हे मेरी प्रजा ! ढारस रखो तुम इस्राएल का नाम बनाये रखती हो । तुम विनाश के लिए गैरयहूदियों के हाथ नहीं बिकी हो । तुमने ईश्वर का क्रोध भड़काया था, इसलिए तुम अपने शत्रुओं के हवाले कर दी गयी। तुमने अपने सृष्टिकर्ता को अप्रसन्न किया, क्योंकि तुमने ईश्वर को नहीं, बल्कि अपदेवताओं को बलि चढ़ायी थी। तुम ने शाश्वत ईश्वर को भुला दिया, जो तुम्हें भोजन दिया करता था। तुमने येरुसालेम को दुःख पहुँचाया, जिसने तुम्हारा पालन किया है। येरुसालेम ने ईश्वर का क्रोध तुम पर आते देखा और कहा, "हे सियोन की पड़ोसिनो ! मेरी बात सुनो ! ईश्वर ने मुझ पर बड़ा शोक भेजा। मैंने देखा कि शाश्वत ईश्वर ने मेरी प्रजा को बन्दी बना कर निर्वासित किया है। मैंने आनन्दित हो कर उसका पालन-पोषण किया, किन्तु आँसू बहाते हुए और दुःखी हो कर मैंने उसे जाते हुए देखा । मैं विधवा तथा सब से परित्यक्ता हूँ – कोई मेरा उपहास न करे। मैं अपनी प्रजा के पापों के कारण अकेली रह गयी हूँ, क्योंकि उसने ईश्वर की संहिता का मार्ग छोड़ दिया है।" "हे मेरी प्रजा ! ढारस रखो ! ईश्वर की दुहाई दो, क्योंकि जिसने यह सब तुम पर आने दिया, वही तुम्हारी सुध लेगा । तुम ने पहले ईश्वर से दूर हो जाने की बात सोची थी। अब दस-गुने उत्साह से उसके पास लौटने की चेष्टा करो, क्योंकि जिसने तुम पर इन विपत्तियों को आने दिया, वही तुम्हारा उद्धार कर तुम्हें अनन्त आनन्द प्रदान करेगा।"
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु दरिद्रों की पुकार सुनता है।
1. दीन-हीन यह देख कर आनन्दित हो उठेंगे, प्रभु-भक्तों में नवजीवन का संचार होगा; क्योंकि प्रभु दरिद्रों की पुकार सुनता है, वह अपनी पराधीन प्रजा का तिरस्कार नहीं करता । आकाश और पृथ्वी प्रभु की स्तुति करें, समुद्र भी और उस में विचरने वाले जन्तु।
2. ईश्वर सियोन का उद्धार करेगा और यहूदा के नगरों का पुनर्निर्माण करेगा। उसकी प्रजा लौट कर वहाँ आ जायेगी । उसके सेवकों के उत्तराधिकारी वहाँ बस जायेंगे, प्रभु के भक्त वहाँ निवास करेंगे ।
अल्लेलूया ! हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। अल्लेलूया !
बहत्तर शिष्य सानन्द लौटे और बोले, "हे प्रभु! आपके नाम के कारण अपदूत भी हमारे अधीन हैं।" येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "मैंने शैतान को बिजली की तरह स्वर्ग से गिरते देखा। मैंने तुम्हें साँपों, बिच्छुओं और बैरी की सारी शक्ति को कुचलने का सामर्थ्य दिया है कुछ भी तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकेगा। लेकिन, इसलिए आनन्दित न हो कि अपदूत तुम्हारे अधीन हैं, बल्कि इसलिए आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं।" उसी घड़ी येसु ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर आनन्द के आवेश में कहा, "हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। हाँ, पिता, यही तुझे अच्छा लगा। मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर यह कोई भी नहीं जानता कि पुत्र कौन है और पुत्र को छोड़ कर यह कोई भी नहीं जानता कि पिता कौन है। केवल वही जानता है जिसके लिए पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे।" तब उन्होंने अपने शिष्यों की ओर मुड़ कर एकांत में उन से कहा, "धन्य हैं वे आँखें, जो यह सब देखती हैं जिसे तुम देखते हो ! क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और राजा देखना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उनको देखा नहीं और जो बातें तुम सुन रहे हो, वे उन को सुनना चाहते थे, परन्तु उन को सुना नहीं।"
प्रभु का सुसमाचार।
येसु ने अपने शिष्यों को ईश्वरीय बुद्धि और ज्ञान प्रकट करने के लिए स्वर्गीय पिता को धन्यवाद देते है। येसु बौद्धिक गौरव की तुलना बच्चों जैसी सादगी और विनम्रता से करते हैं। सरल हृदय वाले उस व्यक्ति पर अपनी निर्भरता और विश्वास रखते हैं जो अधिक बड़ा, बुद्धिमान और अधिक भरोसेमंद है। येसु के शब्दों में एक चेतावनी है कि अहंकार हमें ईश्वर के प्रेम और ज्ञान से दूर रख सकता है। यह हमारे जीवन के लिए ईश्वर की सच्चाई और बुद्धि के प्रति मन को बंद कर देता है। येसु के साथ मिशनरी शिष्यों का गहरा जुड़ाव, पिता के साथ उनकी प्रेमपूर्ण, दिव्य एकता, मिशनरी प्रयास के लिए खुशी, जुनून और उत्साह देता है। अपनी सफलता पर खुशी मनाने के बजाय, मिशनरी शिष्य अपने गुरु के साथ प्रेम और सहभागिता में खुशी मनाते हैं। आइए हम ईश्वर के प्रकटीकरण को पहचानने के लिए तत्पर रहें। आइए हम अपने विश्वास के उपहार पर आनन्द मनाएँ।
