मैं बहुत व्याकुल हो उठा और अपने मन के दृश्यों के कारण विस्मित हो गया। मैंने वहाँ उपस्थित लोगों में से एक के पास जा कर पूछा कि इन सब बातों का अर्थ क्या है और उसने मुझे समझाते हुए कहा, "ये चार विशालकाय पशु चार राज्य हैं, जो पृथ्वी पर प्रकट होंगे, किन्तु सर्वोच्च प्रभु के सन्तों को जो राजत्व दिया जायेगा, वह अनन्तकाल तक बना रहेगा।” तब मैंने जानना चाहा कि उस चौथे पशु का अर्थ क्या है, जो सभी पहले पशुओं से भिन्न था, जो बहुत डरावना था, जो चबाता और खाता जाता था और जो कुछ रह जाता, उसे पैरों तले रौंदता था। मैंने उसके सिर के दस सींगों के विषय में जानना चाहा और उस अन्य सींग के विषय में भी, जिसके निकलने पर तीन सींग उखड़ गये उस सींग के विषय में जिसकी आँखें थी, जिसका एक डींग मारने वाला मुँह था और जो दूसरे सींगों से अधिक बड़ा दिखता था। मैं देख ही रहा था कि वह सींग सन्तों से युद्ध कर रहा था और वयोवृद्ध व्यक्ति के आने तक उन पर प्रबल हो रहा था। उसने सर्वोच्च प्रभु के सन्तों को न्याय दिलाया और वह समय आया जब सन्तों ने राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। उसने मुझे यह उत्तर दिया "चौथा पशु पृथ्वी पर प्रकट होने वाला चौथा राज्य है। वह अन्य सब राज्यों से भिन्न होगा। वह समस्त पृथ्वी को खा जायेगा और पैरों तले रौंद कर चूर-चूर कर देगा। वे दस सींग इस राज्य के दस राजा हैं। उनके बाद एक ऐसे राजा का उदय होगा, जो पहले के राजाओं से भिन्न होगा और तीन राजाओं को परास्त कर देगा। वह सर्वोच्च प्रभु के विरुद्ध बोलेगा, सर्वोच्च प्रभु के सन्तों पर अत्याचार करेगा और पर्वों और प्रथाओं में परिवर्तन लाने की योजना तैयार करेगा। सन्त साढ़े तीन वर्ष तक उसके हाथ में दिये जायेंगे। इसके बाद न्याय की कार्यवाही प्रारंभ होगी। राजत्व उस से छीन लिया जायेगा और सदा के लिए उसका सर्वनाश किया जायेगा। तब पृथ्वी भर के सब राज्यों का अधिकार, प्रभुत्व और वैभव सर्वोच्च प्रभु के सन्तों की प्रजा को प्रदान किया जायेगा। उसका राज्य सदा बना रहेगा और सभी राष्ट्र उसकी सेवा करेंगे और उसके अधीन रहेंगे।”
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : उसकी महिमा गाओ और निरन्तर उसकी स्तुति करो।
1. मानव जाति प्रभु को धन्य कहे।
2. इस्राएल प्रभु को धन्य कहे।
3. प्रभु के याजक प्रभु को धन्य कहें।
4. प्रभु के सेवक प्रभु को धन्य कहें।
5. धर्मियों की आत्माएँ प्रभु को धन्य कहें।
6. भक्त जन और दीन-हृदय प्रभु को धन्य कहें।
अल्लेलूया! जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो। जिससे तुम भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़ा होने योग्य बन जाओ। अल्लेलूया!
येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से तुम्हारा मन कुण्ठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे; क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पड़ेगा। इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़ा होने योग्य बन जाओ।"
प्रभु का सुसमाचार।
अनिश्चितताओं के विरुद्ध सर्वोत्तम सुरक्षा क्या है? हमारी सबसे अच्छी सुरक्षा येसु के साथ हमारा संबंध है। ऐसा कनेक्शन जिसमें हमारे थोड़े से समय के अलावा कुछ भी खर्च नहीं होगा। जब हम प्रार्थना करते हैं, हम येसु से जुड़ते हैं, बात करते हैं और अपने उत्साही प्रार्थना जीवन के माध्यम से उनसे संपर्क स्थापित करते हैं। प्रार्थना हमारे लिए क्या करती है? यह हमें आंतरिक शांति देती है। दैनिक जीवन के संघर्षों और कठिनाइयों के बीच भी हम हमेशा शांत रहते हैं। सक्रिय प्रार्थना जीवन हमें उन सभी संभावनाओं के लिए तैयार करता है जो जीवन हमारे लिए ला सकता है। अभी हम जिस दुनिया में हैं वह इतनी अनिश्चित है कि हम नहीं जानते कि आगे क्या होगा। आज के सुसमाचार में येसु शिष्यों से कहते हैंः “परन्तु हर समय जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो कि तुम्हें इन सब होने वाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने की शक्ति मिले।“
✍फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रांत)What is the best protection against the uncertainties and anxieties of this world? Our best protection is our connection with Jesus. Connection that will cost us nothing except a little of our time. We connect with Jesus when we pray, we talk and establish contact with Him through our fervent prayer life. What does prayer do to us? It gives us inner peace. We are always calm amidst the struggles and difficulties of daily life. Active prayer life prepares us for whatever possibilities that life may bring us. The world that we are in right now is so uncertain we don’t know what may happen next. In the gospel for today Jesus tells the disciples: “But watch at all times, praying that you may have strength to escape all these things that will take place, and to stand before the Son of man.” Luke 21:36
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)