इब्राहीम का विश्वास विचलित नहीं हुआ, उन्हें ईश्वर की प्रतिज्ञा पर सन्देह नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने अपने विश्वास की दृढ़ता द्वारा ईश्वर का सम्मान किया। उन्हें पक्का विश्वास था कि ईश्वर ने जिस बात की प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करने में समर्थ है। इस विश्वास के कारण ईश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है। वह अपने विश्वास के कारण धार्मिक माने गये। धर्मग्रन्थ का यह कथन न केवल इब्राहीम से, बल्कि हम से भी सम्बन्ध रखता है। हम भी विश्वास के कारण धार्मिक माने जायेंगे, यदि हम ईश्वर में विश्वास करेंगे जिसने हमारे प्रभु येसु को मृतकों में से जिलाया है। वही येसु हमारे अपराधों के कारण पकड़वा दिये गये और हमारी पापमुक्ति के लिए जी उठे।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : धन्य है प्रभु, इस्राएल का ईश्वर ! उसने अपनी प्रजा की सुध ली है।
1. उसने अपने दास दाऊद के वंश में हमारे लिए एक शक्तिशाली मुक्तिदाता उत्पन्न किया है। जैसा कि वह अपने पवित्र नबियों के मुख से प्राचीन काल से कहता आया है
2. उसने कहा था कि वह शत्रुओं और सब बैरियों के हाथ से हमें छुड़ायेगा और अपने पवित्र विधान को स्मरण कर हमारे पूर्वजों पर दया करेगा
3. उसने शपथ खा कर हमारे पिता इब्राहीम से कहा था कि वह हम को सब शत्रुओं से मुक्त करेगा, जिससे हम निर्भयता पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर उसके सन्मुख उसकी सेवा कर सकें।
अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं - स्वर्गराज्य उन्हीं का है। अल्लेलूया !
भीड़ में से किसी ने येसु से कहा, "गुरुवर ! मेरे भाई से कहिए कि वह मेरे लिए पैतृक सम्पत्ति का बँटवारा कर दे।" उन्होंने उसे उत्तर दिया, "अरे भई, किसने मुझे तुम्हारा पंच या बँटवारा करने वाला नियुक्त किया है?" तब येसु ने उन से कहा, "सावधान रहो और हर प्रकार के लोभ से बचे रहो। क्योंकि किसी के पास कितनी ही संपत्ति क्यों न हो, उस संपत्ति से उसके जीवन की रक्षा नहीं होती।" फिर येसु ने उन से यह दृष्टान्त सुनाया, "किसी धनवान की जमीन में बहुत फसल हुई थी। वह अपने मन में इस प्रकार विचार करने लगा, 'मैं क्या करूँ? मेरे यहाँ जगह नहीं रही, जहाँ अपनी फसल रख दूँ।' तब उसने कहा, 'मैं यह करूँगा । अपने भण्डारों को तोड़ कर उन से और बड़े भण्डार बनवाऊँगा, उन में अपनी सारी उपज और अपना माल इकट्ठा करूँगा और अपनी आत्मा से कहूँगा अरे भई, तुम्हारे पास बरसों के लिए बहुत-सा माल इकट्ठा है, इसलिए विश्राम करो, खाओ-पीओ और मौज उड़ाओ ।' परन्तु ईश्वर ने उस से कहा, 'ऐ मूर्ख, इसी रात तेरे प्राण तुझ से ले लिये जायेंगे और जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह अब किसका होगा?' यही दशा उसकी होती है जो अपने लिए तो धन एकत्र करता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है।"
प्रभु का सुसमाचार।
धनी बनने का मतलब सिर्फ ढेर सारा पैसा होना नहीं है। इसका अर्थ है दूसरों की तुलना में बहुत अधिक धन होना और विशेष रूप से अपनी आवश्यकता से अधिक धन होना। धन व्यक्ति को ईश्वरविहीन और हृदयहीन बना सकता है। मूर्ख धनी के दृष्टांत में, मूर्ख धनी प्राप्त धन के लिए ईश्वर का आभारी होने के बजाय स्वयं को अपने धन का केंद्र बना लिया। वह मूर्ख धनी अपने दृष्टिकोण में ईश्वरविहीन था। अमीर और लाज़रुस के दृष्टांत में, अमीर ब्यक्ति लाज़रुस को अपने दरवाजे पर मदद के इंतजार में लेटे देखकर आंखें बंद कर लीं। अमीर ब्यक्ति हृदयहीन था। सुसमाचार में मनुष्य की वास्तविक चिंता कानूनी नहीं थी। असली समस्या तो उसका लालच था। येसु मनुष्य को दिखाए कि वास्तव में अमीर कैसे बनना है, अर्थात्, ईश्वर के प्रति अमीर कैसे बनना है। लालच आपको केवल गरीब बनाता है, क्योंकि यह आपकी सारी ऊर्जा और ध्यान उस चीज़ में लगाता है जो आपके पास नहीं है। ईश्वर प्रचुरता और उदारता के बारे में है। आइए हम प्रचुर दान के उपहार के बदले में लालच की गरीबी को त्याग दें, जैसा कि मसीह ने हमारे लिए खुद को अर्पित कर दिया।
