समस्त इस्राएली जलद्वार के सामने के चौक में एकत्र हुए और उन्होंने एज्रा से निवेदन किया कि वह प्रभु द्वारा इस्राएल को प्रदत्त मूसा की संहिता का ग्रन्थ ले आये। पुरोहित एज्रा सभा में संहिता का ग्रन्थ ले आया। सभा में पुरुष, स्त्रियाँ और समझ सकने वाले बालक उपस्थित थे। यह सातवें मास का पहला दिन था। उसने सबेरे से ले कर दोपहर तक जलद्वार के सामने के चौक में, स्त्री-पुरुषों और समझ सकने वाले बालकों को ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया। सब लोग संहिता का ग्रन्थ ध्यान से सुनते रहे । शास्त्री एज्रा विशेष रूप से तैयार किये हुए लकड़ी के मंच पर खड़ा था। एज्रा लोगों से ऊँची जगह पर था । उसने सबों के देखने में ग्रन्थ खोल दिया। जब ग्रन्थ खोला गया, तो सारी जनता उठ खड़ी हो गयी। तब एज्रा ने प्रभु, महान् ईश्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ उठा कर उत्तर दिया, "आमेन, आमेन !" इसके बाद वे झुक गये और मुँह के बल गिर कर उन्होंने प्रभु को दण्डवत् किया । लेबियों ने लोगों को संहिता का अर्थ समझाया और वे खड़े हो कर सुनते रहे । उन्होंने ईश्वर की संहिता का ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया, इसका अनुवाद किया और इसका अर्थ समझाया, जिससे लोग पाठ समझ सकें। इसके बाद राज्यपाल नहेम्या, याजक तथा शास्त्री एज्रा और लोगों को समझाने वाले लेबियों ने सारी जनता से कहा, “यह दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के लिए पवित्र है। उदास हो कर मत रोओ।" क्योंकि सब लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे । तब एज्रा ने उन से कहा, "जा कर रसदार मांस खाओ, मीठी अंगूरी पी लो और जिसके लिए कुछ नहीं बन सका, उसके पास एक हिस्सा भेज दो; क्योंकि यह दिन हमारे प्रभु के लिए पवित्र है। उदास मत हो । प्रभु के आनन्द में तुम्हारा बल है।" लेबियों ने यह कहते हुए लोगों को शांत कर दिया, "शांत रहो, क्योंकि यह दिन पवित्र है। उदास मत हो ।" तब सब लोग खाने-पीने गये । उन्होंने दूसरों के पास हिस्से भेज दिये और उल्लास के साथ आनन्द मनाया, क्योंकि उन्होंने अपने को दी हुई शिक्षा को समझा था ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं; वे हृदय को आनन्दित कर देते हैं।
1. प्रभु का नियम सर्वोत्तम है; वह आत्मा में नवजीवन का संचार करता है। प्रभु की शिक्षा विश्वसनीय है; वह अज्ञानियों को समझदार बना देती है
2. प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं; वे हृदय को आनन्दित कर देते हैं। प्रभु की आज्ञाएँ स्पष्ट हैं; वे आँखों को ज्योति प्रदान करती हैं
3. प्रभु की वाणी परिशुद्ध है; वह अनन्तकाल तक बनी रहती है। प्रभु के निर्णय सच्चे हैं; वे सब के सब न्यायसंगत हैं
4. वे सोने से अधिक वांछनीय हैं, परिष्कृत सोने से भी अधिक वांछनीय । वे मधु से अधिक मधुर हैं, छत्ते से टपकने वाले मधु से भी अधिक मधुर ।
अल्लेलूया ! ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चात्ताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो । अल्लेलूया !
प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वह स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा। उन्होंने उन से कहा, "फसल तो बहुत है, परन्तु मजदूर थोड़े हैं, इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मजदूरों को भेजे। जाओ, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ। तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्ते में किसी को नमस्कार मत करो। जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, 'इस घर को शांति !' यदि वहाँ शांति के योग्य कोई होगा, तो तुम्हारी शांति उस पर ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी। उसी घर में ठहरे रहो और जो उनके पास हो, वही खाओ-पीओ; क्योंकि मजदूर को मजदूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो। जिस नगर में प्रवेश करते हो और वे तुम्हारा स्वागत करते हैं तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो। वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, 'ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है'। परन्तु यदि किसी नगर में प्रवेश करते हो और वे तुम्हारा स्वागत नहीं करते, तो वहाँ के बाजारों में जा कर कहो, अपने पैरों में लगी तुम्हारे नगर की धूल तक हम तुम्हारे सामने झाड़े देते हैं। तब भी यह जान लो कि ईश्वर का राज्य आ गया है।' मैं तुम से कहे देता हूँ - न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सोदोम की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी ।"
प्रभु का सुसमाचार।