वर्ष का इकतीसवाँ सप्ताह, शुक्रवार - वर्ष 1

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📕पहला पाठ

रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 15:14-21

"मैं गैरयहूदियों के बीच येसु मसीह का सेवक हूँ, जिससे गैरयहूदी ईश्वर को अर्पित और ग्राह्य हो जायें।"

भाइयो! मुझे दृढ़ विश्वास है कि आप लोग सद्भाव और हर प्रकार के ज्ञान से परिपूर्ण हो कर एक दूसरे को सत्यपरामर्श देने योग्य हैं। फिर भी कुछ बातों का स्मरण दिलाने के लिए मैंने आप को निस्संकोच हो कर लिखा है, क्योंकि ईश्वर ने मुझे गैरयहूदियों के बीच येसु मसीह का सेवक तथा ईश्वर के सुसमाचार का पुरोहित होने का वरदान दिया है, जिससे गैरयहूदी, पवित्र आत्मा द्वारा पवित्र किये जाने के बाद, ईश्वर को अर्पित और सुग्राह्य हो जायें। इसलिए मैं येसु मसीह द्वारा ईश्वर की सेवा पर गौरव कर सकता हूँ। मैं केवल उन बातों की चर्चा का साहस करूँगा, जिन्हें मसीह ने गैरयहूदियों को विश्वास के अधीन करने के लिए मेरे द्वारा वचन और कर्म से, शक्तिशाली चिह्नों और चमत्कारों से और आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न किया है। मैंने येरुसालेम और उसके आसपास के प्रदेश से ले कर इल्लुरिकुस तक मसीह के सुसमाचार का कार्य पूरा किया। इस में मैंने एक बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा मैंने कभी वहाँ सुसमाचार का प्रचार नहीं किया, जहाँ मसीह का नाम सुनाया जा चुका था, क्योंकि मैं दूसरों द्वारा डाली हुई नींव पर निर्माण करना नहीं चाहता था, बल्कि धर्मग्रन्थ का यह कथन पूरा करना चाहता था जिन्हें कभी उसका संदेश नहीं मिला था, वे उसके दर्शन करेंगे और जिन्होंने कभी उसके विषय में नहीं सुना, वे समझेंगे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 97:1-4

अनुवाक्य : प्रभु ने सभी राष्ट्रों के लिए अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया है।

1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, क्योंकि उसने अपूर्व कार्य किये हैं। उसके दाहिने हाथ और उसकी पवित्र भुजा ने हमारा उद्धार किया है।

2. प्रभु ने अपना मुक्ति-विधान प्रकट किया और सभी राष्ट्रों को अपना न्याय दिखाया है। उसने अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रख कर इस्राएल के घराने की सुध ली है।

3. पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है। समस्त पृथ्वी आनन्द मनाये और ईश्वर की स्तुति करे।

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 16:1-8

"इस संसार की सन्तान आपसी लेन-देन में ज्योति की सन्तान से अधिक चतुर है।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "किसी धनवान का एक कारिन्दा था। लोगों ने उसके पास जा कर कारिन्दा पर दोष लगाया कि वह आपकी सम्पत्ति उड़ा रहा है। इस पर स्वामी ने उसे बुला कर कहा, 'मैं तुम्हारे विषय में क्या सुन रहा हूँ? अपनी कारिन्दगरी का हिसाब दो, क्योंकि तुम अब से कारिन्दा नहीं रह सकते। ' तब कारिन्दा ने मन-ही-मन यह कहा, 'मैं क्या करूँ? मेरा स्वामी मुझे कारिन्दगरी से हटा रहा है। मिट्टी खोदने का मुझमें बल नहीं, भीख माँगने में मुझे लज्जा आती है। हाँ, अब समझ में आया कि मुझे क्या करना चाहिए, जिससे कारिन्दगरी से हटाये जाने के बाद लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें। ' उसने अपने मालिक के कर्जदारों को एक-एक करके बुला कर पहले से कहा, 'तुम पर मेरे स्वामी का कितना ऋण है? ' उसने उत्तर दिया, 'सौ मन तेल'। कारिन्दा ने कहा, "अपना रुक्का लो और बैठ कर जल्दी पचास लिख दो। ' फिर उसने दूसरे से पूछा, 'तुम पर कितना ऋण है? ' उसने कहा, 'सौ मन गेहूँ'। कारिन्दा ने उस से कहा, 'अपना रुक्का लो और अस्सी लिख दो। ' स्वामी ने बेईमान कारिन्दा को सराहा कि उसने चतुराई से काम किया है। क्योंकि इस संसार की सन्तान आपसी लेन-देन में ज्योति की सन्तान से अधिक चतुर है।"

