मन में यह प्रश्न उठता है, "क्या ईश्वर ने अपनी प्रजा को त्याग दिया है? " निश्चय ही नहीं! मैं भी तो इस्राएली, इब्राहीम की सन्तान और बेनयामीन-वंशी हूँ। ईश्वर ने अपनी उस प्रजा को, जिसे उसने अपनाया, नहीं त्यागा है। क्या आप नहीं जानते कि धर्मग्रंथ एलियस के विषय में क्या कहता है, जब वह ईश्वर के सामने इस्राएल पर अभियोग लगाता है? इसलिए मन में यह प्रश्न उठता है, "क्या वे अपराध के कारण सदा के लिए पतित हो गये हैं? " निश्चय ही नहीं! उनके अपराध, के कारण ही गैरयहूदियों को मुक्ति मिली है, जिससे वे गैरयहूदियों की स्पर्धा करें। जब उनके अपराध तथा उनकी अपूर्णता से समस्त गैरयहूदी संसार की समृद्धि हो गयी है, तो उनकी परिपूर्णता से कहीं अधिक लाभ होगा! भाइयो! आप घमण्डी न बनें। इसलिए मैं आप लोगों पर यह रहस्य प्रकट करना चाहता हूँ इस्राएल का एक भाग तब तक अन्धा बना रहेगा, जब तक गैर-यहूदियों की पूर्ण संख्या का प्रवेश न हो जाये। ऐसा हो जाने पर समस्त इस्राएल को मुक्ति प्राप्त होगी, जैसा कि लिखा गया है: सियोन में से मुक्तिदाता उत्पन्न होगा और वह याकूब से अधर्म दूर कर देगा। जब मैं उनके पाप हर लूँगा, तो यह उनके लिए मेरा विधान होगा। सुसमाचार के विचार से, वे तो आप लोगों के कारण ईश्वर के शत्रु हैं; किन्तु चुनी हुई प्रजा के विचार से, वे पूर्वजों के कारण ईश्वर के कृपापात्र हैं; क्योंकि ईश्वर न तो अपने वरदान वापस लेता और न अपना बुलावा रद्द करता है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु ने अपनी प्रजा को नहीं त्यागा।
1. हे प्रभु! धन्य है वह मनुष्य; जिसे तू शिक्षा देता और अपनी संहिता का मार्ग दिखाता है। वह संकट के समय नहीं घबराता है।
2. प्रभु ने अपनी प्रजा को नहीं त्यागा, उसने अपने लोगों को नहीं छोड़ा। धर्मियों को फिर न्याय दिलाया जायेगा और सभी सच्चरित्र उसका समर्थन करेंगे।
3. यदि ईश्वर मेरी सहायता नहीं करता, तो मैं शीघ्र ही अधोलोक चला जाता। हे प्रभु! जब लगता कि मेरे पैर फिसलने वाले हैं, तो मुझे तेरी सान्त्वना का सहारा मिलता है।
अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो। और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ।" अल्लेलूया!
