हे इस्स्राएलियो ! सुनो ! प्रभु तुम से, उस समस्त प्रजा से, जिसे वह मिश्र से निकाल लाया है, यह कहता है। मैंने पृथ्वी के सब राष्ट्रों में से तुम लोगों को ही चुना है। इसलिए मैं तुम्हारे अपराधों के कारण तुम्हें दण्डित करूँगा। क्या दो व्यक्ति साथ-साथ यात्रा करेंगे, जब तक उन्होंने पहले से तय न कर दिया हो? क्या सिंह जंगल में गरजता है, जब तक उसे शिकार न मिला हो? क्या सिंह शावक अपनी माँद में गुर्राता है, जब तक उसे कुछ न मिला हो? क्या पक्षी पृथ्वी पर फन्दे में पड़ता है, जब उस में कोई चारा नहीं हो? क्या फन्दा जमीन पर से उछलता है, जब तक उस में शिकार न आया हो? क्या नगर में सिंगे की आवाज सुनाई देगी और लोग डरेंगे नहीं? क्या नगर पर ऐसी विपत्ति आ सकती है, जिसे प्रभु ने वहाँ न भेजा हो? क्योंकि प्रभु-ईश्वर नबियों, अपने सेवकों को सूचना दिये बिना कुछ नहीं करता। सिंह गरजा है, तो कौन नहीं डरेगा? प्रभु-ईश्वर बोला है, तो कौन भविष्यवाणी नहीं करेगा? जिस प्रकार ईश्वर ने सोदोम और गोमोरा का सर्वनाश किया था, उसी प्रकार मैंने तुम पर विपत्ति भेजी है। तुम आग में से निकाली हुई लुआठी जैसे बन गये थे, फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे। यह प्रभु की वाणी है। ऐ इस्राएल ! इसलिए मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा। और क्योंकि मैं तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करूँगा, हे इस्राएल ! तुम अपने ईश्वर के सामने आने के लिए तैयार हो जाओ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! मुझे सही रास्ते पर ले चल।
1. तू न तो बुराई से समझौता कर लेता और न दुष्टों को शरण देता है। घमण्डी तेरे सामने टिक नहीं पाते।
2. तू सभी कुकर्मियों से घृणा करता और सभी झूठ बोलने वालों का सर्वनाश करता है। प्रभु कपटियों और हत्यारों का तिरस्कार करता है।
3. तू मुझे प्यार करता और अपने मंदिर में आने देता है। मैं बड़ी श्रद्धा से तेरे पवित्र मंदिर को दण्डवत् करता हूँ।
अल्लेलूया ! प्रभु ही मेरा आसरा है। मेरी आत्मा उसकी प्रतिज्ञा पर भरोसा रखती है। अल्लेलूया !
येसु अपने शिष्यों के साथ नाव पर सवार हो गये। उस समय समुद्र में एकाएक इतनी भारी आँधी उठी कि नाव लहरों से ढकी जा रही थी। परन्तु येसु तो सो रहे थे। शिष्यों ने पास आ कर उन्हें जगाया और कहा, "प्रभु ! हमें बचाइए। हम डूब रहे हैं।" येसु ने उन से कहा, "रे अल्पविश्वासियो ! डरते क्यों हो?" तब उठ कर उन्होंने वायु और समुद्र को डाँटा और पूर्ण शांति छा गयी। इस पर वे लोग अचंभे में पड़ कर कहने लगे, "आखिर यह कौन हैं? वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते हैं।"
प्रभु का सुसमाचार।
टक और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्या बड़ी है। किन्तु सँकरा है वह द्वार और सँकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।"प्रभु का सुसमाचार।