मैंने रात्रि के समय यह दिव्य दृश्य देखा : आकाश की चारों दिशाओं की हवाएँ महासमुद्र को उद्वेलित कर रही थीं और उस में से चार विशालकाय पशु थे, जो एक दूसरे से भिन्न थे। पहला सिंह जैसा था, किन्तु उसके गरुड़ के से पंख थे। मैं देख ही रहा था कि उसके पंख उखाड़े गये, उसे उठा कर दो पाँवों पर मनुष्य की तरह खड़ा कर दिया गया और उसे मनुष्य जैसा हृदय दिया गया। दूसरा भालू जैसा था। वह आधा ही खड़ा था और वह अपने मुँह में दाँतों के बीच, तीन पसलियाँ लिए था। उसे यह आदेश दिया गया, "उठो और बहुत-सा मांस खाओ।" इसके बाद मैंने चीते जैसा एक और पशु देखा। उसकी पीठ पर पक्षियों के चार डैने थे और उसे चार सिर थे। उसे राजाधिकार दिया गया। अन्त में मैंने रात्रि के दृश्य में एक चौथा पशु देखा। वह विभीषण, डरावना और अत्यन्त बलवान् था। उसके दाँत लोहे के थे। वह चबाता और खाता जाता था और जो कुछ रह जाता उसे पैरों तले रौंद देता था। वह पहले के सभी पशुओं से भिन्न था और उसके दस सींग थे। मैं वे सींग देख ही रहा था कि उनके बीच में से एक और छोटा-सा सींग निकला और उसके लिए जगह बनाने के लिए पहले सींगों में से तीन उखाड़े गये। उस सींग की मनुष्य जैसी आँखें थीं और उसका एक डींग मारता हुआ मुँह भी था। मैं देख ही रहा था कि सिंहासन रख दिये गये और एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उसके वस्त्र हिम की तरह उज्ज्वल थे और उसके सिर के केश निर्मल ऊन की तरह। उसका सिंहासन ज्वालाओं का समूह था और सिंहासन के पहिये धधकती अग्नि। उसके सामने से आग की धारा बह रही थी। सहस्रों उसकी सेवा कर रहे थे। लाखों उसके सामने खड़े थे। न्याय की कार्यवाही प्रारंभ हो रही थी। और पुस्तकें खोल दी गयीं। मैंने देखा कि सींग के डींग मारने के कारण चौथा पशु मारा गया। उसकी लाश आग में डाली और जलायी गयी। दूसरे पशुओं से भी उनके अधिकार छीन लिये गये, किन्तु उन्हें कुछ और समय तक जीवित ही छोड़ दिया गया। तब मैंने रात्रि के दृश्य में देखा कि आकाश के बादलों पर मानव पुत्र जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया। उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।
1. पर्वत और पहाड़ियाँ प्रभु को धन्य कहें।
2. पृथ्वी का प्रत्येक पौधा प्रभु को धन्य कहे।
3. जलस्त्रोत प्रभु को धन्य कहें।
4. समुद्र और नदियाँ प्रभु को धन्य कहें।
5. मकर और समस्त जलचारी प्रभु को धन्य कहें।
6. आकाश के पक्षी प्रभुं को धन्य कहें।
7. बनैले और पालतू पशु प्रभु को धन्य कहें।
अल्लेलूया! उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है। अल्लेलूया!
येसु ने अपने शिष्यों को यह दृष्टान्त सुनाया, "अंजीर और दूसरे पेड़ों को देखो। जब उन में अंकुर फूटने लगते हैं, तब तुम सहज ही जान लेते हो कि गरमी आ रही है। इसी तरह जब तुम इन बातों को होते देखोगे, तो यह जान लेना कि ईश्वर का राज्य निकट है।" "मैं तुम से कहे देता हूँ कि इस पीढ़ी के अंत हो जाने से पूर्व ही, ये सब बातें घटित हो जायेंगी। आकाश और पृथ्वी टल जायें तो टल जायें, परन्तु मेरे शब्द नहीं टल सकते।”
प्रभु का सुसमाचार।