प्रभु की वाणी अमित्तय के पुत्र योना को यह कहते हुए सुनाई पड़ी, "उठो ! महानगर निनिवे जा कर वहाँ के लोगों को डाँटो, क्योंकि मैं उनकी बुराई को अनदेखा नहीं कर सकता।" किन्तु योना ने प्रभु के सामने से भाग कर तरशीश के लिए प्रस्थान किया। वह याफा पहुँचा और उसे वहाँ तरशीश जाने वाला जहाज मिला। उसने किराया दिया और प्रभु के सामने से तरशीश भागने के उद्देश्य से वह नाव पर सवार हो गया । प्रभु ने समुद्र पर जोरों की आँधी भेजी और समुद्र में ऐसा भयंकर तूफान पैदा हुआ कि जहाज टूटने-टूटने को हो गया। मल्लाहों पर भय छा गया और वे अपने-अपने देवता की दुहाई देने लगे। उन्होंने जहाज का भार कम करने के लिए सामान समुद्र में फेंक दिया। योना जहाज के भीतरी भाग में उतर कर लेट गया था और गहरी नींद सो रहा था। कप्तान ने उसके पास आ कर कहा, "सोते क्यों हो? उठ कर अपने ईश्वर की दुहाई दो। वह ईश्वर शायद हमारी सुध ले, जिससे हमारा विनाश न हो।" इसके बाद मल्लाह एक दूसरे से कहने लगे, "आओ! हम चिट्ठी डाल कर देखें कि किस व्यक्ति के कारण यह विपत्ति हम पर आयी है।" उन्होंने चिट्ठी डाली और योना का नाम निकला। उन्होंने उस से कहा, "हमें अपना परिचय दो। तुम कहाँ से आये? तुम किस देश के निवासी हो? किस राष्ट्र के सदस्य हो?" उसने उन्हें उत्तर दिया, "मैं इब्रानी हूँ। मैं स्वर्ग के ईश्वर, प्रभु पर श्रद्धा रखता हूँ, जिसने समुद्र और पृथ्वी बनायी है।" मल्लाह यह सुन कर बहुत डर गये और उन्होंने उस से कहा, "तुमने ऐसा क्यों किया?" योना ने उन्हें बताया था कि वह प्रभु के सामने से भाग गया था। तब उन्होंने उस से कहा, "हम तुम्हारे साथ क्या करें, जिससे समुद्र हमारे लिए शांत हो जाये?" क्योंकि समुद्र में तूफान बढ़ता जा रहा था। उसने उन्हें उत्तर दिया, "मुझे उठा कर समुद्र में फेंक दो और समुद्र तुम्हारे लिए शांत हो जायेगा। क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरे ही कारण यह भयंकर तूफान तुम लोगों को सता रहा है।" इस पर मल्लाहों ने डाँड़ के सहारे जहाज को किनारे तक पहुँचाने का प्रयत्न किया, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके, क्योंकि समुद्र में उनके चारों ओर ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं। तब उन्होंने यह कहते हुए प्रभु से प्रार्थना की, "हे प्रभु! इस मनुष्य की हत्या से हमारा विनाश न हो। तू हम पर निर्दोष रक्त बहाने का अभियोग नहीं लगा। क्योंकि, हे प्रभु! तूने चाहा कि ऐसा हो।" इस पर उन्होंने योना को उठा कर समुद्र में फेंक दिया और समुद्र शांत हो गया। मल्लाह प्रभु से बहुत डर गये। उन्होंने प्रभु को बलि चढ़ायी और मन्नतें मानी। प्रभु के आदेशानुसार एक मछली योना को निगल गया और योना तीन दिन और तीन रात मछली के पेट में पड़ा रहा। इसके बाद प्रभु ने मछली को आदेश दिया और उसने योना को तट पर उगल दिया।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु! तूने मुझे गर्त्त से निकाल दिया।
1. मैंने अपने संकट में प्रभु की दुहाई दी और उसने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली। मैंने अधोलोक में से तुझे पुकारा और तूने मेरी सुनी।
2. तूने मुझे गहरे महासागर में फेंक दिया था, बाढ़ ने मुझे घेर लिया था। तेरी उमड़ती लहरें मुझे डुबा कर ले गयी थी।
3. मैंने अपने मन में कहा, तूने मुझे अपने सामने से निकाल दिया। मैं तेरा पवित्र मंदिर फिर कैसे देख पाऊँगा?
