वर्ष का बारहवाँ सप्ताह, बुधवार - वर्ष 2

पहला पाठ

राजाओं का दूसरा ग्रन्थ 22:8-13;23:1-3

"राजा ने विधान का ग्रन्थ, जो प्रभु के मंदिर में पाया गया, पूरा-पूरा पढ़ सुनाया और प्रभु के सामने आज्ञापालन की प्रतिज्ञा की।"

महायाजक हिलकीया ने मंत्री शाफान से कहा, "मुझे प्रभु के मंदिर में संहिता का ग्रन्थ मिला है।" हिलकीया ने शाफान को वह ग्रन्थ दिया और इसने उसे पढ़ा। इसके बाद मंत्री शाफान ने राजा के पास जा कर कहा, "आपके सेवकों ने प्रभु के मंदिर की चाँदी गला कर उसे उन कारीगरों को दिया, जो प्रभु के मंदिर में हो रहे काम का निरीक्षण करते हैं।" मंत्री शाफान ने राजा से यह भी कहा कि याजक हिलकीया ने उसे एक ग्रन्थ दिया था। शाफान ने उसे राजा को पढ़ कर सुनाया। जब राजा ने सुना कि संहिता के ग्रन्थ में क्या लिखा है, तो उसने अपने वस्त्र फाड़ कर याजक हिलकीया, शाफान के पुत्र अहीकाम, मीकाया के पुत्र अकबोर, मंत्री शाफान और अपने दरबारी असाया को यह आदेश दिया, "तुम लोग जाओ। जो ग्रन्थ हमें मिल गया है उसके विषय में मेरी, जनता और समस्त यूदा की ओर से प्रभु से परामर्श करो। प्रभु का महाक्रोध हम पर भड़क उठा, क्योंकि हमारे पुरखों ने उस ग्रन्थ की आज्ञाओं का पालन नहीं किया और उस में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार आचरण नहीं किया।" उनके लौटने के बाद राजा ने यूदा और येरुसालेम के नेताओं को बुला भेजा और वे उसके पास एकत्र हो गये। राजा प्रभु के मंदिर गया। यूदा के सब पुरुष, येरुसालेम के सब निवासी, याजक और नबी, और छोटों से ले कर बड़ों तक सभी लोग राजा के साथ थे। उसने विधान का ग्रन्थ, जो प्रभु के मंदिर में पाया गया था, पूरा-पूरा पढ़ सुनाया। राजा मंच पर खड़ा हो गया और उसने प्रभु के सामने यह प्रतिज्ञा की कि हम प्रभु के अनुयायी बनेंगे। हम सारे हृदय और सारी आत्मा से उसके आदेशों, नियमों और आज्ञाओं का पालन करेंगे और इस प्रकार इस ग्रन्थ में लिखित विधान की सब धाराएँ बनाये रखेंगे। सारी जनता ने विधान का आज्ञापालन करना स्वीकार किया।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 118:33-37<40

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मुझे अपनी आज्ञाओं का मार्ग बतला।

1. हे प्रभु ! मुझे अपनी आज्ञाओं का मार्ग बतला, मैं उस पर सदा चलता रहूँगा।

2. मुझे ऐसी शिक्षा दे जिससे मैं सारे हृदय से तेरी संहिता का पालन करता रहूँ।

3. मुझे अपनी आज्ञाओं के पथ पर ले चल, क्योंकि इस से मुझे आनन्द आता है।

4. मेरे हृदय में सम्पत्ति का नहीं, बल्कि अपने नियमों का प्रेम रोपने की कृपा कर।

5. निस्सार संसार की ओर से मेरी दृष्टि हटा। मुझे अपनी शिक्षा द्वारा नवजीवन प्रदान कर।

6. मैं तेरी आज्ञाओं को हृदय से चाहता हूँ। तू सत्यप्रतिज्ञ है, तू मुझे जीवन प्रदान कर।

जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा। जो मुझ में रहता है, वही बहुत फलता है।" अल्लेलूया !

सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:15-20

"उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे।"

येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "भूठे नबियों से सावधान रहो। वे भेड़ों के भेस में तुम्हारे पास आते हैं, किन्तु वे भीतर से खूंखार भेड़िये हैं। उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे। क्या लोग कंटीली झाड़ियों से अंगूर या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इस तरह हर अच्छा पेड़ अच्छे फल देता है और बुरा पेड़ बुरे फल देता है। अच्छा पेड़ बुरे फल नहीं दे सकता और न बुरा पेड़ अच्छा फल। जो पेड़ अच्छा फल नहीं देता, वह काटा और आग में झोंक दिया जाता है। इसलिए उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे।"

प्रभु का सुसमाचार।