वर्ष का छब्बीसवाँ सप्ताह, बृहस्पतिवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

नहेम्या का ग्रन्थ 8:1-12

"एज्रा ने संहिता का ग्रन्थ खोल कर ईश्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने उत्तर दिया आमेन, आमेन !"

समस्त इस्राएली जलद्वार के सामने के चौक में एकत्र हुए और उन्होंने एज्रा से निवेदन किया कि वह प्रभु द्वारा इस्राएल को प्रदत्त मूसा की संहिता का ग्रन्थ ले आये। पुरोहित एज्रा सभा में संहिता का ग्रन्थ ले आया। सभा में पुरुष, स्त्रियाँ और समझ सकने वाले बालक उपस्थित थे। यह सातवें मास का पहला दिन था। उसने सबेरे से ले कर दोपहर तक जलद्वार के सामने के चौक में, स्त्री-पुरुषों और समझ सकने वाले बालकों को ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया। सब लोग संहिता का ग्रन्थ ध्यान से सुनते रहे । शास्त्री एज्रा विशेष रूप से तैयार किये हुए लकड़ी के मंच पर खड़ा था। एज्रा लोगों से ऊँची जगह पर था । उसने सबों के देखने में ग्रन्थ खोल दिया। जब ग्रन्थ खोला गया, तो सारी जनता उठ खड़ी हो गयी। तब एज्रा ने प्रभु, महान् ईश्वर का स्तुतिगान किया और सब लोगों ने हाथ उठा कर उत्तर दिया, "आमेन, आमेन !" इसके बाद वे झुक गये और मुँह के बल गिर कर उन्होंने प्रभु को दण्डवत् किया । लेबियों ने लोगों को संहिता का अर्थ समझाया और वे खड़े हो कर सुनते रहे । उन्होंने ईश्वर की संहिता का ग्रन्थ पढ़ कर सुनाया, इसका अनुवाद किया और इसका अर्थ समझाया, जिससे लोग पाठ समझ सकें। इसके बाद राज्यपाल नहेम्या, याजक तथा शास्त्री एज्रा और लोगों को समझाने वाले लेबियों ने सारी जनता से कहा, “यह दिन तुम्हारे प्रभु-ईश्वर के लिए पवित्र है। उदास हो कर मत रोओ।" क्योंकि सब लोग संहिता का पाठ सुन कर रोते थे । तब एज्रा ने उन से कहा, "जा कर रसदार मांस खाओ, मीठी अंगूरी पी लो और जिसके लिए कुछ नहीं बन सका, उसके पास एक हिस्सा भेज दो; क्योंकि यह दिन हमारे प्रभु के लिए पवित्र है। उदास मत हो । प्रभु के आनन्द में तुम्हारा बल है।" लेबियों ने यह कहते हुए लोगों को शांत कर दिया, "शांत रहो, क्योंकि यह दिन पवित्र है। उदास मत हो ।" तब सब लोग खाने-पीने गये । उन्होंने दूसरों के पास हिस्से भेज दिये और उल्लास के साथ आनन्द मनाया, क्योंकि उन्होंने अपने को दी हुई शिक्षा को समझा था ।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 18:8-11

अनुवाक्य : प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं; वे हृदय को आनन्दित कर देते हैं।

1. प्रभु का नियम सर्वोत्तम है; वह आत्मा में नवजीवन का संचार करता है। प्रभु की शिक्षा विश्वसनीय है; वह अज्ञानियों को समझदार बना देती है

2. प्रभु के उपदेश सीधे-सादे हैं; वे हृदय को आनन्दित कर देते हैं। प्रभु की आज्ञाएँ स्पष्ट हैं; वे आँखों को ज्योति प्रदान करती हैं

3. प्रभु की वाणी परिशुद्ध है; वह अनन्तकाल तक बनी रहती है। प्रभु के निर्णय सच्चे हैं; वे सब के सब न्यायसंगत हैं

4. वे सोने से अधिक वांछनीय हैं, परिष्कृत सोने से भी अधिक वांछनीय । वे मधु से अधिक मधुर हैं, छत्ते से टपकने वाले मधु से भी अधिक मधुर ।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चात्ताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो । अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:1-12

"तुम्हारी शांति उस पर उतरेगी ।"

प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वह स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा। उन्होंने उन से कहा, "फसल तो बहुत है, परन्तु मजदूर थोड़े हैं, इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मजदूरों को भेजे। जाओ, मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ। तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्ते में किसी को नमस्कार मत करो। जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, 'इस घर को शांति !' यदि वहाँ शांति के योग्य कोई होगा, तो तुम्हारी शांति उस पर ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी। उसी घर में ठहरे रहो और जो उनके पास हो, वही खाओ-पीओ; क्योंकि मजदूर को मजदूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो। जिस नगर में प्रवेश करते हो और वे तुम्हारा स्वागत करते हैं तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो। वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, 'ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है'। परन्तु यदि किसी नगर में प्रवेश करते हो और वे तुम्हारा स्वागत नहीं करते, तो वहाँ के बाजारों में जा कर कहो, अपने पैरों में लगी तुम्हारे नगर की धूल तक हम तुम्हारे सामने झाड़े देते हैं। तब भी यह जान लो कि ईश्वर का राज्य आ गया है।' मैं तुम से कहे देता हूँ - न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सोदोम की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी ।"

