हमारा प्रभु-ईश्वर न्यायी है और हम, यहूदिया के लोग, येरुसालेम के निवासी, हमारे राजा और शासक, हमारे याजक और नबी, हमारे पुरखे हम सब के सब कलंकित हैं; क्योंकि हमने प्रभु के विरुद्ध पाप किया है। हमने अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दिया। हमने उसके आदेशों का पालन नहीं किया । जिस दिन प्रभु हमारे पुरखों को मिस्र से निकाल लाया, उस दिन से आज तक हम उसकी आज्ञाएँ भंग करते और उसकी वाणी का तिरस्कार करते आ रहे हैं। इसलिए आज वे विपत्तियाँ और अभिशाप हम पर आ पड़े हैं, जिन्हें प्रभु ने अपने सेवक मूसा के द्वारा घोषित किया था, जब वह हमारे पुरखों को मिस्र से निकाल कर उस देश ले जा रहे थे; जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं। हमने प्रभु द्वारा भेजे हुए नबियों की वाणी पर ध्यान नहीं दिया। हम हठपूर्वक अपनी राह चलते रहे, पराये देवताओं की उपासना और ऐसे कार्य करते रहे, जो हमारे प्रभु-ईश्वर की दृष्टि में बुरे हैं।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! अपने नाम के हेतु हमारी सहायता कर ।
1. हे प्रभु ! गैरयहूदी तेरी प्रजा के देश में घुस आये हैं। उन्होंने तेरा पवित्र मंदिर दूषित किया, येरुसालेम को खंडहरों का ढेर बना दिया और तेरे सेवकों के शव तथा तेरे भक्तों का मांस आकाश के पक्षियों तथा पृथ्वी के पशुओं के भोजन के लिए छोड़ दिया है
2. उन्होंने येरुसालेम में रक्त पानी की तरह बहाया है। मृतकों को दफनाने के लिए कोई नहीं रहा । हमारे पड़ोसी हम पर ताना मारते हैं, हमारे आस-पास रहने वाले हमारा उपहास करते हैं। हे प्रभु ! क्या तू सदा के लिए हम पर अप्रसन्न रहेगा? तेरा क्रोध कब तक अग्नि की तरह जलता रहेगा?
3. हमारे पूर्वजों के पापों के कारण हम पर अप्रसन्न न हो। शीघ्र ही हम पर दया कर, क्योंकि हम घोर संकट में पड़े हैं
4. हे ईश्वर ! हमारे मुक्तिदाता ! अपने नाम की महिमा के हेतु हमारी सहायता कर । हे प्रभु ! अपने नाम के हेतु हमारे पाप क्षमा कर ।
अल्लेलूया ! आज अपना हृदय कठोर न बनाओ, प्रभु की वाणी पर ध्यान दो । अल्लेलूया !
येसु ने कहा, "धिक्कार तुझे रे कोरेजन ! धिक्कार तुझे रे बेथसाइदा ! जो चमत्कार तुम में किये गये हैं, यदि वे तीरुस और सिदोन में किये गये होते, तो न जाने कब से टाट ओढ़ कर और भस्म रमा कर उन्होंने पश्चात्ताप किया होता। इसलिए न्याय के दिन तुम्हारी दशा की अपेक्षा तीरुस और सिदोन की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी। और तू, रे कफरनाहूम ! क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा उठाया जायेगा? नहीं, तू अधोलोक तक नीचे गिरा दिया जायेगा ।" "जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है और जो तुम्हारा तिरस्कार करता है, वह मेरा तिरस्कार करता है। जो मेरा तिरस्कार करता है, वह उसका तिरस्कार करता है जिसने मुझे भेजा है।"
प्रभु का सुसमाचार।
आज का सुसमाचार उन लोगों के लिए चेतावनी है जो सुसमाचार ग्रहण करने से इनकार करते हैं। जिन लोगों ने सुसमाचार सुना, उन्होंने उदासीनता से उत्तर दिया। येसु के शब्दों और कार्यों में बदलाव और परिवर्तन लाने की शक्ति है। लुकास अपने समुदाय को उनके मिशन के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया में शामिल जोखिमों की याद दिलाते है। ईश्वर दुनिया के लिए जो जीवन की परिपूर्णता चाहता है उसे पाने या खोने की संभावना से कम कुछ भी नहीं है। हमारा मूल्यांकन केवल इस आधार पर नहीं किया जाएगा कि हमने क्या किया है या क्या करने में असफल रहे, बल्कि हमारा मूल्यांकन उन अवसरों और परिस्थितियों के आधार पर भी किया जाएगा जो हमने जीवन में गँवा दिए हैं। अब शिष्यों को येसु के नाम पर बोलने का आदेश दिया गया है। इस तरह के संदेश की अस्वीकृति केवल उस शिष्य की अस्वीकृति नहीं है जो एक मानवीय प्रतिनिधि है, बल्कि ईश्वर की आवाज़ और संदेश की अस्वीकृति है।
