हे राजाओ! सुनो और समझो। पृथ्वी भर के शासको! शिक्षा ग्रहण करो। तुम, जो बहुसंख्यक लोगों पर अधिकार जताते हो और बहुत-से राष्ट्रों का शासन करने पर गर्व करते हो, मेरी बातों पर कान दो। क्योंकि प्रभु ने तुम्हें प्रभुत्व प्रदान किया, सर्वोच्च ईश्वर ने तुम्हें अधिकार दिया। वही तुम्हारे कार्यों का लेखा लेगा और तुम्हारे विचारों की जाँच करेगा। तुम उसके राज्य के सेवक मात्र हो – इसलिए यदि तुमने सच्चा न्याय नहीं किया, विधि का पालन नहीं किया और ईश्वर की इच्छा पूरी नहीं की, तो वह भीषण रूप में अचानक तुम्हारे सामने प्रकट होगा; क्योंकि उच्च अधिकारियों का कठोर न्याय किया जायेगा। जो दीन-हीन है, वह क्षमा और दया का पात्र है; किन्तु जो शक्तिशाली हैं, उनकी कड़ी परीक्षा ली जायेगी। सर्वेश्वर पक्षपात नहीं करता और बड़ों के सामने नहीं झुकता क्योंकि उसी ने छोटे और बड़े, दोनों को बनाया और वह सबों का समान ध्यान रखता है, किन्तु शक्तिशालियों की कठोर परीक्षा ली जायेगी। इसलिए, हे शासको! मैं तुम्हें शिक्षा देता हूँ, जिससे प्रज्ञा प्राप्त करो और विनाश से बचे रहो, क्योंकि जो पवित्र नियमों का श्रद्धापूर्वक पालन करते हैं, वे पवित्र माने जायेंगे और जो उन नियमों से शिक्षा ग्रहण करेंगे, वे उनके आधार पर अपनी सफाई दे सकेंगे। इसलिए मेरी इन बातों को अपनाओ और इनका मनन करो जिससे तुम्हें शिक्षा प्राप्त हो जाये।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु! उठ खड़ा हो जा और पृथ्वी का न्याय कर।
1. निर्बल और अनाथ की रक्षा करो, दरिद्र और दीन-हीन को न्याय दिलाओ। निर्बल और दरिद्र को बचाओ, उन्हें दुष्टों के पंजे से छुड़ाओ।
2. मैंने कहा था, "तुम देवता हो, तुम सब के सब सर्वोच्च ईश्वर के पुत्र हो।” किन्तु तुम मनुष्यों की तरह मरोगे, तुम अन्य शासकों की तरह नष्ट हो जाओगे।
अल्लेलूया! आप लोग सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें, क्योंकि येसु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है। अल्लेलूया!
येसु येरुसालेम की यात्रा करते हुए समारिया और गलीलिया के सीमा क्षेत्रों से हो कर जा रहे थे। किसी गाँव में प्रवेश करते समय उन्हें दस कोढ़ी मिले। वे दूर खड़े हो कर ऊँचे स्वर से पुकारने लगे, "हे येसु! हे गुरु! हम पर दया कीजिए।” येसु ने उन्हें देख कर कहा, "जाओ और अपने को याजकों को दिखलाओ", और ऐसा हुआ कि वे रास्ते में ही नीरोग हो गये। तब उन में से एक यह देख कर कि मैं नीरोग हो गया हूँ, ऊँचे स्वर से ईश्वर की स्तुति करते हुए लौटा। वह येसु को धन्यवाद देते हुए उनके चरणों पर मुँह के बल गिर पड़ा, और वह समारी था। येसु ने कहा, "क्या दसों नीरोग नहीं हुए? तो बाकी नौ कहाँ हैं? क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे? " तब उन्होंने उस से कहा, "उठो, जाओ। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है।"
प्रभु का सुसमाचार।
येसु में हमारा विश्वास हमें किसी भी गंभीर बीमारी से भी ठीक कर सकता हैं। हमें बस पूर्ण विश्वास के साथ अपना निवेदन प्रस्तुत करना है और येसु अवश्य हमारी प्रार्थना पूर्ण करेंगे। हर चंगाई में हम जो प्रभु से प्राप्त करते हैं, उसकी एक अलिखित जिम्मेदारी भी होती है जो हमें अवश्य पूरी करनी चाहिये और वह है धन्यवाद देना और विनम्रतापूर्वक हमारे उपचार के अनुभव को साझा करना। दस कोढियों के विषय में सुना-चंगे सब हुए परन्तु धन्यवाद ज्ञापन केवल एक ने किया। वे नौ कहाँ गए? हम यहां किसका अनुसरण करने जा रहे हैं- नौ यहूदियों का यह विनम्र समारी का जो धन्यवाद देने वापस आया?