4 जब मैं निराशा में डूबा जा रहा था, तो मैंने प्रभु को याद किया और मेरी प्रार्थना तेरे पवित्र मंदिर में तेरे पास पहुँची।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ मैंने जैसे तुम लोगों को प्यार किया है, वैसे तुम भी एक दूसरे को प्यार करो।" अल्लेलूया !
किसी दिन एक शास्त्री आ कर इस प्रकार येसु की परीक्षा करने लगा, "गुरुवर ! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?" येसु ने उस से कहा, "संहिता में क्या लिखा है? तुम उस में क्या पढ़ते हो?" उसने उत्तर दिया, "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।" येसु ने उस से कहा, "तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे ।" इस पर उसने अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए येसु से कहा, "लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?" येसु ने उसे उत्तर दिया, "एक मनुष्य येरुसालेम से येरिको जा रहा था और वह डाकुओं के हाथों पड़ गया। उन्होंने उसे लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ कर चले गये । संयोग से एक याजक उसी राह से जा रहा था और उसे देख कर कतरा कर चला गया । इसी प्रकार एक लेबी वहाँ आया और उसे देख कर वह भी कतरा कर चला गया। इसके बाद एक समारी यात्री वहाँ आ गया और उसे देख कर उस को तरस हो आया। वह उसके पास गया और उसने उसके घावों पर तेल और अंगूरी डाल कर पट्टी बाँध दी। तब वह उसे अपनी ही सवारी पर बैठा कर एक सराय ले गया और उसने उसकी सेवा-शुश्रूषा की। दूसरे दिन उसने दो दीनार निकाल कर मालिक को दिये और उससे कहा- आप इसकी सेवा-शुश्रूषा करें। यदि कुछ और खर्च हो जाये, तो मैं लौटते समय आप को चुका दूँगा।' तुम्हारी राय में उन तीनों में से कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?" उसने उत्तर दिया, "वही, जिसने उस पर दया की।" येसु बोले, "जाओ, तुम भी ऐसा ही करो ।"
प्रभु का सुसमाचार।
सुसमाचार में, एक शास्त्री पूछता है कि उसे किससे प्रेम करना चाहिए। हालाँकि, गहरे स्तर पर, वह येसु से सीमाओं को परिभाषित करने के लिए कह रहा है ताकि उसे पता चले कि उसे किससे प्यार करने की आवश्यकता नहीं है। यदि वह यह निर्धारित कर सकता है कि उसका पड़ोसी कौन है, तो उसे यह भी पता चल जाएगा कि उसका पड़ोसी कौन नहीं है। दृष्टांत में हम अलग-अलग लोगों को पाते है लेकिन केवल समारी ही घायल व्यक्ति की ज़रूरत पर प्रतिक्रिया करता है। तेल और दाखरस का उपयोग न केवल घावों पर मरहम लगाने के लिए किया जाता है, बल्कि यहूदी पूजन विधि में भी किया जाता है। याजक और लेवी, जो मंदिर में तेल और दाखरस का उपयोग करते हैं, राह पर मानव पीड़ा को दूर करने के लिए तेल और दाखरस का उपयोग करने में विफल रहे। समारी का कार्य डाकुओ के कार्यो से अलग था। डाकुओ ने उस मनुष्य को लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ दिया। समारी उस आदमी के इलाज के लिए पैसा देता है, उसे अच्छे हाथों में छोड़ देता है, और वापस लौटने का वादा करता है। येसु हमें पड़ोसी को सीमाओं के आधार पर नहीं, बल्कि रिश्तों और मानवीय ज़रूरतों के आधार पर परिभाषित करने के लिए प्रेरित करते हैं।
