वर्ष का बत्तीसवाँ सप्ताह, बुधवार - वर्ष 1

📕पहला पाठ

प्रज्ञा-ग्रन्थ 6:1-11

"हे राजाओ! सुनो और प्रज्ञा प्राप्त करो।”

हे राजाओ! सुनो और समझो। पृथ्वी भर के शासको! शिक्षा ग्रहण करो। तुम, जो बहुसंख्यक लोगों पर अधिकार जताते हो और बहुत-से राष्ट्रों का शासन करने पर गर्व करते हो, मेरी बातों पर कान दो। क्योंकि प्रभु ने तुम्हें प्रभुत्व प्रदान किया, सर्वोच्च ईश्वर ने तुम्हें अधिकार दिया। वही तुम्हारे कार्यों का लेखा लेगा और तुम्हारे विचारों की जाँच करेगा। तुम उसके राज्य के सेवक मात्र हो – इसलिए यदि तुमने सच्चा न्याय नहीं किया, विधि का पालन नहीं किया और ईश्वर की इच्छा पूरी नहीं की, तो वह भीषण रूप में अचानक तुम्हारे सामने प्रकट होगा; क्योंकि उच्च अधिकारियों का कठोर न्याय किया जायेगा। जो दीन-हीन है, वह क्षमा और दया का पात्र है; किन्तु जो शक्तिशाली हैं, उनकी कड़ी परीक्षा ली जायेगी। सर्वेश्वर पक्षपात नहीं करता और बड़ों के सामने नहीं झुकता क्योंकि उसी ने छोटे और बड़े, दोनों को बनाया और वह सबों का समान ध्यान रखता है, किन्तु शक्तिशालियों की कठोर परीक्षा ली जायेगी। इसलिए, हे शासको! मैं तुम्हें शिक्षा देता हूँ, जिससे प्रज्ञा प्राप्त करो और विनाश से बचे रहो, क्योंकि जो पवित्र नियमों का श्रद्धापूर्वक पालन करते हैं, वे पवित्र माने जायेंगे और जो उन नियमों से शिक्षा ग्रहण करेंगे, वे उनके आधार पर अपनी सफाई दे सकेंगे। इसलिए मेरी इन बातों को अपनाओ और इनका मनन करो जिससे तुम्हें शिक्षा प्राप्त हो जाये।

प्रभु की वाणी।

📖भजन

अनुवाक्य : हे प्रभु! उठ खड़ा हो जा और पृथ्वी का न्याय कर।

1. निर्बल और अनाथ की रक्षा करो, दरिद्र और दीन-हीन को न्याय दिलाओ। निर्बल और दरिद्र को बचाओ, उन्हें दुष्टों के पंजे से छुड़ाओ।

2. मैंने कहा था, "तुम देवता हो, तुम सब के सब सर्वोच्च ईश्वर के पुत्र हो।” किन्तु तुम मनुष्यों की तरह मरोगे, तुम अन्य शासकों की तरह नष्ट हो जाओगे।

📒जयघोष

अल्लेलूया! आप लोग सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें, क्योंकि येसु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है। अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 17:11-19

"इस परदेशी को छोड़ कर और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे?"

येसु येरुसालेम की यात्रा करते हुए समारिया और गलीलिया के सीमा क्षेत्रों से हो कर जा रहे थे। किसी गाँव में प्रवेश करते समय उन्हें दस कोढ़ी मिले। वे दूर खड़े हो कर ऊँचे स्वर से पुकारने लगे, "हे येसु! हे गुरु! हम पर दया कीजिए।” येसु ने उन्हें देख कर कहा, "जाओ और अपने को याजकों को दिखलाओ", और ऐसा हुआ कि वे रास्ते में ही नीरोग हो गये। तब उन में से एक यह देख कर कि मैं नीरोग हो गया हूँ, ऊँचे स्वर से ईश्वर की स्तुति करते हुए लौटा। वह येसु को धन्यवाद देते हुए उनके चरणों पर मुँह के बल गिर पड़ा, और वह समारी था। येसु ने कहा, "क्या दसों नीरोग नहीं हुए? तो बाकी नौ कहाँ हैं? क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे? " तब उन्होंने उस से कहा, "उठो, जाओ। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है।"

प्रभु का सुसमाचार।