✍फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.Jesus thanks the Father in heaven for revealing to his disciples the wisdom and knowledge of God. Jesus contrasts intellectual pride with child-like simplicity and humility. The simple of heart acknowledge their dependence and trust in the one who is greater, wiser, and more trustworthy. Jesus' words contain a warning that pride can keep us from the love and knowledge of God. It closes the mind to God's truth and wisdom for our lives. The profound communion of missionary disciples with Jesus, in his loving, divine unity with the Father, gives joy, passion, and zeal for the missionary effort. Rather than rejoicing in their own success, missionary disciples rejoice in love, in communion with their Master. Let us be open to recognise the revelation of God. Let us rejoice at the gift of our faith.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
जब बहत्तर शिष्यों ने सानन्द लौट कर प्रभु येसु को उनके कार्यों की सफलता के बारे में बताया, तब प्रभु येसु ने उनकी बातों को ध्यान से सुना। शिष्य इस बात पर गर्व कर रहे थे कि येसु के नाम के कारण अपदूत भी उनके अधीन हुए थे। लेकिन प्रभु ने उनसे कहा कि उन्हें इसलिए आनन्दित नहीं होना चाहिए कि अपदूत भी उनके अधीन होते हैं, बल्कि इसलिए आनन्दित होना चाहिए कि उनके नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं। प्रभु येसु अपने शिष्यों को प्रशिक्षण दे रहे थे। उन्होंने उनको दो-दो करके भेजा था। जब वे वापस आ कर रिपोर्ट देते हैं, तब प्रभु उन्हें बताते हैं कि उनके कार्यों का वे स्वयं सांसारिक दृष्टि से मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं। उनके हृदयों को परखने वाले प्रभु ईश्वर ही उनके कार्यों का मूल्यांकन कर सकते हैं। सभी सांसारिक उपलब्धियाँ हालांकि वे महान हो सकती हैं, स्वर्ग की सबसे छोटी मान्यता की तुलना में कुछ भी नहीं हैं। न्याय के दिन सिंहासन पर विराजमान मानवपुत्र अपने दायें के लोगों से कहेंगे, “’मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है” (मत्ति 25:34)। क्या हम यह सुनने के काबिल होंगे?
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
When the seventy-two disciples came back and reported to the Lord their success-stories, Jesus listened to them patiently. The disciples felt great and rejoiced that even evil spirits submitted to them because of the name of Jesus. Jesus told them that they should not rejoice because the evil spirits submitted to them, but because their names are written in heaven. Jesus had sent his disciples two by two on a training session. They came back and reported to Jesus all that they did and experienced during their preaching. Then Jesus made them understand that they should not evaluate their performance in an earthly way, instead they should allow themselves to be evaluated by Jesus who knows their hearts. All earthly achievements, however great they may be, are nothing compared to the smallest recognition in heaven. On the day of the final judgment, the Son of Man seated on the throne will say to the people on his right, “‘Come, O blessed of my Father, inherit the kingdom prepared for you from the foundation of the world” (Mt 25:34). Will we be fortunate to hear these words?
✍ -Fr. Francis Scaria