प्रभु का सुसमाचार।



📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु बेईमान कारिन्दा का दृष्टांत अपने शिष्यों को यह याद दिलाने के लिए सुनाया कि उनकी भौतिक संपत्ति भी मृत्यु के बाद छिन जाएगी, इसलिए उन्हें अपनी सांसारिक संपत्ति का उपयोग मृत्यु के बाद अपनी स्थिति के लिए सबसे अधिक लाभकारी तरीके से करना चाहिए, अर्थात, उस तरीके से जो उनके उद्धार की ओर ले जाए। येसु का आगमन एक 'संकट' का समय है, जब हममें से प्रत्येक को यह हिसाब देना होगा कि हमने स्वामी के धन का उपयोग कैसे किया है। सबसे पहले, हमारे पास जो धन और संपत्ति है, वह केवल हमारी अपनी नहीं है; ये ईश्वर द्वारा हमें सौंपी गई देन हैं। स्वामी के आगमन और उनके उत्तरदायित्व के आह्वान के जवाब में, हमें अपनी शाश्वत सुरक्षा के लिए इनका उपयोग करने में उतना ही चतुर होना चाहिए जितना कि कारिन्दा अपनी सांसारिक सुरक्षा के लिए था। धन को आसानी से देवता माना जा सकता है, और हमें ईश्वर और धन के बीच निर्णय लेना कठिन लग सकता है। हमें इसका उपयोग अपने अंतिम अनन्त प्रतिफल के लिए मित्र बनाने में करना चाहिए। सन्त लूकस ने इस दृष्टांत का प्रयोग अपने समुदाय के ख्रीस्तीयों को भौतिक धन और संपत्ति के विवेकपूर्ण और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग की शिक्षा देने के लिए किया है। प्रभु येसु सिखाते हैं कि हम सबको हमारे स्वामी - पिता परमेश्वर के बुलावे के लिए तत्परता से रुकना चाहिए। हमें याद रहे कि हमारा हिसाब पारदर्शी हो जिसे हमें देना ही पडेगा। ये विचार भी बिल्कुल साफ़ रहे कि हमें अपने स्वामी, परमेश्वर को, संपत्ति से ऊपर रखना चाहिए। येसु के उस बेईमान कारिन्दा की प्रशंसा करने की बात को हमें ठीक से समझने की जरुरत है। येसु अपने मनोभाव से कदापि किसी की बेईमानी बरदाश्त नहीं कर पाते; परन्तु महत्वपूर्ण बात यहां कारिन्दे की चतुराई की है। उसने संकटपूर्ण स्थिति में अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता और अपनी विवेकशीलता दिखायी- जिसके लिए येसु उसकी प्रशंसा करते हैं। हम प्रार्थना करें कि ख्रीस्तीय रूप में हम अपने भौतिक धन - संपत्ति का विवेकपूर्ण और बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग कर पाएं कि ये हमें सचमुच अनन्त जीवन की प्राप्ति की ओर ले जाएं।

फादर सिप्रियन खल्खो (पोर्ट ब्लेयर धर्मप्रान्त)

