भाइयो! मुझे दृढ़ विश्वास है कि आप लोग सद्भाव और हर प्रकार के ज्ञान से परिपूर्ण हो कर एक दूसरे को सत्यपरामर्श देने योग्य हैं। फिर भी कुछ बातों का स्मरण दिलाने के लिए मैंने आप को निस्संकोच हो कर लिखा है, क्योंकि ईश्वर ने मुझे गैरयहूदियों के बीच येसु मसीह का सेवक तथा ईश्वर के सुसमाचार का पुरोहित होने का वरदान दिया है, जिससे गैरयहूदी, पवित्र आत्मा द्वारा पवित्र किये जाने के बाद, ईश्वर को अर्पित और सुग्राह्य हो जायें। इसलिए मैं येसु मसीह द्वारा ईश्वर की सेवा पर गौरव कर सकता हूँ। मैं केवल उन बातों की चर्चा का साहस करूँगा, जिन्हें मसीह ने गैरयहूदियों को विश्वास के अधीन करने के लिए मेरे द्वारा वचन और कर्म से, शक्तिशाली चिह्नों और चमत्कारों से और आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न किया है। मैंने येरुसालेम और उसके आसपास के प्रदेश से ले कर इल्लुरिकुस तक मसीह के सुसमाचार का कार्य पूरा किया। इस में मैंने एक बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा मैंने कभी वहाँ सुसमाचार का प्रचार नहीं किया, जहाँ मसीह का नाम सुनाया जा चुका था, क्योंकि मैं दूसरों द्वारा डाली हुई नींव पर निर्माण करना नहीं चाहता था, बल्कि धर्मग्रन्थ का यह कथन पूरा करना चाहता था जिन्हें कभी उसका संदेश नहीं मिला था, वे उसके दर्शन करेंगे और जिन्होंने कभी उसके विषय में नहीं सुना, वे समझेंगे।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु ने सभी राष्ट्रों के लिए अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया है।
1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, क्योंकि उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ और उसकी पवित्र भुजा ने हमारा उद्धार किया है।
2. प्रभु ने अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया और सभी राष्ट्रों को अपना न्याय दिखाया है। उसने अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रख कर इस्त्राएल के घराने की सुध ली है।
3. पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है। समस्त पृथ्वी आनन्द मनाये और ईश्वर की स्तुति करे।
येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "किसी धनवान का एक कारिन्दा था। लोगों ने उसके पास जा कर कारिन्दा पर दोष लगाया कि वह आपकी सम्पत्ति उड़ा रहा है। इस पर स्वामी ने उसे बुला कर कहा, 'मैं तुम्हारे विषय में क्या सुन रहा हूँ? अपनी कारिन्दगरी का हिसाब दो, क्योंकि तुम अब से कारिन्दा नहीं रह सकते। ' तब कारिन्दा ने मन-ही-मन यह कहा, 'मैं क्या करूँ? मेरा स्वामी मुझे कारिन्दगरी से हटा रहा है। मिट्टी खोदने का मुझमें बल नहीं, भीख माँगने में मुझे लज्जा आती है। हाँ, अब समझ में आया कि मुझे क्या करना चाहिए, जिससे कारिन्दगरी से हटाये जाने के बाद लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें। ' उसने अपने मालिक के कर्जदारों को एक-एक करके बुला कर पहले से कहा, 'तुम पर मेरे स्वामी का कितना ऋण है? ' उसने उत्तर दिया, 'सौ मन तेल'। कारिन्दा ने कहा, "अपना रुक्का लो और बैठ कर जल्दी पचास लिख दो। ' फिर उसने दूसरे से पूछा, 'तुम पर कितना ऋण है? ' उसने कहा, 'सौ मन गेहूँ'। कारिन्दा ने उस से कहा, 'अपना रुक्का लो और अस्सी लिख दो। ' स्वामी ने बेईमान कारिन्दा को सराहा कि उसने चतुराई से काम किया है। क्योंकि इस संसार की सन्तान आपसी लेन-देन में ज्योति की सन्तान से अधिक चतुर है।"
प्रभु का सुसमाचार।