ईश्वर न तो अपने वरदान वापस लेता और न अपना बुलावा रद्द करता है। जिस तरह आप लोग पहले ईश्वर की अवज्ञा करते थे और अब, जब कि वे अवज्ञा करते हैं, आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं, उसी तरह अब, जब कि आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं, वे ईश्वर की अवज्ञा करते हैं, किन्तु वे भी बाद में दया प्राप्त करेंगे। ईश्वर ने सबों को अवज्ञा के पाप में फँसने दिया, क्योंकि वह सबों पर दया दिखाना चाहता था। कितना अगाध है ईश्वर का वैभव, प्रज्ञा और ज्ञान! कितने दुर्बोध हैं उसके निर्णय! कितने रहस्यमय हैं उसके मार्ग! कौन प्रभु का मन जान सकता है? कौन उसका परामर्शदाता हुआ? किसने ईश्वर को कभी कुछ दिया है और इस प्रकार वह बदले में कुछ पाने का दावा कर सकता है? ईश्वर सब कुछ का मूल कारण, प्रेरणा-स्रोत तथा लक्ष्य है उसी को अनन्तकाल तक महिमा! आमेन।
अनुवाक्य : हे ईश्वर! तू दयालु और सत्यप्रतिज्ञ है। तू मेरी सुनने की कृपा कर।
1 हे ईश्वर! मैं निस्सहाय और दुखी हूँ। तेरी कृपा मुझे ऊपर उठाये। मैं गाते हुए ईश्वर की स्तुति करूँगा, मैं धन्यवाद देते हुए उसका गुणगान करूँगा।
2. दीन-हीन यह देख कर आनन्दित हो उठेंगे, प्रभु-भक्तों में नवजीवन का संचार होगा; क्योंकि प्रभु दरिद्रों की पुकार सुनता है, वह अपनी पराधीन प्रजा का तिरस्कार नहीं करता।
3. ईश्वर सियोन का उद्धार करेगा और यूदा के नगरों का पुनर्निमाण करेगा। उसकी प्रजा लौट कर वहाँ आ जायेगी। उसके सेवकों के उतराधिकारी वहाँ बस जायेंगे, प्रभु के भक्त वहाँ निवास करेंगे।
अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे और सत्य को पहचान जाओगे।” अल्लेलूया!
फिर येसु ने अपने निमंत्रण देने वाले से कहा, "जब तुम दोपहर या शाम का भोज दो, तो न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें निमंत्रण दे कर बदला चुका दें। पर जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लँगड़ों और अंधों को बुलाओ। तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरुत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।”
प्रभु का सुसमाचार।