ 6:7-8,12,14-20

"उन्होंने ईश्वर के मंदिर का निर्माण पूरा किया और पास्का पर्व मनाया ।"

राजा दारा ने नदी के उस पार रहने वाले क्षत्रपों के नाम यह राजाज्ञा निकाली - "यहूदियों के राज्यपाल और उनके नेताओं को ईश्वर का वह मंदिर बनाने दो। वे उसे उसके मूल स्थान पर फिर बनाएँ। ईश्वर के उस मंदिर का निर्माण करने वाले यहूदी नेताओं के साथ तुम्हारे व्यवहार के विषय में मेरी राज्याज्ञा इस प्रकार है : राजकीय सम्पत्ति से - अर्थात् नदी के उस पार के राजस्व से उन लोगों का पूरा-पूरा खर्च तत्काल चुकाया जाये। मैं, दारा ने यह राजाज्ञा निकाली। इसका अक्षरशः पालन किया जाए।" नबी हग्गय और इद्दो के पुत्र नबी जकर्या की प्रेरणा से यहूदी नेता मंदिरे के निर्माण कार्य को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाते रहे। उन्होंने वह कार्य पूरा किया, जिसे इस्राएल के ईश्वर, और फारस के राजाओं सीरुस, द्वारा और अर्तजर्कसीस ने उन्हें सौंपा था। राजा दारा के छठे वर्ष में, अदार महीने के तीसरे दिन, मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो गया। इस्राएलियों - याजकों, लेवियों तथा अन्य लौटे हुए निर्वासितों ने आनन्द के साथ ईश्वर के मंदिर का प्रतिष्ठान-उत्सव मनाया। ईश्वर के इस मंदिर के प्रतिष्ठान के समय उन्होंने एक सौ साँड़ों, दो सौ मेड़ों, चार सौ मेमनों और इस्राएल के वंशों की संख्या के अनुसार समस्त इस्राएल के पापों के प्रायश्चित्त के लिए बारह बकरों की बलि चढ़ायी। इसके बाद उन्होंने येरुसालेम में ईश्वर के मंदिर के लिए याजकों को दलों में विभक्त किया और लेवियों को श्रेणियों में, जैसा कि मूसा के ग्रन्थ में लिखा हुआ है। लौटे हुए निर्वासितों ने प्रथम महीने के चौदहवें दिन पास्का पर्व मनाया। याजकों और लेवियों ने शुद्धीकरण की रीतियों को पूरा किया। वे सब के सब शुद्ध हो गये। लेवियों ने लौटे हुए निर्वासितों, अपने साथी याजकों और अपने लिए पास्का के मेमने का वध किया ।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 121:1-5

अनुवाक्य : आओ, हम ईश्वर के मंदिर चलें ।

1. मुझे यह सुन कर कितना आनन्द हुआ - "आओ, हम ईश्वर के मंदिर चलें।" हे येरुसालेम ! अब हम पहुँचे हैं, हमने तेरे फाटकों में प्रवेश किया है

2. येरुसालेम का पुनर्निर्माण हो गया है, यहाँ इस्राएल के वंश, प्रभु के वंश आते हैं। वे ईश्वर का स्तुतिगान करने आते हैं, जैसा कि इस्राएल को आदेश मिला है। यहाँ न्याय के आसन संस्थापित हैं और दाऊद के वंश का सिंहासन भी।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 8:19-21

"मेरी माता और मेरे भाई वे ही हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं।"

येसु की माता और भाई उन से मिलने आए, किन्तु भीड़ के कारण उनके पास नहीं पहुँच सके। लोगों ने उन से कहा, "आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आप से मिलना चाहते हैं।" उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी माता और मेरे भाई वे हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं।"

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

आज प्रभु येसु हमें एक बहुत ही गहरी शिक्षा देते हैं। उनकी अपनी माता और परिवार उन्हें ढूँढ रहे थे, लेकिन इसी क्षण का उपयोग करते हुए वे यह प्रकट करते हैं कि ईश्वर के परिवार का सदस्य बनने का सच्चा अर्थ क्या है। प्रभु येसु अपनी माता मरियम को अस्वीकार नहीं कर रहे, बल्कि यह दिखा रहे हैं कि सबसे गहरा पारिवारिक संबंध रक्त से नहीं, बल्कि ईश्वर के वचन का पालन करने से बनता है। माता मरियम स्वयं इस सत्य का पूर्ण उदाहरण हैं—उन्होंने ईश्वर के वचन को सुना, उस पर विश्वास किया, और उसे विश्वास और नम्रता के साथ अपने जीवन में उतारा। प्रभु येसु हमें आमंत्रित करते हैं कि हम उनके सच्चे भाई-बहन बनें, न कि रक्त के द्वारा, बल्कि ईश्वर के वचन को निष्ठा से सुनकर और उसका पालन करके। क्या मैं केवल ईश्वर के वचन का श्रोता हूँ, या मैं उसे अपने जीवन में जीता भी हूँ? क्या मैं माता मरियम और संत पाद्रे पियो की तरह जीने की कोशिश करता हूँ, जिन्होंने दुःख और कठिनाई में भी ईश्वर की आज्ञा का पालन किया? आइए, हम यह कृपा माँगें कि हम सचमुच प्रभु येसु के परिवार के सदस्य बन सकें—केवल नाम से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से।

- फ़ादर जॉर्ज मेरी क्लारेट


📚 REFLECTION

In Today’s Gospel Lk 8:19–21, Jesus gives us a very striking teaching. His own family was looking for Him, but Jesus uses this opportunity to reveal the true meaning of belonging to God’s family. Jesus is not rejecting His mother Mary, but showing that the deepest family bond is not based on blood, but on obedience to God’s Word. Mother Mary herself is the perfect example of this truth—She heard God’s Word, believed it, and lived it with faith and humility. Jesus invites us to become His true brothers and sisters not by blood, but by faithful listening and living out the Word of God. Am I only a listener of God’s Word, or do I also put it into practice in my daily life? Do I try to live like Mother Mary and St. Padre Pio, who obeyed God completely, even in suffering? Let us ask for the grace to belong fully to the family of Jesus—not just by name, but by action.