✍फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.To be rich is not just to have a lot of money. It is to have a lot more money than others and especially to have more money than one needs. Wealth can make one Godless and heartless. In the parable of the rich fool, instead of being grateful to God for the wealth received, the rich fool made oneself the center of his wealth. The rich fool was Godless in his approach. In the parable of the rich man and Lazarus, the rich man turned a blind eye to Lazarus lay waiting for his help at his door step. The rich man was heartless. The real concern of the man in the gospel was not legal. The real problem was his greed. Jesus showed the man how to be really rich, namely, how to be rich toward God. Greed just makes you poorer, because it puts all your energy and attention into what you don’t have. God is all about abundance and generosity. May we give up the poverty of greed in exchange for the gift of abundant giving, as Christ who gave himself for us.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
प्रभु ईश्वर सुसमाचार में उस व्यक्ति को जो ईश्वर तथा दूसरों को भूल कर अपने ही आनन्द के बारे में सोचता है, मूर्ख कहते हैं। सूक्ति ग्रन्थ में कई लोगों को मूर्ख कहा जाता है।
पवित्र वचन के अनुसार नास्तिक मूर्ख है और उसे प्रज्ञा प्राप्त नहीं होती। “मूर्ख अपने मन में कहते हैं: "ईश्वर है ही नहीं" (स्तोत्र 14:1; देखें स्तोत्र 53:1)। ईसके ठीक विपरीत, बुध्दिमान ईश्वर की खोज करता है। “बुद्धिमान् प्रभु से डरता और बुराई से दूर रहता है। मूर्ख लापरवाह है और अपने को सुरक्षित मानता है” (सूक्ति 14:6)। “प्रज्ञा का मूल स्त्रोत प्रभु पर श्रद्धा है, किन्तु मूर्ख लोग प्रज्ञा और अनुशासन का तिरस्कार करते हैं” (सूक्ति 1:7)।
पवित्र वचन यह भी कहता है कि मूर्ख अपनी बुध्दि पर भरोसा रखता है। “मूर्ख विवेकपूर्ण बातों में रूचि नहीं लेता, बल्कि अपने ही विचार प्रकट करता रहता है” सूक्ति 18:2)। “अपनी बुद्धि का भरोसा करने वाला मूर्ख है, किन्तु प्रज्ञा के मार्ग पर चलने वाला सुरक्षित रहेगा” (सूक्ति 28:26)। “यदि मूर्ख मौन रहता, तो वह भी बुद्धिमान् समझा जाता। यदि वह अपना मुँह नहीं खोलता, तो वह समझदार माना जाता” (सूक्ति 17:28))।
इस प्रकार की गतिविधियों के कारण मूर्ख विनाश की ओर जाता है। “ जो बुद्धिमान् है, वह आज्ञाओें का पालन करता है; किन्तु बकवादी मूर्ख का विनाश होता है” (सूक्ति 10:8)। “बुद्धिमान् नारी अपने लिए घर बनाती है, किन्तु मूर्ख स्त्री अपने हाथों से अपना घर गिराती है” सूक्ति 14:1)। “मूर्ख निरर्थक बातें कहता और अपने मन में बुराई की बात सोचता है। वह अधर्म का आचरण करता और प्रभु की निन्दा करता है। वह भूखों की भूख दूर नहीं करता और प्यासों को पानी नहीं पिलाता।“ (इसायाह 32:6)
मूर्ख झगडालू होता है। “मूर्ख के होंठ झगड़ा पैदा करते हैं, उसका मुँह मारपीट को निमन्त्रण देता है। मूर्ख का मुँह उसके विनाश का कारण है। उसके होंठ उसके लिए फन्दा बिछाते हैं।“ (सूक्ति 18:6-7) “मूर्ख अपना क्रोध तुरन्त प्रकट करता, किन्तु समझदार व्यक्ति अपमान पी जाता है” (सूक्ति 12:16)। “ विवाद से अलग रहना मनुष्य को शोभा देता है। सभी मूर्ख झगड़ालू होते हैं” (सूक्ति20:3)। “मूर्ख चिल्ला कर अपना क्रोध अभिव्यक्त करता, किन्तु बुद्धिमान् उसे वष में रख कर शान्त करता है” (सूक्ति 29:11)।
