एलेआजार मुख्य शास्त्रियों में से एक था, वह बहुत बूढ़ा हो चला था और उसकी आकृति भव्य तथा प्रभावशाली थी। वह अपना मुँह खोलने और सूअर का मांस खाने के लिए बाध्य किया जा रहा था। किन्तु उसने कलंकित जीवन की अपेक्षा गौरवपूर्ण मृत्यु को चुना। वह सूअर का मांस उगल कर स्वेच्छा से उस स्थान की ओर बढ़ा, जहाँ कोड़े लगाये जाते थे। ऐसा उन लोगों को करना चाहिए, जिन्हें जीवन का मोह छोड़ कर वर्जित भोजन अस्वीकार करने का साहस है। उस अवैध भोजन का प्रबन्ध करने वाले एलेआजार के पुराने परिचित थे। उन्होंने उसे अलग ले जा कर अनुरोध किया कि वह ऐसा मांस मँगवा कर खाये, जो वर्जित नहीं है और जिसे उसने स्वयं पकाया है, और राजा के आदेश के अनुसार बलि का मांस खाने का स्वाँग मात्र करे। इस प्रकार वह मृत्यु से बच सकेगा और पुरानी मित्रता के कारण उसके साथ अच्छा व्यवहार किया जायेगा। किन्तु उसने एक उत्तम निश्चय किया, जो उसकी उम्र, उसकी वृद्धावस्था की मर्यादा, उसके सफेद बालों, बचपन से उसके निर्दोष आचरण और विशेष कर ईश्वर द्वारा प्रदत्त पवित्र नियमों के अनुकूल था। उसने उत्तर दिया, "मुझे तुरन्त अधोलोक पहुँचा दो। मेरी अवस्था में इस प्रकार का स्वाँग अनुचित है। कहीं ऐसा न हो कि बहुत-से युवक यह समझें कि एलेआजार ने नब्बे बरस की उम्र में विदेशियों के रीति-रिवाज अपनाये हैं। मेरे जीवन का बहुत कम समय रह गया है, यदि मैं उसे बचाने के लिए इस प्रकार का स्वाँग करता, तो वे शायद मेरे कारण भटक जाते और मेरी वृद्धावस्था पर दोष और कलंक लग जाता। यदि मैं इस प्रकार अभी मनुष्यों के दण्ड से बच जाता, तो भी, चाहे जीवित रहूँ अथवा मर जाऊँ, मैं सर्वशक्तिमान् के हाथ से नहीं छूट पाता। इसलिए यदि मैं अभी साहस के साथ अपना जीवन अर्पित करूंगा, तो मैं अपनी वृद्धावस्था की प्रतिष्ठा बनाये रखूँगा और युवकों के लिए यह अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करूँगा कि किस प्रकार पूज्य तथा पवित्र विधियों की रक्षा के लिए कोई स्वेच्छा से और आनन्द के साथ मर सकता है।" यह कह कर एलेआजार सीधे उस स्थान की ओर बढ़े, जहाँ कोड़े लगाये जाते थे। जो पहले उनके साथ सहानुभूति दिखलाते थे, वे अब उसके साथ दुर्व्यवहार करने लगे, क्योंकि एलेआजार ने उन से जो कहा था, वह उन्हें मूर्खता ही लगी। कोड़ों की मार से मरते समय एलेआजार ने आह भर कर यह कहा, "प्रभु, सब कुछ जानता है। वह जानता है कि मैं मृत्यु से बच सकता था। मैं कोड़ों की मार से जो असह्य पीड़ा अपने शरीर में भोग रहा हूँ, उसे अपनी आत्मा से स्वेच्छा से स्वीकार करता हूँ, क्योंकि मैं उस पर श्रद्धा रखता हूँ।" इस प्रकार वह मर गया और उसने मरते समय न केवल युवकों के लिए, बल्कि राष्ट्र के अधिकाँश लोगों के लिए साहस तथा धैर्य का आदर्श प्रस्तुत किया।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु मुझे सँभालता है।
1. हे प्रभु! कितने ही हैं मेरे शत्रु! कितने ही मुझ से विद्रोह करते हैं! कितने ही मेरे विषय में यह कहते हैं - उसका ईश्वर उसकी सहायता नहीं करता।
2. हे प्रभु! तू ही मेरी ढाल और मेरा गौरव है। तू ही मेरा सिर ऊपर उठाता है। ज्योंही मैं प्रभु की दुहाई देता हूँ, वह अपने पवित्र पर्वत से मुझे उत्तर देता है।
3. मैं अपनी शय्या पर लेट कर सो जाता और फिर जागता हूँ : क्योंकि प्रभु मुझे सँभालता है। मैं उन लाखों शत्रुओं से नहीं डरता, जो चारों ओर मेरे विरुद्ध खड़े हैं।
अल्लेलूया! ईश्वर ने हम को पहले प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिए अपने पुत्र को भेजा है। अल्लेलूया!