-Fr. George Mary Claret


📚 मनन-चिंतन - 2

येसु का जन्म यूसुफ और मरियम के परिवार में हुआ था, लेकिन वे हर परिवार का सदस्य हैं। मरियम को ईश्वर के पुत्र येसु की माता के रूप में चुना गया था। उन्हें सभी महिलाओं में धन्य होने का सौभाग्य मिला। एलिज़बेथ ने उन्हें "मेरे प्रभु की माता" कहा (लूकस 2:43)। फिर भी येसु सार्वभौमिक रूप से सुलभ है। वे एक मानव परिवार, नाज़रेथ के परिवार तक सीमित नहीं हो सकते। वे ईश्वर के पुत्र हैं जो पूरी मानव-जाति को बचाने के लिए स्वर्ग से उतर कर आये। वे सबका हैं। वे सबके लिए अवतरित हुए। संत पौलुस कहते हैं, “इसलिए यहूदी और यूनानी में कोई भेद नहीं है- सबों का प्रभु एक ही है। वह उन सबों के प्रति उदार है, जो उसकी दुहाई देते है; क्योंकि जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।” (रोमियों 10:12-13)। योहन 3:16 में ईश्वर की सार्वभौमिक उद्धार की इच्छा स्पष्ट है - "ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने इसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता हे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे।" प्रभु मसीह को सार्थक तरीके से स्वीकार करने के लिए हमें मरियम के स्वभाव तथा मनोभाव को अपनाना चाहिए। हमें मसीह को वैसे ही स्वीकार करना चाहिए जैसे उन्होंने किया। हम ईश्वर के वचन को सुनकर और उस पर अमल करके ऐसा कर सकते हैं।

- फ़ादर फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Jesus was born in the family of Joseph and Mary, but he belongs to everyone. Mary was chosen to be the mother of Jesus, the Son of God. She was privileged to be blessed among all women. Elizabeth referred to her as “the mother of my Lord” (Lk 2:43). Yet Jesus is universally accessible. He cannot be limited a single human family, the family of Nazareth. He is the Son of God who came down to save the entire humanity. He belongs to everyone. Everyone has a claim on him because he came down for everyone. St. Paul says, “For there is no distinction between Jew and Greek; the same Lord is Lord of all and is generous to all who call on him. For “everyone who calls on the name of the Lord shall be saved.” (Rom 10:12-13). The universal salvific will of God is clear in Jn 3:16 “For God so loved the world that he gave his only Son, so that everyone who believes in him may not perish but may have eternal life.” Mary is the model of the disposition one would need to posses in order to accept Christ in a meaningful way. We need to accept Christ as she did. We can do that by hearing the Word of God and doing it.

-Fr. Francis Scaria

मनन-चिंतन-3

ख्रीस्तीय धर्म संबंधों का धर्म है। प्रभु ख्रीस्त में विश्वास करने वाले सभी लोग ईश्वर की संतान हैं तथा आपस में भाई-बहन हैं। इसलिए प्रभु ने ईश्वर को ’पिता’ या ’अब्बा’ कह कर पुकारना सिखाया। हम जानते हैं कि भाई-बहनों का संबंध खून का संबंध होता है। सभी ख्रीस्तीय विश्वासी आपस में भाई-बहन है, लेकिन इनका रिश्ता खून का नहीं है, बल्कि ईशवचन का रिश्ता है। प्रभु ईश्वर का शक्तिशाली तथा जीवंत वचन खून से अधिक घनिष्ट संबंध में हमें एक दूसरे से जोड़ देता है। माता मरियम के साथ येसु का रिश्ता खून का अवश्य था, ले किन उससे भी मजबूत एक संबंध उनके बीच में है – वह है ईशवचन का रिश्ता। इस प्रकार का संबंध बनाना तथा कायम रखना हम सब के लिए भी मुमकिन है। अगर हम भी माता मरियम के समान ईश्वर के वचनों को अपने हृदय में संचित रखेंगे, तो हम भी येसु के भाई-बहन बन सकते हैं।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


Christianity is a religion of relationships. All those who believe in Christ are children of God and therefore are brothers and sisters among themselves. That is why Jesus taught us to call God ‘Father’ or ‘Abba’. We know that the relationship that exists between brothers and sisters is one of blood. All Christians are brothers and sisters, but their relationship is not of blood, but of the Word of God. The mighty and living Word of God binds us to one another in a stronger relationship than that of blood. Indubitably, Jesus and Mary were related by blood, but there was a greater relationship between them – that of the Word of God. It is possible also for us to have such a strong relationship with Jesus. Like Mary if we try to treasure the Word of God in our heart, we too can become brothers and sisters of Jesus.

-Fr. Francis Scaria