पवित्र वचन के अनुसार हमें मूर्खों की संगति में नहीं रहना चाहिए। “जो बुद्धिमानों का सत्संग करता, वह बुद्धिमान् बनेगा; किन्तु जो मूर्खों से मेल-जोल रखता, वह संकट में पड़ेगा” (सूक्ति 13:20)। “मूर्ख को सम्बोधित मत करो। वह तुम्हारी ज्ञान की बातों का तिरस्कार करेगा” (सूक्ति23:9)। “मूर्ख से दूर रहो, तुम उसके मुख से ज्ञान की बातें नहीं सुनोंगे। अपने आचरण का ध्यान रखना-यह बुद्धिमान् की प्रज्ञा है। दूसरों को धोखा देना- यह मूर्खों की नासमझी है। मूर्ख पाप का प्रायश्चित नहीं करता। धर्मियों को प्रभु की कृपा प्राप्त है।“ (सूक्ति 14:7-9)
इस प्रकार मूर्ख प्रभु ईश्वर तथा दूसरों को भूल कर जीवन बिताता है, अपने विचारों पर ही ध्यान देता है, झगडालू होता है, विनाश की ओर जाता है और इसलिए किसी को उसकी संगति में नहीं रहना चाहिए।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
In today’s Gospel passage, God addresses a man who forgets God and others and thinks only about himself as ‘fool’.
First of all according to the Word of God, an atheist is a fool and does not have access to God’s wisdom. “Fools say in their hearts, “There is no God.” (Ps 14:1; Ps 53:1). As opposed to this, an intelligent person seeks God and his wisdom. “Leave the presence of a fool, for there you do not find words of knowledge’ (Prov 14:7). “The fear of the Lord is the beginning of knowledge; fools despise wisdom and instruction” (Prov 1:7)
According to the Word of God, a fool relies on his own thoughts. “A fool takes no pleasure in understanding, but only in expressing personal opinion” (Prov 18:2). “Those who trust in their own wits are fools; but those who walk in wisdom come through safely” (Prov 28:26) “Even fools who keep silent are considered wise; when they close their lips, they are deemed intelligent” (Prov 17:28)
In this way a fool proceeds to destruction. “The wise of heart will heed commandments, but a babbling fool will come to ruin” (Prov 10:8). “The wise woman builds her house, but the foolish tears it down with her own hands” (Prov 14:1). “For fools speak folly, and their minds plot iniquity: to practice ungodliness, to utter error concerning the Lord, to leave the craving of the hungry unsatisfied, and to deprive the thirsty of drink” (Is 32:6).
According to the Word of God, fools are quarrelsome. “A fool’s lips bring strife, and a fool’s mouth invites a flogging. The mouths of fools are their ruin, and their lips a snare to themselves.” (Prov 18:6-7) “Fools show their anger at once, but the prudent ignore an insult” (Prov 12:16). “It is honorable to refrain from strife, but every fool is quick to quarrel” (Prov 20:3). “A fool gives full vent to anger, but the wise quietly holds it back” (Prov 29:11).
According to the Word of God it is better to avoid the company of the fools. “Whoever walks with the wise becomes wise, but the companion of fools suffers harm” (Prov 13:20). “Do not speak in the hearing of a fool, who will only despise the wisdom of your words” (Prov 23:9). “Leave the presence of a fool, for there you do not find words of knowledge. It is the wisdom of the clever to understand where they go, but the folly of fools misleads. Fools mock at the guilt offering, but the upright enjoy God’s favor.” (Prov 14:7-9)
Thus a fool forgets God and others, cares for solely for his own thoughts, is quarrelsome, moves towards destruction and hence none should keep his company.
✍ -Fr. Francis Scaria