येसु येरिको में प्रवेश कर आगे बढ़ रहे थे। जकेयुस नामक एक प्रमुख और धनी नाकेदार यह देखना चाहता था कि येसु कौन है। परन्तु वह छोटे कद का था, इसलिए वह भीड़ में उन्हें नहीं देख सका। वह आगे दौड़ कर येसु को देखने के लिए एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि वह उसी रास्ते से आने वाले थे। जब येसु उस जगह पहुँचे, तो उन्होंने आँखें ऊपर उठा कर जकेयुस से कहा, "जकेयुस! जल्दी नीचे आओ, क्योंकि आज मुझे तुम्हारे यहाँ ठहरना है।" उसने तुरन्त उतर कर आनन्द के साथ अपने यहाँ येसु का स्वागत किया। इस पर सब लोग यह कह कर भुनभुनाने लगे, "वह एक पापी के यहाँ ठहरने गये।” जकेयुस ने दृढ़ता से प्रभु से कहा, "प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी सम्पत्ति गरीबों को दूँगा और मैंने जिन लोगों के साथ किसी बात में बेईमानी की है, उन्हें उसका चौगुना लौटा दूँगा।" येसु ने उस से कहा, "आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है, क्योंकि यह भी इब्राहीम का बेटा है। जो खो गया था, मानवपुत्र उसी को खोजने और बचाने आया है।"
प्रभु का सुसमाचार।
जकेयुस के लिए छोटा कद और भीड़ बाधा थी। बाधा उन मूलभूत चीजों में से एक है जिनका सामना हम सभी अपनी आध्यात्मिक यात्रा में करते हैं। जिस क्षण से हम येसु का अनुसरण करने का निर्णय लेते हैं, उसी क्षण से हमारे जीवन में बाधाएँ और जटिलताएँ आ जाती हैं। ज़केयुस जैसे व्यक्ति के लिए येसु को देखने के लिए पेड़ पर चढ़ना एक शर्मनाक बात थी। अगर कोई उसे चढ़ते हुए देखता तो वे उसका मजाक उड़ा सकते थे। लेकिन ज़केयुस ऐसा करने के लिए तैयार था क्योंकि वह उस बाधा को दूर करना चाहता था जिसने उसकी दृष्टि को अवरुद्ध कर दिया था। बाधाएं कमजोर बहाने हैं जो हम अक्सर ईश्वर से दूर जाने के लिए करते हैं लेकिन ऐसे अवरोधों को दूर करने के लिए हम कितनी परेशानी उठाते हैं, यह ईश्वर की दृष्टि में बहुत मूल्यवान है।
ज़केयुस स्वयं को येसु के सामने उन्मुक्त करता है। येसु की उपस्थिति में ज़केयुस ने महसूस किया कि उसके पास येसु से छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। उसने अपने अपराध और उसकी क्षतिपूर्ति के लिए सभी के समक्ष स्वीकार किया। ईश्वर की दृष्टि के सामने हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।
येसु उसे और उसके घराने को आशीष देते है। जब ज़केयुस ने अपने साथ येसु की शिक्षा को स्वीकार करने की इच्छा दिखाई तो उसके साथ-साथ उसका परिवार भी आशीषित हुआ। इब्राहीम के साथ उसके परिवार को भी आशीष मिली; इस्राएल के लोगों के साथ-साथ मूसा और दाऊद को भी आशीष दी गई। प्रेरित चरित 16ः31 में हम पढ़ते हैं ‘‘आप प्रभु ईसा में विश्वास कीजिए, तो आप को और आपके परिवार को मुक्ति प्राप्त होगी’’ एक व्यक्ति के माध्यम से ईश्वर उसके आसपास के लोगों, परिवार, पड़ोस, समाज, देश और पूरे ब्रह्मांड को आशीर्वाद देते हैं।
आइए हम ज़केयुस की तरह येसु तक पहुँचने का प्रयास करें और उनके सामने अपना हृदय खुला रखंें ताकि वह हमें और हमारे परिवारों को आशीर्वाद दे सके।
✍ -फादर मेलविन चुल्लिकल
