अब आप लोग अपने मरणशील शरीर में पाप का राज्य स्वीकार नहीं करें और उसकी वासनाओं के अधीन नहीं रहें। आप अपने अंगों को अधर्म के साधन बनने के लिए पाप को अर्पित नहीं करें। आप अपने को मृतकों में से पुनर्जीवित समझ कर ईश्वर के प्रति अर्पित करें और अपने अंगों को धार्मिकता के साधन बनने के लिए ईश्वर को सौंप दें। आप लोगों पर पाप का कोई अधिकार नहीं रहेगा। अब आप संहिता के नहीं, बल्कि अनुग्रह के अधीन हैं। तो, क्या हम इसलिए पाप करें कि हम संहिता के नहीं, बल्कि अनुग्रह के अधीन हैं? कभी नहीं! क्या आप यह नहीं समझते कि आप आज्ञाकारी दास के रूप में अपने को जिसके प्रति अर्पित करते हैं और जिसकी आज्ञा का पालन करते हैं, आप उसी के दास बन जाते हैं? यह दासता चाहे पाप की. हो, जिसका परिणाम मृत्यु है; चाहे ईश्वर की हो, जिसके आज्ञापालन का परिणाम धार्मिकता है। ईश्वर को धन्यवाद कि आप लोग, जो पहले पाप के दास थे, अब सारे हृदय से उस शिक्षा के मार्ग पर चलने लगे, जो आप को प्रदान की गयी है। आप पाप से मुक्त हो कर धार्मिकता के दास बन गये हैं।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु का नाम ही हमारा सहारा है।
1. यदि प्रभु ने हमारा साथ नहीं दिया होता इस्राएल यह दोहराये - यदि प्रभु ने हमारा साथ नहीं दिया होता, तो, जब लोगों ने हम पर चढ़ाई की और हम पर उनका क्रोध भड़का, तब वे हमें जीवित ही निगल गये होते।
2. बाढ़ हमें डुबा ले गयी होती, जलधारा ने हमें बहा दिया होता और चारों ओर उमड़ती लहरों में हम डूब कर मर गये होते। धन्य है प्रभु! उसने हमें बचाया और हम उसके दाँतों में से निकल गये।
हमारी आत्मा, पक्षी की तरह, बहेलिये के फन्दे से निकल गयी है। देखो! फन्दा टूट गया है और हम बच गये। प्रभु का नाम ही हमारा सहारा है। उसी ने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है।
अल्लेलूया! "जागते रहो और तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा। " अल्लेलूया!
येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "यह अच्छी तरह समझ लो यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता। तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा। " पेत्रुस ने उन से कहा, "प्रभु! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए ही कहते हैं या सबों के लिए? " प्रभु ने कहा, "कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् कारिन्दा है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त करेगा ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे? धन्य है वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उसे ऐसा ही करता हुआ पायेगा! मैं तुम से कहे देता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा। परन्तु यदि वह सेवक अपने मन में कहे, 'मेरा स्वामी आने में देर करता है' और वह दास-दासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे, तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी, जिसे वह नहीं जान पायेगा। तब स्वामी उसे कोड़े लगवायेगा और विश्वासघातियों को दण्ड देगा।" "अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया है, और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया है, वह बहुत मार खायेगा। जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया है वह थोड़ी मार खायेगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जायेगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से अधिक माँगा जायेगा।
प्रभु का सुसमाचार।
आज हमारे पास तत्परता पर कुछ और चेतावनियाँ हैं। येसु इंगित करते हैं कि हमारे साथ उनके रिश्ते में और हमारे उनके साथ रिश्ते में अप्रत्याशित तत्व हो सकता है। मानव पुत्र ऐसे घडी आएगा जिसकी हमें आशा नहीं है। आज के सुसमाचार में ईमानदार कारिंदा को उसकी निष्ठा के लिए पुरस्कृत किया जाएगा और उसे स्वामी के सभी संपत्तियों का प्रभारी बनाया जाएगा। ईश्वर की संतान होने का आनंद और विशेषाधिकार अपने साथ एक अद्भुत जिम्मेदारी भी लेकर आता है। ईश्वर प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार जिम्मेदारियाँ देता है और उसी मात्रा में जवाबदेही भी माँगता है। ईश्वर हमसे अपेक्षा करता हैं कि हम उन उपहारों और अनुग्रहों का अच्छा उपयोग करें जो वह हमें देता हैं। जितना अधिक वह देता है, उतनी ही अधिक वह अपेक्षा करता है। प्रभु को वफ़ादारी पसंद है और जो उसके प्रति वफ़ादार हैं उन्हें भरपूर पुरस्कार देता है। प्रभु ने स्वयं को शक्तिशाली और उदारतापूर्वक हमारे साथ साझा किया है। वह हमसे भी ऐसा ही करने की अपेक्षा करता है।