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)Our faith in Jesus can easily heal us of any sickness no matter how severe. We simply have to ask Jesus with faith and He surely would give it to us. Yet in every healing that we receive from the Lord there is also an unwritten responsibility that we have to do. And that is to give thanks and humbly share the healing experience we had. The ten lepers who were healed by Jesus obviously had faith otherwise they would have not been healed. But amongst the ten it was only the Samaritan who did not forget to go back to Jesus to humbly express His thanksgiving. How about the nine who were also healed, where did they go? Whom are we going to emulate here the nine Jews or the humble Samaritan?
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
प्रभु येसु के आज की चंगाई मिशन कार्य में तीन चरण हैं जिन्हें हमें प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है
1. बीमारी के समय में एकता
2. काढ़ियों का विश्वास
3. कोढ़ी की वफादारी
हालाँकि फिलिस्तीन के यहूदी समारी लोगों से घृणा करते थे, लेकिन आज के सुसमाचार में हम उन सभी को एक साथ देखते हैं। बीमारी से पीड़ित होने पर वे सभी एक साथ दूर खड़े रहते हैं और प्रभु को पुकारते हैं। उनके बीच अब कोई अलगाव नहीं रहा। दस कोढ़ियों के विश्वास की भी प्रशंसा करने की जरूरत है। येसु हर बार की तरह उन्हें उसी समय ठीक नहीं करते। वह उन्हें तुरंत जगह छोड़ने और चंगाई को प्रमाणित करने के लिए पुरोहित के सामने पेश करने के लिए कहते है। कोढ़ियों ने येसु के शब्दों में विश्वास किया और हालांकि उन्हें चंगाई नहीं मिला वे बिना एक भी शब्द बोले वहां से चले गए। उन्होंने येसु के शब्दों पर भरोसा किया और मंदिर में पुरोहित के पास प्रमाणित करने के लिए वे इस प्रकार आगे बढते हैं कि जैसे वे पहले से ही चंगे हो गये हो। येसु यह कहते हुए इसका साक्ष्य देते हैं कि आपके विश्वास ने आपको चंगा किया है।
वे सभी एक साथ आगे बढ़े और स्वयं को स्वच्छ साबित किया। हालाँकि उन्होंने महसूस किया कि वे शुद्ध हो गये थे, उनमें से केवल एक ही वापस आकर येसु को धन्यवाद देना चाहता था। सामरी के मन में कृतज्ञता का भाव देखा गया, जबकि दूसरों ने इसे हल्के में लिया। कृतज्ञ हृदय से उस को़ढ़ी की वापसी उसकी वफादारी को व्यक्त करती है। उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद करना याजक के प्रमाण से बढ़कर था। जिस क्षण उसने चंगाई का अनुभव किया, उसका हृदय ईश्वर के प्रति कृतज्ञता से भर गया। वह येसु के पास लौट आता है। हमें दैनिक जीवन में कई वरदान मिलते हैं लेकिन हम इसे हल्के में लेते हैं और उसका धन्यवाद करना भूल जाते हैं। प्राप्त उपकारों के लिए कृतज्ञता की अभिव्यक्ति हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण चीज है।
✍ -फादर मेलविन चुल्लिकल
There are three phases that we need to reflect in today’s healing miracle of Jesus
1. Unity in sickness
2. Faith of the leapers
3. Faithfulness of the leaper
Though the Jews in Palestine hated the Samaritans, in the gospel today we see all of them united. When affected with the sickness all of them stand together in a distance and call on the Lord. There was no separation anymore among them.