📚 REFLECTION


Jesus told the parable of the dishonest steward to remind his disciples that their material possessions will also be taken away after death, so they should use their worldly possessions in the most beneficial way for their afterlife, that is, in a way that leads to their salvation. Jesus' coming is a time of "crisis," when each of us must account for how we have used the Master's treasure. First, the wealth and possessions we possess are not merely our own; they are gifts entrusted to us by God. In response to the Master's coming and His call to accountability, we must be as shrewd in using them for our eternal security as the steward was for his worldly security. Wealth can easily be idolized, and we may find it difficult to decide between God and wealth. We should use them to make friends for our ultimate eternal reward. Saint Luke used this parable to teach his fellow Christians the importance of judicious and wise use of material wealth and possessions. Jesus teaches us to be attentive to the call of our Master, God the Father. We must remember to be transparent about our accounts, which we must give. We must also be clear that we must place our Master, God, above all our possessions. We need to understand Jesus' praise of the dishonest steward. Jesus would never tolerate dishonesty in his own mind; but the crucial point here is the steward's shrewdness. He demonstrated his ability to make quick decisions and his prudence, keeping his future in mind, in a critical situation, for which Jesus praises him. Let us pray that as Christians we may use our material possessions wisely and prudently so that they may truly lead us to eternal life.

-Fr. Cyprian Xalxo (Port Blair Diocese)


📚 मनन-चिंतन - 2

आज के सुसमाचार में कारिन्दे की कौशलता के संदर्भ में हम ने सुना है। लेकिन इस पाठ से हम सभी को कुछ सीखना चाहिये। जब उस कारिन्दे को पता चला कि, उसे हटाया जाना है तो उसके मन में एकाएक भय छा गया। वह अपने भविष्य को लेकर चिंतित था। वो अपने अस्तित्व को सुनिश्चित् करने के लिए अपने देनदारों के कर्ज माफ करता है। हमें आज स्मरण कराया जाता है कि, इस दुनिया में हमारे पास जो कुछ भी है वह सब अस्थायी है। हम इस संसार की चमक-दमक में अपने गंतव्य से ना चूंक जायें।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


On the surface it may seem that the only issue here is the lack of skill of the steward. But in a deeper sense there is a lesson that we could all learn from the steward. When he learned that he was to be removed fear suddenly set in on him. He was worried about his future for the reason that he would be without a job. Therefore to ingrain a debt of gratitude from their debtors and to assure his survival he collected their debts with a discount. With the fervent hope that they would take care of him when he is finally dismissed from his job. For the simple reason that all that we have in this world are all temporary and passing. We are reminded to be creative in sharing our faith in Jesus most specially during this time wherein technology is very advance. Let us therefore creatively harness the many social media platforms that are available at our disposal to continuously share Jesus. For this will assure us of survival not in this world anymore but our survival after our lives in the eternal world.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

मनन-चिंतन -3

”मूर्ख व्यक्ति हर किसी की बात पर विश्वास करता, किन्तु समझदार सोच-विचार कर आगे बढता है” (सूक्ति 14ः15)

आज का सुसमाचार यीशु द्वारा बताए गए उलझा और गलत समझे गए दृष्टांतों में से एक प्रस्तुत करता हैं । पहली नजर में यह समझना मुशकिल है कि यीशु बेईमान सेवक की प्रशंसा कैसे कर सकता हैं ? लेकिन दृष्टांत में गहराई से जाने से यह स्पष्ट है कि यीशु ने नौकर की प्रशंसा बेईमानी के लिए नही बल्कि उसकी दूरदशर््िाता के लिए की है ।

आज का सुसमाचार में पूर्वाभास के साथ आध्यात्मिक संकट पर विजय पाने का संदेश हैं। किसी ने एक बार कहा था“, ”अगर बुराई इतना गंभीर है कि उसमे सफलता का दृढसंकल्प है तो उसके बराबर अच्चाई में भी यह दृढसंकल्प होनी चाहिए“। यह सच हैं कि अपने सांससारिक जीवन में व्यवसाय, कैरियर, दोस्ती और कई अन्य चिंताए है लेकिन आध्यात्मिक जीवन की चिंता बहुत कम है । आज पूछा जाने वाला प्रश्न यह है कि यदि दुनिया के बच्चे अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अनैतिक तरीका और चीजो का उपयोग कर रहे है, तो हम ईश्वरीय कृपाओं के लिए अच्छे तरीकों का उपयोग क्यों नही करते ?