✍फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.Today we have some further warnings on readiness. Jesus indicates that there can be the element of the unexpected in his relationship with us and ours with him. The Son of Man comes at an hour we do not expect. In today’s Gospel the faith manager will be rewarded for his fidelity with being placed in charge of all the master’s possessions. The joy and privilege of being a child of God carries with it an awesome responsibility. God gives responsibilities to each according to their ability and in the same measure demands accountability. God expects us to make good use of the gifts and graces He gives to us. The more He gives, the more He expects. The Lord loves faithfulness and richly rewards those who are faithful to him. The Lord has shared powerfully and bountifully with us. He expects us to do the same.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
दृष्टांत चीजों को हल्के में लेने और शक्ति और विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने की किसी भी प्रवृत्ति के खिलाफ एक कड़ी चेतावनी की ओर इशारा करता है। दृष्टांत तीन विशिष्ट चीजों, क्षमता, जिम्मेदारी और जवाबदेही को इंगित करता है। ख्रीस्तीय धर्म एक जिम्मेदारी है। यह एक स्थिति नहीं बल्कि एक जीवित वास्तविकता है। हमें सभी बुराईयों के खिलाफ विश्वास में निरंतर और चौकस रहने की जरूरत है। कुछ बुराइयां स्पष्ट हैं लेकिन कुछ छिपी हुई हैं। इसलिए, जिस तरह एक चोर अप्रत्याशित रूप से अंधेरे में आता है, उसी तरह कुछ बुराईयां भी होती हैं जो हमारे जीवन में बिना ध्यान-आकर्षण के घर बना लेती हैं। ईसाई धर्म और उसके मूल्यों के लिए सभी खतरों को दूर करना हमारा नैतिक दायित्व है। ईसाई मूल्यों का क्षरण और आस्था का कमजोर होना असंरक्षित कार्य का परिणाम है।
हम सभी के पास समान क्षमता और जिम्मेदारी नहीं होती है। ईश्वर प्रत्येक को उनकी क्षमता के अनुसार जिम्मेदारियां देता है और उसी तरह जवाबदेही की मांग करता है। दृष्टांत में एक नौकर को घर की देखभाल करने का काम सौंपा जाता है। यह जिम्मेदारी सभी को नहीं बल्कि किसी खास व्यक्ति को दी जाती है। ईश्वर के घर में लोगों की अलग-अलग भूमिकाएं और जिम्मेदारियां होती हैं।
अंत में, दृष्टांत जवाबदेही के लिए जोर डालता है। यह स्वतंत्रता के साथ एक बड़ी जिम्मेदारी है। नौकर के पास दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करके अपनी भूमिका का दुरुपयोग करने की शक्ति होती है। हालांकि, एक बात तय है कि उसे उसके सभी कार्यों का हिसाब देना होगा। प्रभु हमें याद दिला रहे हैं कि समय, अवसर, प्रतिभा और जिम्मेदारी को हल्के में न लें, बल्कि सावधान रहें और वह करें जो हमसे अपेक्षित है।
✍फादर रोनाल्ड मेलकम वॉनThe parable points out a stern warning against any tendency to take things for granted and misuse power and privileges. The parable points out three specific things, ability, responsibility, and accountability. Christian faith is a responsibility. It is not a status but a living reality. We need to constantly and watchfully guard the faith against all evil. Some evils are obvious but some are hidden. Therefore, just as a thief comes unexpectedly in the dark so are some evil that creeps into our lives unnoticed. It is our moral obligation to ward off all dangers to the Christian faith and its values. The erosion of the Christian values and dilution of the faith is the result of the unguarded task.
