वर्ष का आठवाँ सप्ताह, शुक्रवार - वर्ष 2

पहला पाठ

सन्त पेत्रुस का पहला पत्र 4:7-13

"ईश्वर के बहुविध अनुग्रह के सुयोग्य भंडारी की तरह दूसरों की सेवा में ईश्वरीय वरदान का उपयोग करें।"

सब का अंत निकट आ गया है। आप लोग संतुलन तथा संयम रखें जिससे आप प्रार्थना कर सकें। मुख्य बात यह है कि आप आपस में गहरा भ्रातृ-प्रेम बनाये रखें, क्योंकि प्रेम बहुत-से पाप ढाँक देता है। आप खुशी से एक दूसरे का अतिथ्य-सत्कार करें। जिसे जो वरदान मिला है, वह ईश्वर के बहुविध अनुग्रह के सुयोग्य भंडारी की तरह दूसरों की सेवा में उसका उपयोग करें। जो प्रवचन देता है, उसे स्मरण रहे कि वह ईश्वर के शब्द बोल रहा है। जो धर्मसेवा करता है, वह जान ले कि ईश्वर ही उसे बल प्रदान करता है। इस प्रकार सब बातों में येसु मसीह द्वारा ईश्वर की महिमा प्रकट हो जायेगी। उसी को युग युगों तक महिमा तथा अधिकार ! आमेन ! प्यारे भाइयो! अग्नि से आप लोगों की परीक्षा ली जा रही है। आप इस पर आश्चर्य नहीं कीजिए, मानो यह कोई असाधारण घटना हो। यदि आप लोगों पर अत्याचार किया जाये, तो मसीह के दुःखभोग के सहभागी बन जाने के कारण प्रसन्न हो जाइए। जिस दिन मसीह की महिमा प्रकट हो जायेगी, आप लोग अत्यधिक आनन्दित हो उठेंगे।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 95:10-13

अनुवाक्य : प्रभु पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है।

1. राष्ट्रों को यह घोषित करो, "प्रभु ही राजा है।" उसी ने पृथ्वी का आधार सुदृढ़ बना दिया। वह न्यायपूर्वक सभी लोगों का न्याय करेगा।

2. स्वर्ग में आनन्द हो और पृथ्वी पर उल्लास, सागर की लहरें गरज उठें, खेतों के पौधे खिल जायें और बन के सभी वृक्ष आनन्द का गीत गायें।

3. क्योंकि प्रभु का आगमन निश्चित है। वह पृथ्वी का न्याय करने आ रहा है। वह धर्म और सच्चाई से संसार के राष्ट्रों का न्याय करेगा।

जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मैंने तुम्हें इसलिए चुना कि तुम जा कर फल उत्पन्न करो और तुम्हारा फल बना रहे।" अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 11:11-26

"मेरा घर सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर कहलायेगा। तुम लोग ईश्वर में विश्वास करो।"

लोगों के स्वागत के बाद येसु ने येरुसालेम पहुँच कर मंदिर में प्रवेश किया। वहाँ सब कुछ अच्छी तरह देख कर वह अपने शिष्यों के साथ बेथानिया चले गये, क्योंकि संध्या हो चली थी। दूसरे दिन जब वे बेथानिया से चले आ रहे थे, तो येसु को भूख लगी। वह कुछ दूरी पर एक पत्तेदार अंजीर का पेड़ देख कर उसके पास गये कि शायद उस पर कुछ फल मिलें; किन्तु वहाँ पहुँचने पर उन्होंने पत्तों के सिवा और कुछ नहीं पाया, क्योंकि वह अंजीर का मौसम नहीं था। येसु ने पेड़ से कहा, "फिर कभी कोई तेरे फल न खाये।" उनके शिष्यों ने उन्हें यह कहते सुना। वे येरुसालेम पहुँचे। मंदिर में प्रवेश कर येसु वहाँ से बेचने और खरीदने वालों को बाहर निकालने लगे। उन्होंने सराफों की मेजें और कबूतर बेचने वालों की चौकियाँ उलट दीं और वह किसी को भी घड़ा लिये मंदिर से हो कर आने-जाने नहीं देते थे। उन्होंने लोगों को शिक्षा देते हुए कहा, "क्या यह नहीं लिखा है - मेरा घर सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर कहलायेगा; परन्तु तुम लोगों ने उसे लुटेरों का अड्डा बना दिया है।" महायाजकों तथा शास्त्रियों को इसका पता चला और वे येसु के सर्वनाश का उपाय ढूँढ़ने लगे। वे उन से डरते थे, क्योंकि लोग मंत्रमुग्ध हो कर उनकी शिक्षा सुनते थे। संध्या हो जाने पर वह शहर के बाहर चले जाते थे। प्रातः जब वे उधर से आ रहे थे, तो शिष्यों ने देखा कि अंजीर का वह पेड़ जड़ से सूख गया है। पेत्रुस को वह बात याद आयी और उसने कहा, "गुरुवर ! देखिए, अंजीर का वह पेड़, जिसे आपने शाप दिया था, सूख गया है।" येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "ईश्वर में विश्वास करो। मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - यदि कोई इस पहाड़ से यह कहे, 'उठ, समुद्र में गिर जा', और मन में सन्देह न करे, बल्कि यह विश्वास करे कि मैं जो कह रहा हूँ, वह पूरा होगा, तो उसके लिए वैसा ही हो जायेगा। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ - तुम जो कुछ प्रार्थना में माँगते हो, विश्वास करो कि वह तुम्हें मिल गया है और वह तुम्हें दिया जायेगा।" "जब तुम प्रार्थना के लिए खड़े हो और तुम्हें किसी से कोई शिकायत हो, तो क्षमा कर दो, जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे। परन्तु यदि तुम क्षमा नहीं करोगे, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।"

प्रभु का सुसमाचार।