प्रभु कहता है, तुम लोगों ने मेरे विषय में कठोर शब्द कहे हैं। फिर भी तुम पूछते हो "हमने आपस में तेरे विरुद्ध क्या कहा है?" तुम लोगों ने यह कहा, "ईश्वर की सेवा करना व्यर्थ है। उसकी आज्ञाओं का पालन करने से और विश्वमंडल के प्रभु के लिए टाट के कपड़े पहनने से हमें क्या लाभ? हम तो घमंडियों को धन्य समझते हैं जो बुराई करते हैं, वे फलते-फूलते हैं और जो ईश्वर की परीक्षा लेते हैं, उन्हें कोई हानि नहीं होती ।" तब प्रभु-भक्तों ने आपस में बातें कीं। प्रभु ने ध्यान दे कर उनकी बातचीत सुनी और उसके सामने प्रभु-भक्तों और उसके नाम पर श्रद्धा रखने वालों के विषय में एक स्मारिका लिखी गयी । विश्वमंडल का प्रभु कहता है, "जो दिन मैंने निश्चित किया, उस दिन वे मेरे अपने होंगे और जिस तरह कोई अपनी सेवा करने वाले पुत्र पर दया करता है, उसी तरह मैं भी उन पर दया करूँगा। तब तुम लोग धर्मी और विधर्मी, ईश्वर की सेवा करने और उसकी सेवा नहीं करने वाले, दोनों का भेद पहचानने लगोगे ।" क्योंकि वह दिन आ रहा है। वह धधकती भट्ठी के सदृश है। सभी अभिमानी तथा कुकर्मी खूँटियों के सदृश होंगे । विश्वमंडल का प्रभु यह कहता है, "वह दिन उन्हें भस्म कर देगा। उनका न तो डंठल रह जायेगा और न जड़ ही। किन्तु तुम पर, जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी ।"
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : धन्य है वह मनुष्य, जो तुझ पर भरोसा रखता है !
1. धन्य है वह मनुष्य, जो दुष्टों की सलाह नहीं मानता, जो पापियों के मार्ग पर नहीं चलता और अधर्मियों के साथ नहीं बैठता, जो प्रभु का नियम हृदय से चाहता और रात-दिन उसका मनन करता है।
2. वह उस वृक्ष के सदृश है, जो जलस्त्रोत के पास लगाया गया है, जो समय पर फल देता है और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। वह मनुष्य अपने सब कामों में सफल हो जाता है
3. दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, नहीं होते, वे तो पवन द्वारा छितरायी हुई भूसी के सदृश हैं। प्रभु धर्मियों के मार्ग की रक्षा करता है, किन्तु दुष्टों का मार्ग विनाश की ओर ले जाता है।
अल्लेलूया ! हे प्रभु ! हमारे हृदय का द्वार खोल दे, जिससे हम तेरे पुत्र की शिक्षा स्वीकार करें। अल्लेलूया !
येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "मान लो कि तुम में से कोई आधी रात को अपने किसी मित्र के पास जा कर कहे, 'दोस्त, मुझे तीन रोटियाँ उधार दो, क्योंकि मेरा एक मित्र सफर में मेरे यहाँ पहुँचा है और उसे खिलाने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है', और वह भीतर से उत्तर दे, 'मुझे तंग न करो। अब तो द्वार बन्द हो चुका है। मेरे बाल-बच्चे और मैं, हम सब बिस्तर पर हैं। मैं उठ कर तुम को नहीं दे सकता।' मैं तुम से कहता हूँ वह मित्रता के नाते भले ही उठ कर उसे कुछ न दे, किन्तु उसके आग्रह के कारण वह उठेगा और उसकी आवश्यकता पूरी कर देगा ।" "मैं तुम से कहता हूँ - माँगो और तुम्हें दिया जायेगा; ढूँढ़ो और तुम्हें मिल जायेगा; खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जायेगा। क्योंकि जो माँगता है, उसे दिया जाता है; जो ढूँढ़ता है, उसे मिल जाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाता है।" "यदि तुम्हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन है जो उसे पत्थर देगा? अथवा मछली माँगे, तो मछली के बदले उसे साँप देगा? अथवा अंडा माँगे, तो उसे बिच्छू देगा? बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीजें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?"
प्रभु का सुसमाचार।