वर्ष का तेरहवाँ सप्ताह, शुक्रवार - वर्ष 2

पहला पाठ

नबी आमोस का ग्रन्थ 8:4-6,9-12

"रोटी की भूख नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख।"

तुम लोग मेरी यह बात सुनो, तुम जो दीन-हीन को रौंदते हो और देश के गरीबों को समाप्त कर देना चाहते हो। तुम कहते हो, अमावस का पर्व कब बीतेगा, ताकि हम अपना अनाज बेच सकें? विश्राम का दिन कब बीतेगा, ताकि हम अपना गेहूँ बेच सकें? हम अनाज की नाप छोटी कर देंगे, रुपये का वजन बढ़ायेंगे और तराजू को खोटा बनायेंगे। हम चाँदी के सिक्के से दरिद्र को खरीद लेंगे और जूतों की जोड़ी के दाम पर कंगाल को। हम गेहूँ का कचरा तक बेच देंगे। यह प्रभु की वाणी है उस दिन मैं मध्याह्न में ही सूर्य को डुबा दूँगा और दोपहर में ही पृथ्वी पर अन्धकार फैलाऊँगा, मैं तुम्हारे पर्वों को शोक में और तुम्हारे गीतों को विलाप में बदल दूँगा। मैं सबों को टाट के कपड़े पहनाऊँगा और सबों के सिर का मुण्डन कराऊँगा। मैं इस देश को वही शोक दिलाऊँगा, जो एकलौते पुत्र के लिए होता है और इसका अंतिम दिन बहुत कड़वा होगा। यह प्रभु की वाणी है – वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस देश में भूख भेजूँगा- रोटी की भूख और पानी कौं प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास। तब वे प्रभु की वाणी की खोज में एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक दौड़ते फिरेंगे और उत्तर से पूर्व तक भटकते रहेंगे, किन्तु वे उसे कहीं भी नहीं पायेंगे।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 118:2,10,20,30,40,131

अनुवाक्य : मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।

1. धन्य हैं वे, जो उसकी आज्ञाओं का पालन करते और उन्हें हृदय से चाहते हैं।

2. मैं सारे हृदय से तुझे खोजता रहा। मुझे अपनी आज्ञाओं के मार्ग से भटकने न दे।

3. मेरी आत्मा सदा-सर्वदा तेरी शिक्षा के लिए तरसती है।

4. मैंने सत्य कां मार्ग चुना और तेरी आज्ञाओं के पालन का निश्चय किया।

5. मैं तेरी आज्ञाओं को हृदय से चाहता हूँ। तू सत्यप्रतिज्ञ है; तू मुझे जीवन प्रदान कर।

6. मैं आह भर कर बड़ी उत्सुकता से तेरी आज्ञाओं के लिए तरसता रहता हूँ।

जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो ! तुम सब के सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।" अल्लेलूया !

सुसमाचार (वर्ष 1 और वर्ष 2)

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:9-13

"नीरोगों को वैद्य की जरूरत नहीं होती। मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ।"

येसु वहाँ से आगे बढ़े। उन्होंने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी घर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, "मेरे पीछे चले आओ", और वह उठ कर उनके पीछे हो लिया। किसी दिन येसु अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर में भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करते थे। यह देख कर फ़रीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, "तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?" येसु ने यह सुन कर उन से कहा, "नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की जरूरत होती है। जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है - मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।"

प्रभु का सुसमाचार।