The faith of the ten leapers also needs to be admired. Jesus as usual does not heal them on the spot. He asks them to leave the place immediately and present themselves to the priest to certify the healing. The leapers believed in the words of Jesus and moved away from the place without uttering a word. They trusted the words of Jesus and proceeds to the priest in the temple to certify as if they are healed already. Jesus testifies it by saying that your faith has healed you.
All of them advanced together to prove themselves clean. Though they realized that they were clean only one of them wanted to come back and thank Jesus. An attitude of gratitude was seen in the mind of Samaritan where as others took it for granted. The return of the leaper with a grateful heart expresses his faithfulness. For him to render thanks to God was more than the certification from the priest. The moment he experienced healing he was filled with gratitude to God. He returned to Jesus.
We receive many gifts from God on daily basis but we take it for granted and forget to thank him. An expression of gratitude for the favours received is an important thing in our life
✍ -Fr. Melvin Chullickal
आज के सुसमाचार में हम दस कोढ़ियों की चंगाई की घटना पाते हैं। वे प्रभु येसु से उनके भयानक रोग से निजात दिलाने का अनुरोध करते हैं। उनमें से केवल एक जब उसने पाया कि उसे चंगाई प्राप्त हुयी है, प्रभु येसु को धन्यवाद देने के लिए वापस आया। उन्होंने प्रभु को हृदय से धन्यवाद दिया। बाइबिल कहती है, "वह ईसा को धन्यवाद देते हुए उनके चरणों पर मुँह के बल गिर पड़ा"। इस सामरी कोढ़ी को पता चला कि येसु न केवल उसकी शारीरिक बीमारी को दूर कर सकते हैं, बल्कि वे उसे मुक्ति दिलाने में भी सक्षम हैं। उसने येसु के व्यक्तित्व को मात्र उपचार से अधिक महत्व दिया। कभी-कभी हम येसु को कुछ चंगाई, एक नौकरी, एक बच्चे, कुछ आर्थिक लाभ आदि के लिए संपर्क करते हैं। हमारी सूची में पाप-क्षमा, पवित्रता, अनन्त मुक्ति आदि नहीं है। आज पाठ से दो शिक्षा हम पा सकते हैं - पहला, हमें हर एक अनुग्रह के लिए ईश्वर का आभारी होना चाहिए; दूसरा, हमें सांसारिक लाभ की तुलना में श्रेष्ठ आध्यात्मिक उपहार प्राप्त करने की आकांक्षा करनी होगी। तभी हम प्रभु से सुनने के लिए भाग्यशाली होंगे - "आपके विश्वास ने आपका उध्दार किया है"। सभी उपहारों में सबसे बड़ा स्वयं येसु ही है।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
In today’s gospel we have the incident of ten lepers requesting Jesus for cleansing from their dreaded disease. Only one among them finding that he received what he requested Jesus for, and came back to thank him. He profusely thanked the Lord. The Bible says, “He prostrated himself at Jesus’ feet and thanked him”. This Samaritan leper who came back realised that Jesus offered not only mere healing from his physical illness, but was able to give him eternal salvation. He valued the person of Jesus more than mere healing. Sometimes we approach Jesus for a healing, a job, a child, some economic gain etc. We do not have forgiveness of sin, holiness, eternal salvation etc. in our list. Two things we can take home from today’s readings – first, we have to be grateful to God for every single grace we receive; second, we have to aspire to receive superior spiritual gifts than earthly gains. Only then shall we be fortunate to hear from the Lord – “your faith has made you well”. The greatest of all gifts is Jesus himself.
✍ -Fr. Francis Scaria