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

आज येसु बहत्तर शिष्यों को उन कस्बों और स्थानों पर भेजते है जहाँ वह खुद जाना चाहते थे। बहत्तर की नियुक्ति मिशनरियों को बारह प्रेरितों से आगे भेजना है, जिन्हें पिछले अध्याय (9:1-6) में नियुक्त किया गया था। बहत्तर की नियुक्ति से पता चलता है कि उद्घोषणा सभी शिष्यों की जिम्मेदारी है - केवल कुछ चुनिंदा लोगों की नहीं। येसु ने उन्हें एक साथी के साथ यात्रा करने का निर्देश दिया। जिन लोगो से मिले उनके लिए शांति का वाहक बनने के लिए कहा। वह उनसे बीमारों को चंगा करने के लिए कहा। अंत में वह उनसे ईश्वर का राज्य निकट होने का सुसमाचार प्रचार करने को कहा। उन्हें ठीक वैसे ही सिखाना, उपदेश देना और चंगा करना था, जैसे येसु किया करते थे। येसु के प्रेरिताई कार्य में शारीरिक और आध्यात्मिक उपचार दोनों शामिल थे। ऐसा इसलिए है क्योंकि येसु के समय के सामान्य लोगों की चिंताएँ अपदूत और बीमारियाँ थीं, और ये दोनों बहुत करीब से संबंधित थे।

फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.

📚 REFLECTION


Today Jesus sends seventy-two of his disciples to the towns and places he intended to visit. The commissioning of the seventy broadens Jesus’ missionaries beyond the twelve apostles, who were commissioned in the last chapter (लूकस ९:१-६). The commissioning of the seventy shows that proclamation is the responsibility of all disciples—not just a select few. Jesus instructs them to journey with a companion. He first tells them to bring the gift of peace to those they visit. He then tells them to heal the sick. And finally he tells them to preach the Good News that the Kingdom of God is near them. They were to teach, preach and heal, just like Jesus did when he entered a village. Jesus' ministry included both physical and spiritual healing because the concerns of the ordinary people of Jesus' day were demons and sickness, and the two were very closely related.

-Fr. Sanjay Kujur SVD

मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में पुनः प्रभु येसु अपने बहत्तर शिष्यों को दो-दो करके ईश्वर का राज्य सुनाने और चंगाई करने भेजते हुये कहते है मै तुम्हें भेड़ियों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हॅूं। भेडिया एक खूंखार जंगली जानवर है वहीं भेड़ निर्मल निर्दोष जानवर है। प्रभु को मालूम था कि संसार में लोग भेडियें के समान है इस पर भी वे अपने शिष्यों को भेड़ियों के समान नही परंतु एक भेड़ के समान भेजते है। संसार में कहावत है लोहा लोहे को काटता है अर्थात् अगर हमें दुश्मन को हराना है तो हमें उसके समान या उससे भी अधिक शक्तिशाली बनना है। परंतु प्रभु का दूसरा नजरियॉं है- प्रभु जानते थे कि नफरत से नफरत को नहीं हराया जा सकता, शत्रुता को शत्रुता से नहीं हराया जा सकता, कोध्र को कोध्र से नहीं हराया जा सकता परंतु दुश्मन को प्रेम से दोस्त बनाया जा सकता है जो अत्याचार करते है उनके लिए प्रार्थना करके उनको उनके पापो से बचाया जा सकता है। इसलिए वे उन्हें भेड़ के समान बिना संसारिक चीज़ों पर आश्रित हुये संसार में भेजते है क्योंकि देने वाला तो ईश्वर है।

फादर डेन्नीस तिग्गा

📚 REFLECTION


In today’s gospel Jesus once again sends his 72 disciples two by two to proclaim God’s Kingdom and to heal by saying to them. Go on your way. See, I am sending you out like lambs into the midst of wolves. Wolf is a ravaneous animal whereas lamb is a simple and innocent animal. Jesus knew that people in the world be like the wolves even then also he sends his disciples not as a wolf but as a lamb. There is a saying in the world that Iron cuts iron that means to say if we want to defeat an enemy then we have to become strong like him or even stronger than him. But Jesus had different view- He knew that hatred cannot be defeated by hatred, enimity cannot be defeated by enemity, anger cannot be defeated by anger but an enemy can become a friend by love and those who persecute us can be saved from their sins by praying for them. That is why he sends them in the world without depending on the things of the world because the provider is God himself.

-Fr. Dennis Tigga