Short stature and crowd were obstacles for Zacchaeus. Obstacle is one of the basic things that all of us face in our spiritual journey. From the very moment we decide to follow Jesus the obstructions and complications pop up in our life. For a man like Zacchaeus it was a shameful thing to climb on the tree to see Jesus. If someone saw him climbing they could make fun of him. But Zacchaeus was ready to do that because he wanted to remove the obstacle that blocked his vision. Impediments are lame excuses that we often make to move away from God but how much trouble we take to remove such obstructions is very much valued in the eyes of God.
Zacchaeus opens himself up before the Jesus. In the presence of Jesus Zacchaeus realized that he had nothing to hide from Him. He made an open confession of his offense and restitution for the same. Before the eyes of God we have nothing to hide
Jesus blesses him and his household. When Zacchaeus showed his willingness to accept the teachings of Jesus along with him his household also was blessed. Abraham was blessed with his family; Moses and David were blessed along with the people of Israel. In Acts 16:31 we read “Believe in the Lord Jesus and you will be saved, you and your household” Through one person God blesses the people around him, family, neighbourhood, the society, the country, and the entire universe.
Like Zacchaeus let us make an effort to reach Jesus and be open before him so that He may bless us and our families.
✍ -Fr. Melvin Chullickal
प्रभु येसु धीरे-धीरे ज़ाकेयुस को ईश्वर के राज्य की ओर ले जाते हैं। वे वाद-विवाद तथा तर्कों के माध्यम से उसे पराजित नहीं करते हैं; न ही वे उसे डांटते हैं। वे उसके साथ एक सौम्य बैठक के द्वारा ईश्वर के लिए उसे जीत लेते हैं। येसु की करुणा और दया का प्रभाव ज़ाकेयुस के जीवन में पड़ने लगता है। येसु कुछ समय ज़केयुस के साथ बिताते हैं। उनकी मौजूदगी ज़केयुस की मानसिकता को बदलने और उसके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए सक्षम है। ज़केयुस अब एक परिवर्तित व्यक्ति है। मैं मसीह के संदेश ले कर लोगों से कैसे संपर्क करूं? क्या मैं उन पर दोष लगाता हूँ? प्रभु येसु हमें बताते हैं “मुझसे सीखो; क्योंकि मैं हृदय से विनम्र और विनीत हूँ” (मत्ती 11:29)।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Jesus gently leads Zachaeus to the Kingdom of God. He does not defeat him through arguments; nor does he scold him. He wins him for God in a gentle meeting with him. Jesus’ compassion and mercy finds their effects in the life of Zachaeus. Jesus spends some time with Zachaeus. His very presence is so effective in changing the mindset of Zachaeus and leading him to conversion. Zachaeus is a changed person now. How do I approach people with the message of Christ? Do I become judgmental towards them? Jesus tells us “learn from me; for I am gentle and humble in heart” (Mt 11:29).
✍ -Fr. Francis Scaria