वर्ष का तीसवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:12-17

"आप लोगों को पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, 'अब्बा, हे पिता'!

भाइयो! शरीर की वासनाओं का हम पर कोई अधिकार नहीं। हम उनके अधीन रह कर जीवन नहीं बितायें। यदि आप शरीर की वासनाओं के अधीन रह कर जीवन बितायेंगे, तो अवश्य मर जायेंगे। लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओं का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा। जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिससे प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये हुए पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, "अब्बा, हे पिता! " आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं। यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं। हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उन्हीं के साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उन्हीं के साथ महिमान्वित भी हो जायेंगे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 67:2,4,6-7,20-21

अनुवाक्य : हमारा ईश्वर हमारा उद्धार करता रहेगा।

1. जब ईश्वर उठ खड़ा होता है, तो उसके शत्रु बिखर जाते हैं। और उसके विरोधी उसके सामने से भाग जाते हैं। धर्मी ईश्वर के सामने आनन्द मनाते और प्रफुल्लित हो कर नृत्य करते हैं।

2. ईश्वर अपने मंदिर में निवास करता है, वह अनाथों का पिता है और विधवाओं का रक्षक। वह निर्वासितों को आवास देता और बंदियों को छुड़ा कर आनन्द प्रदान करता है।

3. हम प्रतिदिन प्रभु को धन्यवाद दिया करें। वह हमारा भार हलका कर देता और हमारी रक्षा करता है। हमारा ईश्वर हमारा उद्धार करता रहेगा। हमारा प्रभु-ईश्वर हमें मृत्यु से बचायेगा।

📒जयघोष

अल्लेलूया! हे प्रभु! तेरी शिक्षा ही सत्य है। तू सत्य की सेवा में हम को समर्पित कर। अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 13:10-17

"क्या इब्राहीम की इस बेटी को विश्राम के दिन बन्धन से छुड़ाना उचित नहीं था?"

येसु विश्राम के दिन किसी सभागृह में शिक्षा दे रहे थे। वहाँ एक स्त्री आयी, जो अपदूत लग जाने के कारण अठारह वर्षों से बीमार थी। वह एकदम झुक गयी थी और किसी भी तरह सीधी नहीं हो पाती थी। येसु ने उसे देख कर अपने पास बुलाया और उस से कहा, "नारी! तुम अपने रोग से मुक्त हो गयी हो" और उन्होंने उस पर हाथ रख दिये। उसी क्षण वह सीधी हो गयी और ईश्वर की स्तुति करने लगी। सभागृह का अधिकारी चिढ़ गया, क्योंकि येसु ने विश्राम के दिन उस स्त्री को चंगा किया था। उसने लोगों से कहा, "छह दिन हैं जिन में काम करना उचित है। इसलिए उन्हीं दिनों चंगा होने के लिए आओ, विश्राम के दिन नहीं।" परन्तु प्रभु ने उसे उत्तर दिया, "ऐ ढोंगियो! क्या तुम में से हर एक विश्राम के दिन अपना बैल या गधा थान से खोल कर पानी पिलाने नहीं ले जाता? शैतान ने इस स्त्री, इब्राहीम की इस बेटी को इन अठारह वर्षों से बाँध रखा था, तो क्या इसे विश्राम के दिन उस बंधन से छुड़ाना उचित नहीं था? " येसु के इन शब्दों से उनके सब विरोधी लज्जित हो गये; पर सारी जनता उनके चमत्कार देख कर आनन्दित हो जाती थी।

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

सुसमाचार में हम एक महिला के चंगाई के बारे में पढ़ते हैं जो अठारह वर्षों से एक अपदूत द्वारा अपंग थी। जब येसु ने उसे स्पर्श किया, तो उन्होंने जीवन में उसका वापस स्वागत किया। उन्होंने उसे अठारह साल बाद फिर से शुद्ध किया। शैतान हमें नियमों और निरर्थक अनुष्ठानों से बांधता है, लेकिन येसु हमें नए जीवन में मुक्त करता है। येसु हमें ईश्वर की कृपा में मुक्त करके हमारे पाप के गंभीर बंधन पर विजय प्राप्त करते हैं। चाहे हम ऊपर देखे या अपने पैरों पर खड़ी ज़मीन से परे देखे, येसु हमें देखते हैं, हमें बुलाते हैं, और जो कुछ भी हमारी आत्माओं को बांध रहा है और हमें टूटने की ओर ले जा रहा है, उससे आज़ादी की घोषणा करते हैं। येसु आपको बुला रहे हैं, आपको स्पर्श करने के लिए आगे बढ़ रहा हैं, आपकी टूटन को दूर करने के लिए तैयार हैं, आपको पूर्णता में पुनर्स्थापित करने के लिए, आपको अपना दावा करने के लिए तैयार हैं। यह उठ खड़े होने का समय ह। मसीह के जीवन को देखना और श्पर्श करना इस दुनिया में आपके और मेरे द्वारा अवतरित होगा। हम एक दूसरे के लिए मसीह को देखेंगे और स्पर्श करेंगे।

फादर संजय कुजूर एस.वी.डी.

