सामान्य काल का तीसरा सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 2

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📕पहला पाठ

समूएल का दूसरा ग्रन्थ 6:12-15,17-19

“दाऊद और सब इस्राएली जयकार करते हुए प्रभु की मंजूषा ले आये।”

दाऊद गया और ईश्वर की मंजूषा ओबेद-एदोम के घर से बड़े आनन्द के साथ दाऊद-नगर ले आया। जब ईश्वर की मंजूषा ढोने वाले छह कदम आगे बढ़ गये थे, तो दाऊद ने एक बैल और एक मोटे बछड़े की बलि चढ़ायी। वह छालटी का अधोवस्त्र पहने प्रभु के सामने उल्लास के साथ नाच रहा था। इस प्रकार दाऊद और सब इस्राएली जयकार करते और तुरही बजाते हुए प्रभु की मंजूषा ले आये। उन्होंने मंजूषा को ला कर उस तम्बू के मध्य में रख दिया, जिसे दाऊद ने उसके लिए खड़ा किया था। इसके बाद दाऊद ने प्रभु को होम और शांति के बलिदान चढ़ाये। होम और शांति के बलिदान चढ़ाने के बाद दाऊद ने विश्वमंडल के प्रभु के नाम पर लोगों को आशीर्वाद दिया। अन्त में उसने समस्त प्रजा, सभी एकत्र इस्नाएली पुरुषों और स्त्रियों को एक-एक रोटी, भुने हुए मांस का एक-एक टुकड़ा और किशमिश की एक-एक टिकिया दी। इसके बाद सब लोग अपने-अपने घर गये।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 23:7-10

अनुवाक्य : हे महाप्रतापी राजा कौन है? प्रभु ही वह महाप्रतापी राजा है।

1. ऐ फाटको ! मेहराब ऊपर करो! ऐ प्राचीन द्वार! ऊँचे हो जाओ ! महाप्रतापी राजा को प्रवेश करने दो।

2. वह महाप्रतापी राजा कौन है? प्रभु ही वह महाप्रतापी राजा है - समर्थ, शक्तिशाली और पराक्रमी।

3. ऐ फाटको ! मेहराब ऊपर करो ! ऐ प्राचीन द्वारो ! ऊँचे हो जाओ ! महाप्रतापी राजा को प्रवेश करने दो !

4. वह महाप्रतापी राजा कौन है? वह महाप्रतापी राजा विश्वमंडल के प्रभु हैं।

📒जयघोष : मत्ती 11:25

अल्लेलूया ! हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 3:31-35

“जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।”

किसी दिन येसु की माता और भाई आये। उन्होंने घर के बाहर से उन्हें बुला भेजा। लोग येसु के चारों ओर बैठे हुए थे। उन्होंने उन से कहा, “देखिए, आपकी माता और आपके भाई-बहनें बाहर हैं। वे आप को खोज रहे हैं।” येसु ने उत्तर दिया, “कौन है मेरी माता, कौन हैं मेरे भाई?" उन्होंने अपने चारों ओर बैठे हुए लोगों पर दृष्टि दौड़ायी और कहा, “ये हैं मेरी माता और मेरे भाई ! जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।”

प्रभु का सुसमाचार।


📚 मनन-चिंतन

येसु भीड़ से घिरा हुआ है, और किसी ने उन्हें बताया कि उनकी माँ और भाई बाहर इंतज़ार कर रहे हैं, उनसे बात करना चाहते हैं। येसु ऐसा उत्तर देते हैं जो आश्चर्यजनक था। वह इकट्ठे हुए लोगों को देखता है और कहता है, “यहाँ मेरी माँ और मेरे भाई है। जो कोई ईश्वर की इच्छा पर चलता है, वह मेरा भाई और बहन और माँ है।” येसु का यह कथन ईश्वर के परिवार के बारे में एक गहरा रहस्योद्घाटन है। वह रक्त संबंधों से परे परिवार की अवधारणा का विस्तार करते हुए इसमें उन सभी को शामिल करता है जो ईश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं। दूसरे शब्दों में, येसु उस आध्यात्मिक परिवार पर जोर दे रहे हैं जिसमें हम तब प्रवेश करते हैं जब हम ईश्वर के मार्गों का अनुसरण करते हैं। यह समझना आवश्यक है कि येसु हमारे सांसारिक परिवारों के महत्व को कम नहीं कर रहे हैं। इसके बजाय, वह हमारे आध्यात्मिक परिवार के महत्व पर प्रकाश डाल रहा है, जो ईश्वर की इच्छा का पालन करने के लिए एक आम प्रतिबद्धता से जुड़ा हुआ है। हम कैथोलिक विश्वासियों को यह याद दिलाता है कि हमारी एकता ईश्वर के प्रति हमारी प्रतिबद्धता में पाई जाती है। जब हम उनकी शिक्षाओं के अनुसार जीने और ईश्वर की इच्छा पूरी करने का प्रयास करते हैं तो हम सभी मसीह के परिवार का हिस्सा हैं। यह संदेश हमें उन तरीकों पर विचार करने के लिए आमंत्रित करता है जिनसे हम साथी विश्वासियों के साथ अपने आध्यात्मिक बंधन को मजबूत कर सकते हैं। क्या हम अपनी विश्वास-यात्राओं में एक दूसरे का समर्थन कर रहे हैं? क्या हम अपने निकटतम दायरे से परे मसीह के व्यापक परिवार को पहचानते हैं? आइए हम अपने समुदायों और पल्लियों में प्रेम और समर्थन का माहौल विकसित करें, यह स्वीकार करते हुए कि हम सभी मसीह में भाई और बहन हैं।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

