वर्ष का तैंतीसवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 1

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📕पहला पाठ

मक्काबियों का पहला ग्रन्थ 1:10-15,41-43,54-57,62-64

"इस्राएल पर ईश्वर का प्रकोप छाया रहा।"

राजा अन्तियोख का पुत्र अन्तियोख एपीफानेस बड़ा दुष्ट था। वह रोम में बन्धक के रूप में रह चुका था। वह यूनानी साम्राज्य के एक सौ सैंतीसवें वर्ष में राजा बना। उन दिनों इस्राएल में ऐसे लोग थे, जो संहिता की परवाह नहीं करते थे और यह कहते हुए बहुतों को बहकाते थे, "आओ! हम अपने चारों ओर के राष्ट्रों के साथ सन्धि कर लें, क्योंकि जब से हम उन से अलग हो गये, हमें अनेक विपत्तियों का सामना करना पड़ा।" यह बात उन्हें अच्छी लगी : उन में से कई लोग तुरन्त राजा से मिलने गये और राजा ने उन्हें गैरयहूदी जीवन-चर्या के अनुसार चलने की अनुमति दी। इसलिए उन्होंने गैरयहूदियों के रिवाज के अनुसार येरुसालेम में एक व्यायामशाला बनवायी। उन्होंने अपने को बेखतना कर लिया और पवित्र विधान को त्याग दिया। उन्होंने गैरयहूदियों का जूआ स्वीकार किया और वे पाप के दास बन गये। राजा ने अपने समस्त राज्य के लिए यह लिखित आदेश निकाला कि सब लोग एक ही राष्ट्र बन जायें और सब अपने विशेष रिवाजों का परित्याग कर दें। सब लोगों ने राजा के आदेश का पालन किया। इस्राएलियों में से भी बहुतों ने, देवमूर्तियों को बलि चढ़ा कर और विश्राम-दिवस को अपवित्र कर, राजा का धर्म सहर्ष स्वीकार कर लिया। एक सौ पैंतालीसवें वर्ष के किसलेव महीने के पंद्रहवें दिन राजा ने होमबलि की वेदी पर उजाड़ का वीभत्स दृश्य (अर्थात् देवमूर्ति को) स्थापित किया। यूदा के नगरों में चारों ओर देवमूर्तियों की वेदियाँ बनायीं गयीं और लोग घरों के द्वार के सामने तथा चौकों में धूप चढ़ाने लगे। जब उन्हें संहिता की पोथियाँ मिलती थीं, तो वे उन्हें फाड़ कर आग में डाल देते थे। जिसके यहाँ विधान का ग्रन्थ पाया जाता अथवा जो संहिता का पालन करता, उसे राजा के आदेशानुसार प्राणदण्ड दिया जाता था। फिर भी बहुत-से इस्स्राएली दृढ़ बने रहे और उन्होंने दृढ़ संकल्प किया कि वे अशुद्ध भोजन नहीं खायेंगे। वे मृत्यु को स्वीकार करते थे, जिससे वे अवैध भोजन खा कर दूषित न हो जायें और पवित्र विधान भंग न करें। इस प्रकार बहुत-से इस्राएली मर गये। ईश्वर का प्रकोप इस्राएल पर छाया रहता था।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 118:53,61,134,150,155,158

अनुवाक्य : हे प्रभु! मुझे जीवन प्रदान कर और मैं तेरी इच्छा पूरी करूँगा।

1. विधर्मियों को तेरी संहिता की उपेक्षा करते देख कर मैं क्रुद्ध हो जाता हूँ।

2. विधर्मियों ने मुझे अपने जाल में फँसा लिया था, किन्तु मैंने तेरी संहिता को नहीं भुला दिया।

3. मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा और मैं तेरी आज्ञाओं का पालन करूँगा।

4. तेरी संहिता की उपेक्षा करने वाले कुकर्मी मेरे निकट आ रहे हैं।

5. तेरी आज्ञाओं का उल्लंघन करने वाले दुष्ट लोग मुक्ति के अधिकारी नहीं होंगे।

6. तेरी प्रतिज्ञा की उपेक्षा करने वाले पापियों को देख कर मुझे घृणा आती है।

📒जयघोष

अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "संसार की ज्योति मैं हूँ। जो मेरा अनुसरण करता है, उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।” अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 18:35-43

"मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? " "प्रभु! मैं फिर देख सकूँ।”

जब येसु येरिको के निकट आ रहे थे, तो एक अंधा सड़क के किनारे बैठा भीख माँग रहा था। उसने भीड़ को गुजरते सुन कर पूछा कि क्या हो रहा है। लोगों ने उसे बताया कि येसु नाजरी इधर से आ रहे हैं। इस पर वह यह कह कर पुकार उठा, "हे येसु! दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए।" आगे चलने वाले उसे चुप करने के लिए डाँटते थे, किन्तु वह और भी जोर से पुकारता रहा, "दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए।" येसु ने रुक कर उसे पास ले आने को कहा। जब वह पास आया, तो येसु ने उस से पूछा, "क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? " उसने उत्तर दिया, "प्रभु! मैं फिर देख सकूँ।" येसु ने उस से कहा, "जाओ, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है।" वह उसी क्षण देखने लगा और ईश्वर की स्तुति करते हुए येसु के पीछे हो लिया। सारी जनता ने यह देख कर ईश्वर की स्तुति की।

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में अंधे व्यक्ति की आशा और उद्धार येसु पर टिका हुआ था। जब उसने सुना की येसु पास से जा रहे हैं तो वह अपनी सारी शक्ति से चिल्लाया ‘‘ईसा! दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए।’’ उसके चिल्लाने में येसु में विश्वास के साथ उसकी प्रार्थना भी शामिल थी। येसु ने उस अंधे व्यक्ति को निराश नहीं किया। उस अंधे व्यक्ति ने ना केवल दृष्टि दान प्राप्त की अपितु वह येसु का अनुयायी भी बन गया। अंधे व्यक्ति को हमसे क्या अलग करता हैं? उसका अटल विश्वास। यह विश्वास ही हैं जो पहाड़ों को हिला सकता है। यही विश्वास उस अंधे व्यक्ति को हमसे अलग करता है। भीड़ ने उसे डाँटा, फटकारा पर अपने दृढ़ विश्वास के कारण उसने चंगाई प्राप्त की।

फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)

📚 REFLECTION


The blind man in our gospel had his hope and salvation anchored on Jesus. When he heard that Jesus was passing by he shouted with all his might, “Jesus, Son of David, have pity on me!” His shout comprised his prayer with faith in Jesus. From a hopeless situation the blind man suddenly found hope and salvation because Jesus passed by him. And Jesus did not disappoint the blind man because He asked him, “What do you want me to do for you?” Then the blind man said in reply, please let me see my Lord and immediately he receive his sight and he became a follower of Jesus from thereon. What separates the blind man from us? It’s his persistent and persevering faith, it’s faith that can move mountains. This is what separates this blind man from many us, what if we are in the shoes of the blind man? Would we simply give up and be silent because we were rebuked and sternly told to be silent? But this blind man, when he was rebuked and told to be silent the more that he persisted and the more that he cried to Jesus for help. And because of his persevering and persistent faith he was heard and given the gift of sight by Jesus.

-Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)

मनन-चिंतन -2

उस अंधे व्यक्ति ने आजमानी एक कोशिश की । हालाकि उसे डाटा गया और वह निराश भी हुआ अपितु उसने हार नहीं मानी । बड़ी भीड येसु को चारों तरफ से घेरे हुई थी, उस अंधे व्यक्ति का येसु के पास जाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था । आस-पास के लोगो के शोर के साथ उसकी वाणी भी येसु के पास नही पहॅंुच सकती थी । इस तथ्य को महसूस करते हुए उसने अपनी पूरी शक्ति से जोर से चिल्लाने का निर्णय किया । येसु ने उसकी वाणी सुनी और उसे अपने पास आने का आदेश दिया । हमने अपने जीवन में कितनी बार येसु के करीब आने का प्रयत्न किया है ? अथवा कितनी गंभीरता से कोशिश की है ?येसु ने उसे अपना निवेदन बोलने के लिए कहा। येसु के साथ उपस्थित सभी लोग जानते थे कि वह व्यक्ति दृष्टिदान चाहता है । अर्थात् अपनी दृष्टि को पुनः वापस पाना चाहता है ।