✍फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.Today's Gospel stresses and extends the threats upon those who refuse to receive the Good News. The people who heard the gospel responded with indifference. Jesus’ words and deeds have power to bring about change and conversion. Luke was reminding his community of the stakes involved in people’s response to their mission. Nothing is less than the possibility of finding or losing the fullness of life God wants for the world. We will be judged not only for what we have done or failed to do, but the opportunities, the circumstances, the chances in life we have wasted. The disciples are now given the mandate to speak in the name of Jesus. The rejection of such a message was not just a rejection of the disciple who is but a human agent but a rejection of the very voice and message of God.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
प्रभु ईश्वर मनुष्य को अपने वरदान देते रहते हैं। अशर्फ़ियों का दृष्टान्त (मत्ति 25: 14-30) हमें बताता है, कि प्रभु ईश्वर अपनी प्रज्ञा के अनुसार लोगों को क्षमताएं तथा कृपाएं देते रहते हैं। संत पौलुस कहते हैं, “ईश्वर न तो अपने वरदान वापस लेता और न अपना बुलावा रद्द करता है” (रोमियों 11:29) ईश्वर हम से आशा करते हैं कि हम ईश्वर के कृपादानों के लिए न केवल कृतज्ञ बने रहें, बल्कि उनके अनुसार अपने जीवन में परिवर्तन लायें। पवित्र बाइबिल की भाषा में, हमें अच्छे फल उत्पन्न करना चाहिए। प्रभु येसु ने स्वयं खोराजि़न, बेथसाइदा तथा कफ़रनाहूम में सुसमाचार सुनाया था। स्वर्ग के ईश्वर ने स्वयं धरती पर चल कर मनुष्य को अपना वचन सुनाया और उन्हें मुक्ति की राह दिखायी, उनके सामने चमत्कार किये, रोगियों को चंगा किया। तीरुस तथा सिदोन को भी इतना बडा सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था। फिर भी इन शहरों के लोगों ने येसु के सन्देश पर ध्यान नहीं दिया। इसलिए येसु इन शहरों के लोगों को धिक्कारते हुए कहते हैं, “न्याय के दिन तुम्हारी दशा की अपेक्षा तीरुस और सिदोन की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।” हमारे जन्म से लेकर अभी तक हमने भी कितने सारे वरदान प्राप्त कर चुके हैं। क्या हम उन वरदानों के अनुसार कार्य करते तथा फल लाते हैं।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
The Lord keeps giving us his graces and blessings. The parable of the talents (Mt 25:14-30) tells us that the Lord gives us abilities and talents according to His wisdom. St. Paul tells us, “God's gifts and his call are irrevocable” (Rom 11:29). The Lord expects that we not only remain grateful to him but also bring changes in our lives. In the language of the Bible, we need to produce good fruits. Jesus himself preached the good news in Chorazin, Bethsaida and Capernaum. God Almighty himself walked on the face of the earth and preached the good news, showed them the way of salvation, healed the sick and worked many miracles. What a great privilege! Tyre and Sidon did not enjoy such a great privilege. Yet the people of these towns did not respond positively to the message of Jesus. That is why Jesus says, “it shall be more tolerable in the judgment for Tyre and Sidon than for you” (Lk 10:14). From our birth until now we have received innumerable graces and blessings from the Lord. Have we responded positively to these graces and blessings?
✍ -Fr. Francis Scaria