वर्ष का इकतीसवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 1

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📕पहला पाठ

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 11:29-36

"ईश्वर ने सबों को पाप में फँसने दिया, क्योंकि वह सबों पर दया दिखाना चाहता था।"

ईश्वर न तो अपने वरदान वापस लेता और न अपना बुलावा रद्द करता है। जिस तरह आप लोग पहले ईश्वर की अवज्ञा करते थे और अब, जब कि वे अवज्ञा करते हैं, आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं, उसी तरह अब, जब कि आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं, वे ईश्वर की अवज्ञा करते हैं, किन्तु वे भी बाद में दया प्राप्त करेंगे। ईश्वर ने सबों को अवज्ञा के पाप में फँसने दिया, क्योंकि वह सबों पर दया दिखाना चाहता था। कितना अगाध है ईश्वर का वैभव, प्रज्ञा और ज्ञान! कितने दुर्बोध हैं उसके निर्णय! कितने रहस्यमय हैं उसके मार्ग! कौन प्रभु का मन जान सकता है? कौन उसका परामर्शदाता हुआ? किसने ईश्वर को कभी कुछ दिया है और इस प्रकार वह बदले में कुछ पाने का दावा कर सकता है? ईश्वर सब कुछ का मूल कारण, प्रेरणा-स्रोत तथा लक्ष्य है उसी को अनन्तकाल तक महिमा! आमेन।

📖भजन : स्तोत्र 68:30-31,33-34,36-37

अनुवाक्य : हे ईश्वर! तू दयालु और सत्यप्रतिज्ञ है। तू मेरी सुनने की कृपा कर।

1 हे ईश्वर! मैं निस्सहाय और दुखी हूँ। तेरी कृपा मुझे ऊपर उठाये। मैं गाते हुए ईश्वर की स्तुति करूँगा, मैं धन्यवाद देते हुए उसका गुणगान करूँगा।

2. दीन-हीन यह देख कर आनन्दित हो उठेंगे, प्रभु-भक्तों में नवजीवन का संचार होगा; क्योंकि प्रभु दरिद्रों की पुकार सुनता है, वह अपनी पराधीन प्रजा का तिरस्कार नहीं करता।

3. ईश्वर सियोन का उद्धार करेगा और यूदा के नगरों का पुनर्निमाण करेगा। उसकी प्रजा लौट कर वहाँ आ जायेगी। उसके सेवकों के उतराधिकारी वहाँ बस जायेंगे, प्रभु के भक्त वहाँ निवास करेंगे।

📒जयघोष

अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे और सत्य को पहचान जाओगे।” अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 14:12-14

"अपने मित्रों को नहीं, बल्कि कंगालों और लूलों को बुलाओ।”

फिर येसु ने अपने निमंत्रण देने वाले से कहा, "जब तुम दोपहर या शाम का भोज दो, तो न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें निमंत्रण दे कर बदला चुका दें। पर जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लँगड़ों और अंधों को बुलाओ। तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरुत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।”

प्रभु का सुसमाचार।



📚 मनन-चिंतन

प्रभु अपनी शिक्षा में स्पष्ट हैं- उनकी पवित्र इच्छा यह है कि भलाई सर्वत्र और सबके लिए हो परन्तु ज्यादा ध्यान उन पर केन्द्रित किया जाए जो बदले में हमें ना चुका पाएं। यह हमारे मानुषिक प्रवृत्ति के खिलाफ़ जैसे प्रतीत होता है क्योंकि हम सामान्यत: प्रेम के बदले प्रेम और सम्मान के बदले सम्मान पाना चाहते हैं। यह तर्क ठीक है परन्तु येसु अपने शिष्यों और सभी अनुयायियों को उनकी विनम्रता और दान-पुण्य की अत्युत्तम सीख देते हैं और अपने सुनने वालों को आग्रह करते हैं कि वे न तो सम्मान और न ही पुरस्कार की खोज करें। येसु की शिक्षा में इस मनोभाव को अपने जीवन में उतार कर हम प्रभु ईश्वर के सच्चे कृपापात्र बन जाते हैं। और ऐसी सोच अगर हमारा स्वभाव बन जाता है तब हम ईश्वर, जो सब कुछ का मूल कारण, प्रेरणा-स्रोत और लक्ष्य हैं उनको वास्तविक महिमा प्रदान करते हैं।

फादर सिप्रियन खल्खो (पोर्ट ब्लेयर धर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


The Lord is clear in His teachings—His holy will is that goodness should be done everywhere and for all, but the focus should be on those who cannot reciprocate. This seems contrary to our human nature, as we generally seek love in return for love and respect in return for respect. This logic is sound, but Jesus teaches His disciples and all his followers the sublime lesson of humility and charity, urging His listeners to seek neither honour nor reward. By incorporating this attitude into our lives, as taught by Jesus, we become truly blessed by God. And if such thinking becomes our nature, then we bring true glory to God, who is the root cause, source of inspiration, and goal of all things.

