वर्ष का तीसवाँ सप्ताह, बृहस्पतिवार - वर्ष 1

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📕पहला पाठ

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:31-39

"समस्त सृष्टि में कोई या कुछ हमें ईश्वर के उस प्रेम से वंचित नहीं कर सकता है, जो हमें मसीह द्वारा मिला है।"

यदि ईश्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे विरुद्ध होगा! उसने अपने निज पुत्र को भी नहीं बचा रखा, उसने हम सबों के लिए उसे समर्पित कर दिया; तो इतना देने के बाद क्या वह हमें सब कुछ नहीं देगा? ईश्वर ने जिन्हें चुन लिया है, उन पर कौन अभियोग लगा सकेगा? ईश्वर ने जिन्हें दोषमुक्त कर दिया है, उन्हें कौन दोषी ठहरायेगा? क्या येसु मसीह ऐसा करेंगे? वह तो मर गये, बल्कि जी उठे और ईश्वर के दाहिने विराजमान हो कर हमारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं। कौन हम को मसीह के प्रेम से वंचित कर सकता है? क्या विपत्ति या संकट? क्या अत्याचार, भूख, नग्नता, जोखिम या तलवार? जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है - तेरे कारण दिन भर हमारा वध किया जाता है। वध होने वाली भेड़ों में हमारी गिनती हुई। किन्तु इन सब बातों पर हम उन्हीं के द्वारा सहज ही विजय प्राप्त करते हैं, जिन्होंने हमें प्यार किया है। मुझे दृढ़ विश्वास है कि न तो मरण या जीवन, न स्वर्गदूत या नरकदूत, न वर्त्तमान या भविष्य न आकाश या पाताल की कोई शक्ति और न समस्त सृष्टि में कोई या कुछ हमें ईश्वर के उस प्रेम से वंचित कर सकता है, जो हमें हमारे प्रभु येसु मसीह द्वारा मिला है।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 108:21-22,26-27,30-31

अनुवाक्य : हे प्रभु! तू मुझे प्यार करता है - मेरी सहायता कर।

1. हे प्रभु! अपने नाम के हेतु मेरी सहायता कर। तू दयालू और प्रेममय है, तू मेरा उद्धार कर। क्योंकि मैं दरिद्र और दीन-हीन हूँ। मेरा हृदय दुःख से रौंदा हुआ है।

2. हे प्रभु! मेरे ईश्वर! तू मुझे प्यार करता है। मेरी सहायता कर और मुझे बचा। हे प्रभु! सब लोग यह जान लें कि इसमें तेरा हाथ है, कि तूने यह मेरे लिए किया है।

3. मैं उच्च स्वर से प्रभु को धन्यवाद दूँगा, और सभा में उसकी स्तुति करूँगा। क्योंकि वह दीन-हीन के दाहिने विद्यमान है और उसे दण्ड देने वालों से बचा लेता है।

📒जयघोष

अल्लेलूया! धन्य हैं वह राजा, जो प्रभु के नाम पर आते हैं। सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा हो और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति मिले। अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 13:31-35

"यह हो नहीं सकता कि कोई नबी येरुसालेम के बाहर मरे।"

उस समय कुछ फरीसियों ने आकर येसु से कहा, "विदा लीजिए और यहाँ से चले जाइए, क्योंकि हेरोद आप को मार डालना चाहता है।" येसु ने उन से कहा, "जा कर उस लोमड़ी से कहो मैं आज और कल नरकदूतों को निकालता और रोगियों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन मेरा कार्य समापन तक पहुँचा दिया जायेगा। आज, कल और परसों मुझे यात्रा करनी है, क्योंकि यह हो नहीं सकता कि कोई नबी येरुसालेम के बाहर मरे। " "येरुसालेम! येरुसालेम! तू नबियों की हत्या करता और अपने पास भेजे हुए लोगों को पत्थरों से मार देता है। कितनी बार मैंने चाहा कि तेरी सन्तान को एकत्र कर लूँ, जैसे मुरगी अपने चूजों को अपने डैनों के नीचे एकत्र कर लेती है, परन्तु तुम लोगों ने इनकार कर दिया। देखो, तुम्हारा घर उजाड़ छोड़ दिया जायेगा। मैं तुम से कहता हूँ, तुम मुझे तब तक नहीं देखोगे जब तक तुम यह न कहोगे, 'धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं।"

प्रभु का सुसमाचार।


मनन-चिंतन

सुसमाचार सुनाने के कार्य से कोई भी येसु को रोक नही सकता था। वह अपने स्वर्गिक पिता द्वारा उन्हें सौंपे गए कार्य को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। इसलिए, जब उन्हें चेतावनी दी गई कि हेरोद उन्हें मारना चाहता है और इसलिए उन्हें वह जगह छोड़ देनी चाहिए, तो वे वहाँ से भाग जाने के लिए नहीं बल्कि उन्हें सौंपे गए काम को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हैं। जब वे इस दुनिया में आये तब येसु ने यह स्पष्ट किया - “ईश्वर! मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ" (इब्रानियों 10: 7)। प्रभु येसु ने उन लोगों के बारे में भी दुःख व्यक्त किया जो उनके लिए भेजे गए नबियों को नहीं सुनते थे, लेकिन उन्हें मार डालते थे। इस प्रकार वे स्वयं भगवान द्वारा उन्हें दिए गए आश्रय को स्वीकार करने से इनकार कर रहे थे।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


SHORT REFLECTION

Nothing stops Jesus from preaching the good news. He is determined to complete the task entrusted to him by the Heavenly Father. Therefore, even when he was warned that Herod wanted to kill him and so he should leave that place, he expresses his determination not to run away but to complete the task entrusted to him. Jesus made this clear when he came into this world. “See, God, I have come to do your will, O God” (Heb 10:7). Jesus also expressed his sorrow about the people who would not listen to the prophets sent to them, but kill them. Thus they were refusing to accept the shelter offered to them by God himself.

-Fr. Francis Scaria