येसु किसी विश्राम के दिन एक प्रमुख फरीसी के यहाँ भोजन करने गये। वे लोग उनकी निगरानी कर रहे थे। येसु ने अतिथियों को मुख्य मुख्य स्थान चुनते देख कर उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया, "विवाह में निमंत्रित होने पर सब से अगले स्थान पर मत बैठो। कहीं ऐसा न हो कि तुम से प्रतिष्ठित कोई अतिथि निमंत्रित हो और जिसने, तुम दोनों को निमंत्रण दिया है, वह आ कर तुम से कहे, 'इन्हें अपनी जगह दीजिए, और तुम्हें लज्जित हो कर सब से पिछले स्थान पर बैठना पड़े। परन्तु जब तुम्हें निमंत्रण मिले, तो जा कर सब से पिछले स्थान पर बैठो जिससे निमंत्रण देने वाला आ कर तुम से यह कहे, 'बंधु, आगे बढ़ कर बैठिए'। इस प्रकार सभी अतिथियों के सामने तुम्हारा सम्मान होगा। क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।"
प्रभु का सुसमाचार।
येसु हमेशा हमें विनम्र बने रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हम में से कई लोगों के लिए ऊँचा होना, प्रशंसा और सम्मान से प्यार करना बहुत लुभावना है। हम वास्तव में इस दुनिया को ईश्वर से ज्यादा महत्व दे रहे है। हम सृष्टि और सृष्टिकर्ता में अन्तर स्पष्ट नहीं कर पाते हैं। हम अपना पूरा जीवन संसारिक वस्तु में खो देते हैं। यदि हमें अपनी पहचान या छाप छोड़नी है तो हमें नम्रता और भलाई के गुणों को अपनाना होगा। हमें हर समय प्रयत्न करना है कि, हम भी येसु के समान विनम्र, अच्छा और ईश्वरीय जीवन यापन करें।
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)Jesus talks about our need to always be humble and not to love the limelight. However, it’s so tempting for many of us to love to be exalted, to love praise and honor. We are actually giving more importance to this world more than we give importance to God. We love to become creatures of this world than love to become sons and daughters of God. But what is prominence, what is honor? As time passes by prominence, honor and anything that is worldly and self-serving will fade away. Thus, anything that we do for the love of ourselves and of this world will be buried and will not be remembered anymore. But our acts of humility and goodness? It will outlive us; it will permanently be engraved in the heart of God and in the hearts of those who know us. Therefore, we have to be humble, good and Godly at all times.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
कुच्छ हासिल करने या दूसरों से सम्मान अर्जित करने की इच्छा होना स्वाभाविक है। हालांकि, यह आत्म-प्रचार अधिकांश तह दूसरों की कीमत पर हासिल किया जाता है। येसु का दृष्टान्त नीतिवचन की शिक्षा पर बल देता है: "राजा के सामने डींग मत मारो और बड़े लोगों के स्थान पर मत बैठो; क्योंकि किसी उच्चाधिकारी के सामने नीचा दिखाये जाने की अपेक्षा अच्छा यह है, कि राजा तुम से कहे, "यहाँ, आगे बढ़ कर बैठिए", (नीति० 25:6-7)।
सच्ची विनम्रता यह नहीं है कि आप अपने बारे में कम राय रखते हैं, या खुद को दूसरों से कमतर समझते हैं। वास्तव में, सच्ची नम्रता हमें अपने आप में व्यस्तता से मुक्त करती है। स्वयं को सच्चाई एवं वास्त्विकता से देखने का, सही निर्णय के साथ, स्वयं को उस रूप में देखने का अर्थ है जिस तरह से ईश्वर हमें देखता है (स्तोत्र १३९:१-४)। नम्रता अन्य सभी सद्गुणों की नींव है क्योंकि यह हमें परमेश्वर की दृष्टि से सही ढंग से देखने और न्याय करने में सक्षम बनाती है। विनम्रता ज्ञान, ईमानदारी, यथार्थवाद, शक्ति और समर्पण की ओर ले जाती है। इसी नम्रता को येसु हमें गले लगाने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।
✍फादर रोनाल्ड मेलकम वॉनIt is natural to desire to achieve and to get respect and to earn esteem from others. However, self-promotion is most often achieved at the expense of others. Jesus' parable emphasizes the teaching of Proverbs: Do not put yourself forward in the king's presence or stand in the place of the great; for it is better to be told, "Come up here," than to be put lower in the presence of the prince (Prov. 25:6-7).
True humility is not having a low opinion of yourself, or thinking of yourself as inferior to others. In fact, true humility lets us free from preoccupation with ourselves. Viewing ourselves truthfully, with right judgment, means seeing ourselves the way God sees us (Psalm 139:1- 4). Humility is the foundation of all the other virtues because it enables us to see and judge correctly, the way God sees. Humility leads to knowledge, honesty, realism, strength, and dedication to give ourselves to something greater than ourselves. It is this humility that Jesus is inviting us to embrace.
✍ -Fr. Ronald Melcum Vaughan