राजा अर्तजर्कसीस के राज्यकाल के बीसवें वर्ष के नीसान महीने में, मैं अंगूरी का प्रबंधक था। मैंने अंगूरी ले कर राजा के सामने रखी। मैं पहले कभी उदास हो कर राजा के सामने नहीं आया था। राजा ने मुझ से कहा, "क्यों तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ है? तुम बीमार नहीं हो, इसलिए तुम किसी कारण से उदास हो।" मैं बहुत घबरा गया और राजा से बोला, "महाराजा सदा जीते रहें। क्यों नहीं मेरा चेहरा उतरा हुआ होगा जब कि वह नगर उजाड़ है, जहाँ मेरे पूर्वज दफनाये हुए हैं, और उसके फाटक जल कर भस्म हो गये हैं?" राजा ने मुझ से कहा, "तुम क्या चाहते हो?" मैंने स्वर्ग के ईश्वर से प्रार्थना की और राजा को उत्तर दिया, "यदि महाराजा को अच्छा लगे और मुझ पर आपकी कृपादृष्टि हो, तो मुझे यूदा भेजिए, जिससे मैं उस नगर का पुनर्निर्माण करूँ, जहाँ मेरे पूर्वज दफनाये हुए हैं।" रानी राजा के पास बैठी हुई थी। राजा ने मुझ से पूछा, "यात्रा में कितना समय लगेगा और तुम कब वापस आओगे?" मैंने उसे एक निश्चित समय बताया और राजा ने. मुझे जाने की अनुमति दी। तब मैंने राजा से कहा, "यदि महाराजा को यह अच्छा लगे तो मुझे नदी के उस पार के क्षत्रपों के नाम पत्र दिये जायें, जिससे, जब तक मैं यूदा न पहुँचूँ, वे मुझे अपने प्रान्त पार करने दें। मुझे राजकीय वन के अधयक्ष आसाफ के नाम भी एक पत्र दिया जाये। उस में मुझे लकड़ी देने का आदेश लिखा हो, जिससे मैं मंदिर के निकटवर्ती गढ़ के फाटक, नगर की चारदीवारी और अपने रहने का घर बनवा सकूँ।" राजा ने मेरा निवेदन स्वीकार किया, क्योंकि मुझे अपने ईश्वर की कृपादृष्टि प्राप्त थी ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : यदि मैं तुझे याद नहीं करूँ, तो मेरी जीभ तालू से चिपक जाय ।
1. बाबुल की नदियों के तट पर बैठ कर हम सियोन की याद करते हुए रोते थे। आस-पास खड़े मजनू के पेड़ों पर हमने अपनी वीणाएँ टाँग दी थीं
2. जो लोग हमें बन्दी बना कर ले गये थे, वे हम से भजन गाने को कहते थे। हम पर अत्याचार करने वाले हम से आनन्द के गीत चाहते थे। वे हम से कहते थे सियोन का कोई गीत सुनाओ
3. हम पराये देश में रहते हुए प्रभु का भजन कैसे गा कर सुनायें? येरुसालेम ! यदि मैं तुझे भुला दूँ, तो मेरा दाहिना हाथ सूख जाये ।
4. यदि मैं तुझे याद नहीं करूँ, यदि मैं येरुसालेम को अपना सर्वोत्तम आनन्द नहीं मानूँ, तो मेरी जीभ तालू से चिपक जाये ।
अल्लेलूया ! मैंने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कूड़ा समझता हूँ, जिससे मैं मसीह को प्राप्त करूँ और उनके साथ सम्पूर्ण रूप से एक हो जाऊँ । अल्लेलूया !
येसु अपने शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे कि रास्ते में ही किसी ने उन से कहा, "आप जहाँ कहीं भी जायेंगे, मैं आपके पीछे-पीछे चलूँगा ।" येसु ने उसे उत्तर दिया, "लोमड़ियों की अपनी माँदें हैं और आकाश के पक्षियों के अपने घोसले, परन्तु मानव पुत्र के लिए सिर रखने को भी अपनी जगह नहीं है।" उन्होंने किसी दूसरे से कहा, "मेरे पीछे चले आओ।" परन्तु उसने उत्तर दिया, "प्रभु ! मुझे पहले अपने पिता को दफनाने के लिए जाने दीजिए।" येसु ने उस से कहा, "मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो। तुम जा कर ईश्वर के राज्य का प्रचार करो।" फिर कोई दूसरा बोला, "प्रभु ! मैं आपका अनुसरण करूँगा, परन्तु मुझे अपने घर वालों से विदा लेने दीजिए।" येसु ने उस से कहा, "हल की मूठ पकड़ने के बाद जो मुड़ कर पीछे देखता है, वह ईश्वर के राज्य के योग्य नहीं।"
प्रभु का सुसमाचार।
आज का सुसमाचार येसु का अनुसरण करने की प्राथमिकता निर्धारित करता है। आज के सुसमाचार में पाया जाने वाला व्यक्ति पारिवारिक दायित्वों के कारण प्रभु का अनुसरण करने और अपने मिशन की शुरुआत करने में देरी की। येसु तुरंत इस व्यक्ति के जीवन और इरादे पर सवाल करते है। येसु का अनुसरण करना एक माँग है! पहली चीजों यह है कि आप अपनी सारी संपत्ति छोड़ कर, अपने सभी संसाधन उसे समर्पित कर दें। यदि हम उनका अनुसरण करना चाहे, तो हमारे शिष्यत्व को वैराग्य, ध्यान और अनुशासन की आवश्यकता होगी। एक जीवन जो मसीह के करीब चलता है उसे कठिनाइयों का अनुभव होगा। इसके अलावा, हमें अपनी बुलाहट को पूरा करने के लिए तत्पर और केंद्रित रहना होगा। मसीह का अनुसरण अंत तक कर ने की इच्छा, गंभीर मूल्यांकन से शुरू होता है, चाहे इसकी कोई भी कीमत चुकानी क्यों न पड़े। कठिनाइयों के बावजूद हमें ईश्वर प्रद्दत्त कार्य को पूरा करने में तत्पर रहना होगा।
✍फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.Today’s gospel sets the priority of following Jesus. The man in the gospel raised family obligations as reasons for delaying the beginning of his mission to follow the Lord. Jesus immediately challenges this man where we all live, at the level of his comfort and possessions. Following Jesus is demanding! One of the first things is that you lay aside all your possessions and you commit all your resources to Him. If we wish to follow him, our discipleship will require detachment, focus, and discipline. A life that follows close to Christ will experience its share of hardships. Besides, we must remain urgent and focused in fulfilling our calling. Following Christ begins with a serious assessment of our willingness to endure to the end whatever the cost may be. Despite the hardships we are to be urgent in fulfilling the task.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD