वर्ष का उन्नीसवाँ सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 2

📕पहला पाठ

नबी एज़ेकिएल का ग्रन्थ 2:8-3:4

"उसने मुझे वह पुस्तक खिलायी और उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था।"

प्रभु यह कहता है, "हे मनुष्य के पुत्र ! मैं जो कहने जा रहा हूँ, उसे सुनो। इस विद्रोही प्रजा की तरह विद्रोह मत करो। अपना मुँह खोलो और जो दे रहा हूँ, उसे खा लो।" मैंने आँखें ऊपर कर देखा कि एक हाथ मेरी ओर बढ़ रहा है और उस में एक लपेटी हुई पुस्तक थी। उसने उसे खोल दिया। कागज पर दोनों ओर लिखा हुआ था उस पर विलाप, मातम और शोक के गीत अंकित थे। उसने मुझ से कहा, "मनुष्य के पुत्र ! जो अपने सामने है, उसे खा लो। यह पुस्तक खा जाओ और तब इस्राएल की प्रजा को संबोधित करो।" मैंने अपना मुँह खोला और उसने मुझे यह पुस्तक खिलायी। उसने मुझ से कहा, "मनुष्य के पुत्र ! मैं जो पुस्तक दे रहा हूँ, उसे खाओ और उस से अपना पेट भर लो।" मैंने उसे खा लिया; मेरे मुँह में उसका स्वाद मधु जैसा मीठा था। उसने मुझ से कहा, " मनुष्य के पुत्र ! इस्राएल की प्रजा के पास जा कर उसे मेरे शब्द सुनाओ।"

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 118:14,24,72,103,111,131

अनुवाक्य : हे प्रभु ! तेरी प्रतिज्ञा मेरे लिए कितनी मधुर है।

1. धन-सम्पत्ति की अपेक्षा मुझे तेरी इच्छा पूरी करने से अधिक आनन्द मिला।

2. तेरी इच्छा पूरी करने में आनन्द आता है, तेरी आज्ञाएँ मेरा पथप्रदर्शन करती हैं।

3. संसार की सोना-चांदी की अपेक्षा मुझे तेरी संहिता कहीं अधिक वांछनीय है।

4. मुँह में टपकने वाले मधु की अपेक्षा तेरी प्रतिज्ञा मेरे लिए कहीं अधिक मधुर है।

5. तेरी शिक्षा ही मेरी सम्पत्ति है। इस में मेरा हृदय रमता है।

6. मैं आह भर कर बड़ी उत्सुकता से तेरी आज्ञाओं के लिए तरसता हूँ।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ।" अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 18:1-5,10,12-14

"सावधान रहो ! उन नन्हों में से एक को भी तुच्छ न समझो।"

उस समय शिष्य येसु के पास आ कर पूछने लगे, "स्वर्ग के राज्य में सब से बड़ा कौन है?" येसु ने एक बालक को बुलाया और उसे उनके बीच खड़ा कर कहा, "मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ- यदि तुम फिर छोटे बालकों जैसे नहीं बन जाओगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करोगे। इसलिए जो अपने को इस बालक जैसा छोटा समझता है, वही स्वर्ग के राज्य में सब से बड़ा है। और जो मेरे नाम पर ऐसे बालक का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है।" "सावधान रहो ! उन नन्हों में से एक को भी तुच्छ न समझो। मैं तुम से कहता हूँ - उनके दूत स्वर्ग में निरन्तर मेरे स्वर्गिक पिता के दर्शन करते हैं।" "तुम्हारा क्या विचार है- यदि किसी के एक सौ भेड़ें हों और उन में से एक भी भटक जाये, तो क्या वह उन निन्यानबे भेड़ों को पहाड़ी पर छोड़ कर उस भटकी हुई को खोजने नहीं जायेगा? और यदि वह उसे पाये, तो विश्वास करो कि उसे उन निन्यानबे की अपेक्षा, जो भटकी नहीं थीं, उस भेड़ के कारण अधिक आनन्द होगा। उसी तरह मेरा स्वर्गिक पिता नहीं चाहता कि उन नन्हों में से एक भी खो जाये।"

प्रभु का सुसमाचार।