📚 REFLECTION


In the gospel we read about the healing of a woman who for eighteen years had been crippled by a spirit. When Jesus touched her, he welcomed her back into life. He made her clean again, after eighteen years. Satan binds us with rules and meaningless rituals, but Jesus releases us into new life. Jesus overcomes our crippling bondage to sin by releasing us into God’s grace. Whether or not we can look up and see beyond the ground at our feet, Jesus sees us, calls to us, and proclaims freedom from whatever is binding our spirits and bending us into brokenness. Jesus is calling you, reaching out to touch you, ready to heal you of your brokenness, to restore you to wholeness, to claim you as his own. It’s time to stand up. Seeing and touching life of Christ would be in this world embodied by you and me. We would be the seeing and touching Christ for one another.

-Fr. Sanjay Kujur SVD

📚 मनन-चिंतन -2

जब येसु का सामना एक ऎसी बूढ़ी औरत से हुआ जिसने अपना समस्त धन इलाज में खर्च कर दिया और अठारह साल तक सीधे खड़े होने में असमर्थ थी, तो उन्होंने तुरंत उस महिला को ठीक कर दिया। वह विश्राम का दिन था। सभाग्रह का शासक इस बात से क्रोधित था कि येसु ने विश्राम के पवित्र दिन ऐसा चमत्कारी कार्य किया। अधिकांश यहूदी नेता विश्राम दिवस के नियमों के पालन में इतने मशगूल थे कि उन्होंने परमेश्वर की दया और भलाई की दृष्टि खो दी। वे इतने अंधे थे कि इतना बड़ा चमत्कार भी उसकी ईश्वर की समझ को नहीं खोल सका। वह सभाग्रह का शासक था फिर भी उसका विश्वास अंधा था और शायद सामान्य विश्वासियों से भी बदतर।

इसके विपरीत येसु ने विश्राम के दिन चंगा किया क्योंकि ईश्वर अपनी दया और प्रेम दिखाने से कभी आराम नहीं करता। ईश्वर की कृपा हर समय उपलब्ध है और हमें आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है और ईश्वर के वचन में हमें आध्यात्मिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से बदलने की शक्ति है। क्या कोई ऐसी चीज है जो हमें बांधे रखती है या जो हमें नीचे गिराती है? क्या हम ईश्वर के पास जाने के लिए किसी विशेष अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं? क्या हम कुछ अन्य कारणों से ईश्वर के पास जाने को टाल रहे हैं? आइए हम तुरंत ईश्वर के पास आएं क्योंकि वह हमेशा उपलब्ध हैं और सभी बाधाओं के खिलाफ अपनी दया दिखाने के लिए तैयार हैं और ईश्वर हमसे अपना वचन कहें और हमें आजादी दें।

फादर रोनाल्ड मेलकम वॉन

📚 REFLECTION


When Jesus encountered an elderly woman who had spent of her strength and was unable to stand upright for eighteen years, he instantly healed the woman. It was Sabbat day. The ruler of the Synagogue was indignant that Jesus performed such a miraculous work on the Sabbath, the holy day of rest. Most of the Jewish leaders were so caught up in their ritual observance of the Sabbath that they lost sight of God's mercy and goodness. He was so blind that even such a great miracle could not open his understanding of God. He was the ruler of the Synagogue yet his faith was blind and perhaps worse than the ordinary faithful.

Jesus on the contrary healed on the Sabbath because God does not ever rest from showing his mercy and love. God’s grace is available all the time and we have no right to object and God's word has the power to change us, spiritually, physically, and emotionally. Is there anything that keeps us bound up or that weighs us down? Are we waiting for a particular occasion to approach God? Are we postponing approaching God for some of the other reasons? Let us come to God immediately for he is always available and willing to show his mercy against all odds and may the Lord speak his word to us and give us freedom.

-Fr. Ronald Melcum Vaughan