All of us do not have the same ability and responsibility. God gives responsibilities to each according to their ability and in the same measure demands accountability. In the parable a servant is entrusted with the work of taking care of the household. This responsibility is not given to everyone but to a particular person. Therefore, in the house of God people have different roles and responsibilities.
Finally, the parable comes down to accountability. It’s a huge responsibility coupled with freedom. The servant has the power to misuse his role by ill-treating others. However, one thing is certain that he will have to give an account of all our actions. The Lord is reminding us not to take time, opportunities, talents, and responsibility for granted but rather be on guard and do what is expected of us.
✍ -Fr. Ronald Melcum Vaughan
आम तौर पर कुछ गलत करना अपराध या पाप है। लेकिन बाइबल के अनुसार कुछ अच्छा नहीं करना भी पाप है। संत याकूब कहते हैं, "जो मनुष्य यह जानता है कि उसे क्या करना चाहिए, किन्तु नहीं करता, उसे पाप लगता है।" (याकूब 4:17)। प्रभु येसु के बारे में संत पेत्रुस का कहना है कि वे गाँव-गाँव और शहर-शहर घूम कर भलाई करते रहे (देखें प्रेरित-चरित 10:38)। बुराई करना पाप है। लेकिन ईश्वर का वचन कहता है कि भलाई नहीं करना भी पाप है। लूकस 16: 19-31 में अमीर आदमी का पाप यह था कि उसने लाज़रूस का भला नहीं किया। ईश्वर के राज्य में हानिरहित होना पर्याप्त नहीं है। हम इसे कैसे सही ठहरा सकते हैं? ’अच्छा नहीं करने वाला’ पापी कैसे हो सकता है? प्रभु के वचन के अनुसार, एक ईसाई की पहचान एक सेवक की है। एक सेवक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह स्वामी की सेवा करता रहे। यदि वह स्वामी की सेवा नहीं करता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है या नौकरी से निकाल दिया जा सकता है। इस संदर्भ में कुछ भी नहीं करना पापपूर्ण है। एक अच्छा सेवक स्वामी के लिए सेवा के कार्य करता रहता है। हम भी हर संभव तरीके से हमारे प्रभु और स्वामी की सेवा करें। एक अच्छा नौकर स्वामी की प्रतीक्षा करता है, यहां तक कि उसके इशारों का भी इंतजार करता है जो सेवा की अपेक्षा का संकेत देते हैं। जब स्वामी खुले तौर पर उसे सेवा करने के लिए नहीं कहता है, तब भी उसे स्वामी की सेवा करने और उसे प्रसन्न करने के अवसरों को गँवाना नहीं चाहिए। हमें भी हमेशा प्रभु की सेवा करने और उन्हें प्रसन्न करने के अवसरों की तलाश करते रहना चाहिए।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Normally doing something wrong is a crime or a sin. But in the Bible not doing something good is a sin. St. James says, “Anyone, then, who knows the right thing to do and fails to do it, commits sin” (Jam 4:17). About Jesus St. Peter says that he went about doing good (cf. Acts 10:38). Going about doing evil is sinful. But the Word of God goes further to say that not doing good is a sin. In Lk 16:19-31 the sin of the rich man was that he did not do good to Lazarus. Being harmless is not enough in the Kingdom of God. How can we justify this? How can ‘not doing good’ be sinful? According to the Word of God, the identity of a Christian is that of a servant. A servant is expected to keep serving the master. If he does not serve the master, then he can be punished or removed from his job. It is in this context that doing nothing is sinful. A good servant keeps on doing acts of service for the master. We too are expected to serve the master in every possible way. A good servant awaits the master, awaits even his gestures indicating an expectation of service. Even when the master does not openly asks him to serve, he finds opportunities to serve and please him. We too need to look for opportunities to serve and please the Lord always.
✍ -Fr. Francis Scaria