वर्ष का बत्तीसवाँ सप्ताह, शनिवार - वर्ष 1

📕पहला पाठ

प्रज्ञा-ग्रन्थ 18:14-16;19:6-9

"लाल समुद्र में अबाध मार्ग दिखाई पड़ा। वे मेमनों की तरह उछलते-कूदते थे।”

जब सारी पृथ्वी पर गहरा सन्नाटा छाया हुआ था और रात्रि तीव्र गति से आधी बीत चुकी थी, तब तेरा सर्वशक्तिमान् वचन, तेरे अपरिवर्तनीय निर्णय की तलवार ले कर, स्वर्ग में तेरे राजकीय सिंहासन पर से एक दुर्दम्य योद्धा की तरह उस अभिशप्त देश में कूद पड़ा। वह उठ खड़ा हुआ और उसने सर्वत्र मृत्यु का आतंक फैला दिया। उसका सिर आकाश को छू रहा था और उसके पैर पृथ्वी पर थे। समस्त सृष्टि का, सभी तत्त्वों के साथ, नवीकरण किया गया और वह तेरे आदेशों का पालन करती थी, जिससे तेरे पुत्र सुरक्षित रह सकें। बादल उनके शिविर पर छाया करते थे। जहाँ पहले जलाशय था, वहाँ सूखी भूमि, लाल समुद्र के पार जाने वाला अबाध मार्ग और तूफ़ानी लहरों में एक हरा मैदान दिखाई पड़ा। इस प्रकार सारी प्रजा ने तेरे अपूर्व कार्य देखने के बाद, तेरे हाथ का संरक्षण पा कर, लाल समुद्र पार किया। हे प्रभु! वे तेरी, अपने मुक्तिदाता की, स्तुति करते हुए घोड़ों की तरह विचरते और मेमनों की तरह उछलते-कूदते थे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन :104:2-3,36-37,42-43

अनुवाक्य : प्रभु के पूर्व कार्य याद रखो।

1. प्रभु को धन्यवाद दो, उसका नाम धन्य कहो, राष्ट्रों में उसके महान् कार्यों का बखान करो। उसके पवित्र नाम पर गौरव करो। प्रभु को खोजने वालों का हृदय आनन्दित हो।

2. उसने मिस्त्रियों के हर एक पहलौठे को, उनकी जवानी की सभी पहली सन्तानों को मार दिया। तब वह इस्राएल को सोना-चाँदी के साथ निकाल लाया। उनके वंशों में से एक भी वहाँ नहीं छोड़ा गया।

3. उसने अपने सेवक इब्राहीम को दी गयी अपनी पवित्र प्रतिज्ञा को स्मरण रखा। इसलिए वह अपनी प्रफुल्लित प्रजा को, आनन्द के गीत गाते अपने कृपापात्रों को निकाल लाया।

📒जयघोष

अल्लेलूया! ईश्वर ने सुसमाचार द्वारा हमें प्रभु येसु मसीह की महिमा का भागी बना दिया है। अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 18:1-8

"ईश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए, जो उसकी दुहाई देते हैं, न्याय की व्यवस्था करेगा।"

नित्य प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए- येसु ने यह समझाने के लिए उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया। "किसी नगर में एक न्यायकर्त्ता था, जो न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता था। उसी नगर में एक विधवा थी। वह उसके पास आ कर कहा करती थी, 'मेरे मुद्दई के विरुद्ध मुझे न्याय दिलाइए'। बहुत समय तक वह अस्वीकार करता रहा। बाद में उसने मन-ही-मन यह कहा, 'मैं न तो ईश्वर से डरता और न किसी की परवाह करता हूँ, किन्तु वह विधवा मुझे तंग करती है; इसलिए मैं उसके लिए न्याय की व्यवस्था करूँगा, जिससे वह बार-बार आ-आ कर मेरी नाक में दम न करती रहे'।" प्रभु ने कहा, "सुनते हो कि वह अधर्मी न्यायकर्त्ता क्या कहता है? क्या ईश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए, जो रात-दिन उसकी दुहाई देते रहते हैं, न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा? क्या वह उनके विषय में देर करेगा? मैं तुम से कहता हूँ - वह शीघ्र ही उनके लिए न्याय करेगा। परन्तु जब मानव पुत्र आयेगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास बचा हुआ पायेगा?"

प्रभु का सुसमाचार।