✍फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.In the Gospel, the lawyer is asking who he must love. However, at a deeper level, he is asking Jesus to define the boundaries so that he will know who he is not required to love. If he can determine who his neighbor is, he will also know who is not his neighbor. In the parable we encounter different people but only the Samaritan responds to the need of the wounded man. Oil and wine are not only used for dressing wounds, but are also used in Jewish worship. The priest and Levite, who handle oil and wine at the temple, fail to use them to relieve human suffering along the road. The Samaritan’s actions reverse those of the robbers. They robbed the man, left him to die, and abandoned him. The Samaritan pays for the man, leaves him in good hands, and promises to return. Jesus leads us to define neighbor, not in terms of boundaries, but in terms of relationships and human need.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
भले सामरी का दृष्टान्त ख्रीस्तीय उदारता का प्रतीक रहा है। दृष्टांत के माध्यम से, ईश्वर दूसरों के प्रति हमारे दान का मार्ग और असीमता बताते हैं। हमें यह नहीं पूछना है कि मेरा पड़ोसी कौन है बल्कि यह कि मैं किसका पड़ोसी हो सकता हूं।
याजक और लेवी के लिए जो घायल व्यक्ति के रास्ते से गुजरे थे, वह एक बाधा और एक समस्या थी जिसमें वे शामिल नहीं होना चाहते थे। क्योंकि उनके लिए शायद मंदिर में ईश्वर की सेवा करना सबसे महत्वपूर्ण और जरूरी बात थी। हालाँकि, सामरी के लिए, यह परमेश्वर की सेवा करने का एक अवसर था। उसने घायल व्यक्ति की देखभाल करने में असाधारण उदारता और विचारशीलता दिखाई। दृष्टांत के माध्यम से, येसु बताते हैं कि हर कोई जरूरतमंद हमारी सामाजिक और ख्रिस्तीय जिम्मेदारी बन जाता है। दूसरा, हमारी क्षमता के भीतर एक पूर्ण और व्यापक मदद जरूरतमंदों को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। मदद के लिए कोई मौसम या अनुकूल स्थिति की जरुरत नहीं है। हमें एक सामरी की तरह गतिशील होना चाहिए, स्वेच्छा से और लोगों तक पहुंचने के लिए अपने जीवन और संसाधनों के साथ उदार होना चाहिए। सन्त विंसेंट डीपॉल ने इन शब्दों के साथ येसु के मन को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है, "जब हम वेदी पर ईश्वर की आराधना करते हैं और कोई द्वार पर घंटी बजाता है तो हमें उठना चाहिए और दरवाजे पर ईश्वर की सेवा करना शुरू करना चाहिए।"
✍फादर रोनाल्ड मेलकम वॉनThe parable of the Good Samaritan has been the epitome of Christian charity. Through the parable, the Lord explains the way and the limitlessness of our charity towards others. We are not to ask who is my neighbor but rather whose neighbor can I be.
For the priest and the Levite who had passed by the wayside of the wounded person, he was an obstacle and a problem they did not want to get involved in. For them perhaps serving God in the temple was the most important and urgent thing. However, for the Samaritan, it was an opportunity to serve God. He showed extraordinary generosity and thoughtfulness in taking care of the wounded man. Through the parable, Lord explains that everyone in need becomes our social and Christian responsibility. Secondly, it is not just a help but a complete and comprehensive help within our capacity should be made available to the needy. There is no season or a tailor-made situation for help. One should be like the Samaritan dynamic, willingly and generous with his life and resources to reach out to the people. St. Vincent DePaul beautifully sums up the mind of Jesus with these words, “while we adore God on the altar and someone ring the bell. We must get up and begin to serve God at the doorstep.”
✍ -Fr. Ronald Melcum Vaughan