लेकिन येसु ने उससे यह सुनिश्चित करने के लिए पूछा की जीवन में उसकी प्राथमिकता क्या है ?कभी -कभी हम अपने जीवन में प्राथमिकताएॅं निर्धारित करते समय आवश्यक चीजों को नजर अंदाज कर देते है । इसके फलस्वरूप प्रभु के सामने आने पर हमारा ध्यान विचलित हो जाता है । हम सुसमाचार में इस प्रकार के चरित्र का सटीक उदाहरण पेत्रुस में पाते है । येसु के रूपान्तरण के समय, पेत्रुस महिमा का आनंद लेने के बजाय मूसा, एलिय्याह और येसु के लिए तम्बू बनाने की बात करता है । उस अंधे वयक्ति ने येसु का अनुसरण किया और ईश्वर की महिमा की । उस क्षण जब उस व्यक्ति ने महसूस किया की वो चंगा हो गया है तो उसके जीवन का एकमात्र उद्धेश्य था येसु का अनुसरण करना और प्रभु की महिमा करना । उसने येसु से वो वरदान प्राप्त किया जो उसके जीवन की सर्वाधिक बहुमूल्य वस्तु थी । वह अपना आभार येसु का अनुसरण करके व्यक्त करता है । हम ईश्वर से प्राप्त सभी आशीषो और कृपादानों के लिए कितनी बार कृतज्ञता और आभार प्रकट करते है ?

-फादर मेलविन चुल्लिकल


REFLECTION

The blind man took a chance. Though he was discouraged and rebuked he never gave up. Big crowd moving around Jesus it was very difficult for the blind man to get closer to Jesus. With the noise of the people around, it was also impossible for him to be heard by Jesus. Realising this fact he took a chance of shouting at the top of his voice. Behold he was rewarded by Jesus bringing him closer. How often have we taken the chance of coming closer to Jesus or how much effort have we made for the same.

Jesus made him to speak out his request. Everyone gathered there including Jesus knew the need of the man that he wanted his vision back. But Jesus asks him the question to make sure the priority he has in life, Sometimes we leave out the essentials when we set priorities in our life. We can be distracted as we come before the Lord. In the gospel we see such a character in Peter. At the time of transfiguration instead of enjoying the moment of glory Peter was speaking about making a tent for Moses, Elijah and Jesus.

He followed Jesus and glorified God. Once the man realized that he was healed his sole intention was to follow Jesus and glorifying God. He received something from Jesus, which was the most wanted thing in his life. He expresses his gratitude by following Jesus. How often have we been thankful to God for the blessings we receive from Him?

-Fr. Melvin Chullickal

मनन-चिंतन - 3

प्रभु येसु वहाँ से गुजर रहे थे। सड़क के किनारे बैठे अंधे भिखारी ने यह महसूस किया कि येसु वहाँ से गुजर रहे हैं। वह येसु से मिलने के लिए उत्सुक था। वह चुप रहने को तैयार नहीं था, हालांकि लोगों ने उसे चुप रहने को कहा। प्रभु ने उसकी पुकार सुनी और उसे अपने पास बुला कर चंगा किया। येसु के साथ हुई मुलाकात से उसका जीवन बदल गया। येसु आज भी जीवित हैं और हर दिन हमारे पास से गुजर रहे हैं। शायद हम उनसे मिलने के लिए उस अंधे भिखारी के समान उत्सुक नहीं हैं। हममें से कुछ लोग जीवन में आशा खो चुके होंगे और इसलिए येसु भी हमारी आशा को नहीं जगा पा रहे हैं। एक बात पक्की है, समय निकल जाएगा। वे जो हमारे जीवन में हस्तक्षेप कर सकते हैं जल्द ही चले जायेंगे और फिर कोई भी हमारी मदद करने में सक्षम नहीं होगा। हमारे लिए आवंटित समय भी समाप्त हो जायेगा। मैं क्या तय करूं?

-फादर फ्रांसिस स्करिया


REFLECTION

Jesus was passing by. The blind beggar sitting by the roadside realising that Jesus was passing by cried out to him for healing. He was desperate. He was not willing to keep quiet although people told him to keep quiet. Jesus heard his cry and called for him and healed him. His life changed with that encounter with Jesus. Jesus is living and is passing by us every day. We have a tendency to postpone our encounter with him. Some of us are not very keen on meeting him. Some of us may have lost hope in life and so even Jesus is not able to awaken our hope. One thing is sure, the time will run out. He who can intervene in our life will have gone soon and then no one will be able to help. What do I decide?

-Fr. Francis Scaria