यह सच है कि आज इस दुनिया में आध्यात्मिक संकट है । इसलिए हमें चाहिए आध्यात्मिकता को पुनर्जीवित करने के लिए विश्वास की बहुत सारी रचनात्मक साझेदारी करें । विभिन्न प्रकार के कमिशन कार्य इस आशय की पूर्ति कर रहे है जैसेः जेल मिशन, बंजारो का देखभाल, ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, सामाजिक विकास कार्यक्रम नैतिक शिक्षा बाइबिल मूल्यों के आधार पर लघु फिल्मो का निर्माण, अध्यात्मिक पुस्तकालय, संगीत साधना, बाइबिल के कुछ पात्रो के नाम पर हास्य चित्र आदि। विश्वास के रचनात्मक आदान प्रदान के प्रति हमारी दूरदर्शिता हमारे भविष्य सुरक्षित कर सकती है ।

-फादर मेलविन चुल्लिकल


REFLECTION

“The simple believe everything, but the clever consider their steps” Prov. 14:15. Today’s gospel presents one of the perplexed and misunderstood parables told by Jesus. At first sight it is confusing as to how Jesus could praise the dishonest servant. But going deeper into the parable it is very clear that Jesus did not praise the servant for his dishonesty but for his farsightedness.

Overcoming the spiritual crisis with foresightedness is the message of the gospel today. Someone once said “If evil is serious in its craft and determined to succeed the good should be equally determined to succeed”. It is true that we take lot of effort in our earthly life to succeed in business, career, friendship and many other concerns but not in spiritual life. The question to be asked today is if the children of the world are using everything including immoral ways to secure their future then children of God should use every god given talent and good ways to win God’s favour?

It is a fact that there is a spiritual crisis in this world today. Therefore we require lot of creative sharing of faith to revive the spirituality. There are various ministries that are catering to this effect. Prison Ministry, Pastoral care for the Nomads, Village Health ministry, Social Development Programme, Value Education Ministry, Producing short films based on Bible Values, Spiritual Library on wheels, Music Ministry, Cartoons on biblical characters etc. are to name few. May our farsightedness through creative sharing of faith secure our future in heaven.

-Fr. Melvin Chullickal

मनन-चिंतन - 4

दुनिया में हम जीवित रहने के लिए, अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए, अपनी आय में सुधार करने और अपने जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। हम अपने लक्ष्यों तक जल्द से जल्द पहुंचने और अपनी इच्छानुसार सब कुछ प्राप्त करने के सही और गलत तरीके अपनाते हैं। लेकिन हम शायद ही कभी अपनी मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में सोचते हैं। मेरे मरने पर मेरा क्या होगा? येसु चाहते हैं कि हम इस विषय के बारे में सोचें और उसके अनुसार कार्य करें। आज के सुसमाचार में एक कारिन्दा है जो जब उसे पता चलता है कि वह अपनी नौकरी खो देगा, तो वह अपने लिए नयी व्यवस्था (हालांकि वे सांसारिक तरीके हैं) करना शुरू कर देता है यह सुनिश्चित करने के लिए कि जब वह नौकरी से बाहर निकाल दिया जायेगा, तो लोग अपने घरों में उसका स्वागत करें। प्रभु येसु चाहते हैं कि हम अनंत जीवन के बारे में सोचें। क्या मैंने अपने शाश्वत जीवन की सुरक्षा के बारे में सोचा है? क्या मैं किसी भी घटना के मुकाबला करने लिए तैयार हूँ?

-फादर फ्रांसिस स्करिया


REFLECTION

In the world we strive hard to survive, to extend our influence, to improve our income, and raise our living standards. We take right and wrong methods of reaching our goals as quickly as possible and of obtaining what we desire. But we seldom think about our life after death. What will happen to me when I die? Jesus wants us to think about this question and act accordingly. We have a steward in the Gospel who when he realises that he would lose his job, starts making arrangements (although they are worldly ways) to see that when he is out of the job, there will be some to welcome him into their homes. Jesus wants us to think about eternal life. Have I thought about the security of my eternal life? Am I prepared for any eventuality?

-Fr. Francis Scaria