वर्ष का अट्ठाईसवाँ सप्ताह, बुधवार - वर्ष 1

📕पहला पाठ

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:1-11

"वह प्रत्येक को उसके कर्मों का फल देगा, पहले यहूदी और युनानी को ।"

दूसरों पर दोष लगाने वाले ! तुम चाहे जो भी हो, अक्षम्य ही हो। तुम दूसरों पर दोष लगाने के कारण अपने को दोषी ठहराते हो; क्योंकि तुम, जो दूसरों पर दोष लगाते हो, वे ही कुकर्म किया करते हो। हम जानते हैं कि ईश्वर ऐसे कुकर्म करने वालों को न्यायानुसार दण्डाज्ञा देता है। तुम ऐसे कुकर्म करने वालों पर दोष लगाते हो और स्वयं वे ही कुकर्म करते हो, तो क्या तुम समझते हो कि ईश्वर की दण्डाज्ञा से बच जाओगे ! अथवा क्या तुम ईश्वर की असीम दयालुता, सहनशीलता और धैर्य का तिरस्कार करते और यह नहीं समझते कि ईश्वर की दयालुता तुम्हें पश्चात्ताप की ओर ले जाना चाहती है ! तुम अपने हठ और अपने हृदय के अपश्चात्ताप के कारण कोप के दिवस के लिए अपने विरुद्ध कोप का संचय कर रहे हो, जब ईश्वर का न्यायसंगत निर्णय प्रकट हो जायेगा और वह प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का फल देगा। जो लोग धैर्यपूर्वक भलाई करते हुए महिमा, सम्मान और अमरत्व की खोज में लगे रहते हैं, ईश्वर उन्हें अनन्त जीवन प्रदान करेगा और जो लोग स्वार्थी हैं और सत्य अट्ठाईसवाँ सप्ताह - बुधवार से विद्रोह करते हुए अधर्म पर चलते हैं, वे ईश्वर के क्रोध और प्रकोप के पात्र होंगे। बुराई करने वाले प्रत्येक मनुष्य को - पहले यहूदी और फिर युनानी को - कष्ट और संकट सहना पड़ेगा और भलाई करने वाले प्रत्येक मनुष्य को - महिमा, सम्मान और शांति मिलेगी; क्योंकि ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता ।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 61:2-3,6-7,9

अनुवाक्य : हे प्रभु ! तू प्रत्येक को उसके कर्मों का फल देता है।

1. मुझे ईश्वर पर ही भरोसा है, उसी से सुरक्षा मिलती है। वही मेरी चट्टान है, मेरी सुरक्षा, मेरा गढ़ - मैं विचलित नहीं होऊँगा

2. मेरी आत्मा ईश्वर पर ही भरोसा रखे, क्योंकि उसी से सुरक्षा मिलती है। वही मेरी चट्टान है, मेरी सुरक्षा, मेरा गढ़ - मैं विचलित नहीं होऊँगा

3. सभी लोग उसी की शरण लें और हर समय उसी पर भरोसा रखें। उसी के सामने अपना हृदय खोल दो, क्योंकि ईश्वर हमारा आश्रय है।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।" अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 11:42-46

“ऐ फ़रीसियो ! धिक्कार तुम लोगों को ! ऐ शास्त्रियो ! धिक्कार तुम लोगों को !"

प्रभु ने कहा, "ऐ फरीसियो ! धिक्कार तुम लोगों को ! क्योंकि तुम पुदीने, रास्ने और हर प्रकार के साग का दशमांश तो देते हो; लेकिन न्याय और ईश्वर के प्रति प्रेम की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना, तुम्हारे लिए उचित था। ऐ फरीसियो, धिक्कार तुम लोगों को ! क्योंकि तुम सभागृहों में प्रथम आसन और बाजारों में प्रणाम चाहते हो । धिक्कार तुम लोगों को ! क्योंकि तुम उन कब्रों के समान हो, जो दीख नहीं पड़तीं और जिन पर लोग अनजाने ही चलते-फिरते हैं।" इस पर एक शास्त्री ने येसु से कहा, "गुरुवर ! ऐसी बातें कह कर आप हमारा भी अपमान करते हैं।" येसु ने उत्तर दिया, "ऐ शास्त्रियो, धिक्कार तुम लोगों को भी ! क्योंकि तुम मनुष्यों पर बहुत-से भारी बोझ लादते हो और स्वयं उन्हें उठाने के लिए अपनी एक उँगली भी नहीं लगाते ।"

प्रभु का सुसमाचार।