-Fr. Cyprian Xalxo (Port Blair Diocese)


📚 मनन-चिंतन -

आज येसु हमें चुनौती देते है कि, हम अपने आरामदायक क्षेत्र से बाहर निकले। आज के पाठ में हम एक भोज के विषय में सुना और उस भोज के दौरान येसु मेजबान से कहते है कि, अगली बार भोज पर आप जरूरतमंद, अंधे, लंगड़े और बेसहारा को भी आमंत्रित करना। ठीक उसी भांति आज येसु हमें भी आमंत्रित करते है। हमारा मनोभाव कैसा हैं? हम कैसे गरीबों की सहायता करते हैं? भले ही किसी व्यक्ति के पास सब कुछ हो फिर भी वो गरीब है, क्योंकि उसके पास प्रेम, दया, करूणा की कमी है। हम दूसरों को ये सद्गुणों के बारे में जानकारी देने से ना चूंके।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


Today Jesus challenges us to move out of our comfort zone. On a Sabbath Jesus was invited by an influential Pharisee to come and dine at his home. Jesus accepted his invitation. As they enjoyed the meal together, Jesus naturally talked with his host. In the course of conversation Jesus told his host that the next time he had a banquet, he should invite those people who were in need: the blind, the lame, and the destitute. Jesus promised his host that if he did invite the least, in return he would be blessed. I wonder how the man responded. The Gospel doesn’t say. Today again Jesus is inviting us to welcome the least among us. No matter where we live, we have the poor among us. The poor among us may not be financially poor. The poor may be someone who has a beautiful home, a good salary, and seemingly a good life, yet they truly may be poor in all the ways that matter. Are we willing to step out of our comfort zone and invite those who are poor to join us?

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

मनन-चिंतन -3

आज के सुसमाचार में, प्रभु येसु हमें अपने भोजन को गरीबों और जरूरतमंदों के साथ साझा करने के लिए कहते हैं। येसु ने केवल गरीबों पर दया के पुराने नियम को ही सिद्ध किया है। येसु इस तथ्य पर हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं कि गरीब लोग उन्हें प्राप्त दयालुता का बदला चुका नहीं पायेंगे। इस पर ईश्वर ही उनकी जगह ले कर उन्हें दूसरों से प्राप्त सहायता का बदला चुकाते हैं। पवित्र वचन कहता है, “ जो दरिद्रों पर दया करता, वह प्रभु को उधार देता है। प्रभु उसे उसके उपकार का बदला चुकायेगा” (सूक्ति19:17) गरीबों के लिए प्रभु गारंटी लेते हैं। इसायाह के ग्रन्थ में पवित्र वचन कहता है, “अपनी रोटी भूखों के साथ खाना, बेघर दरिद्रों को अपने यहाँ ठहराना। जो नंगा है, उसे कपड़े पहनाना और अपने भाई से मुँह नहीं मोड़ना” (इसायाह 58:7)। जो पुरस्कार हमें इस कार्य के लिए मिलेगा, वह भी नबी हमारे सामने रखते हैं, “यदि तुम भूखों को अपनी रोटी खिलाओगे और पद्दलितों को तृप्त करोगे, तो अन्घकार में तुम्हारी ज्योति का उदय होगा और तुम्हारा अन्धकार दिन का प्रकाश बन जायेगा। प्रभु निरन्तर तुम्हारा पथप्रदर्शन करेगा। वह मरुभूमि में भी तुम्हें तृप्त करेगा और तुम्हें शक्ति प्रदान करता रहेगा। तुम सींचे हुए उद्यान के सदृश बनोगे, जलस्रोत के सदृश, जिसकी धारा कभी नहीं सूखती। (इसायाह 58:10-11) प्रभु येसु ने अक्सर नाकेदारों तथा पापियों के साथ भोजन किया। उन्होंने भूखे लोगों पर तरस खा कर उनके लिए रोटियों का चमत्कार किया। वे हमें यह सिखाते हैं कि भूखे, प्यासे, बेघरों की सेवा उन्हीं की सेवा है (देखें मत्ति 25:34-40)।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


REFLECTION

In today’s Gospel, Jesus tells us to share our meals with the poor and the needy. Jesus only perfects the Old Testament prescription of kindness to the poor. Jesus notes the fact that the poor cannot repay the kindness they receive. God takes their place and repays to those who show kindness to the poor. In Prov 19:17 we read, “Whoever is kind to the poor lends to the Lord, and will be repaid in full”. The Lord takes guarantee for the poor. The book of Isaiah, regarding the fast that God demands, says, “Is it not to share your bread with the hungry, and bring the homeless poor into your house; when you see the naked, to cover them, and not to hide yourself from your own kin?” (Is 58:7). The reward such a charitable action will bring is also outlined by the prophet. The Word of God says, “then your light will rise in the dark, and your darkness will become as bright as the noonday sun” (Is 58:10) Jesus often ate with tax collectors and sinners. He cared for the hungry and multiplied the bread for them. In fact when you feed the hungry you are feeding Christ himself (cf. Mt 25:34-40).

-Fr. Francis Scaria