p>Jesus is surrounded by a crowd, and someone informs Him that His mother and brothers are waiting outside, wanting to speak with Him. Jesus responds in a way that may seem surprising. He looks around at the people gathered and says, “Here are my mother and my brothers Whoever does the will of God is my brother and sister and mother.” This statement by Jesus is a profound revelation about the family of God. He expands the concept of family beyond blood relations to include everyone who does the will of God. In other words, Jesus is emphasizing the spiritual family we enter into when we follow God’s ways. It’s essential to understand that Jesus isn’t diminishing the importance of our earthly families. Instead, He is highlighting the significance of our spiritual family, bound together by a common commitment to follow God’s will. As Catholic Christians, it reminds us that our unity is found in our shared commitment to God. We are all part of the family of Christ when we strive to live according to His teachings and do the will of God. This message invites us to consider the ways we can strengthen our spiritual bonds with fellow believers. Are we supporting one another in our faith journeys? Do we recognize the broader family of Christ beyond our immediate circles? In our communities and parishes, let’s foster an environment of love and support, acknowledging that we are all brothers and sisters in Christ.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन -2

आज के सुसमाचार में, प्रभु येसु कहते हैं, "जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।" (मारकुस 3:35)। संत पौलुस हमें बताते हैं हम ईश्वर की इच्छा को कैसे जान सकते हैं। “आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि बस कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।” (रोमियों 12: 2)। ईश्वर की इच्छा वही है जो भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम हो। यदि हम वह करते हैं जो भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है, तो हम ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं। 1थेसेलनीकियों 4: 3-6 में संत पौलुस ईश्वर की इच्छा की व्याख्या करते हैं। वे कहते हैं, ईश्वर की इच्छा यह है कि आप लोग पवित्र बनें और व्यभिचार से दूर रहें। आप में प्रत्येक धर्म और औचित्य के अनुसार अपने लिए एक पत्नी ग्रहण करे। गैर-यहूदियों की तरह, जो ईश्वर को नहीं जानते, कोई भी वासना के वशीभूत न हो। कोई भी मर्यादा का उल्लंघन न करे और इस सम्बन्ध में अपने भाई के प्रति अन्याय नहीं करे; क्योंकि प्रभु इन सब बातों का कठोर दण्ड देता है, जैसा कि हम आप लोगों को स्पष्ट शब्दों में समझा चुके हैं।” 1योहन 2:16-17 संसार में जो शरीर की वासना, आंखों का लोभ और धन-सम्पत्ति का घमण्ड है – ये सब ईश्वर की इच्छा के विरुध्द हैं। मीकाह 6:8 के अनुसार ईश्वर की इच्छा है – “न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण”। संत याकूब हमें सुझाव देते हैं कि हम अपनी मर्जी का पालन करने के बजाय, यह कहना सीखें - "यदि ईश्वर की इच्छा होगी, तो हम जीवित रहेंगे और यह या वह काम करेंगे"। प्रभु की प्रार्थना में हम प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर की इच्छा जैसे स्वर्ग में वैसे पृथ्वी पर भी होवे। आइए हम अपनी इच्छाएँ परमेश्वार की सर्वोच्च इच्छा के अधीन करें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel, Jesus says, “Whoever does the will of God is my brother and sister and mother” (Mk 3:35). St. Paul tells us how to discern the Will of God. “Do not be conformed to this world, but be transformed by the renewing of your minds, so that you may discern what is the will of God — what is good and acceptable and perfect (Rom 12:2). The Will of God is what is good and acceptable and perfect. If we do what is good, acceptable and perfect, we can please God. In 1Thess 4:3-6 St. Paul interprets the will of God. He says, “For this is the will of God, your sanctification: that you abstain from fornication; that each one of you know how to control your own body in holiness and honor, not with lustful passion, like the Gentiles who do not know God; that no one wrong or exploit a brother or sister”. According to 1Jn 2:16-17 the world with the desires of the flesh and the desires of the eyes and pride in possessions are opposed to the Will of God. According to Micah, 6:6 the will of God is “to do justice, and to love kindness, and to walk humbly with your God”. St. James suggests that instead of following our own will, we should learn to say always, “If the Lord wishes, we will live and do this or that” (Jam 4:15). In the Lord’s prayer we pray that the Will of God may be done on earth as in heaven. Let us submit our wills to the supreme will of God.

-Fr. Francis Scaria