वर्ष का उन्नीसवाँ सप्ताह, वृहस्पतिवार - वर्ष 2

📕पहला पाठ

नबी एज़ेकिएल का ग्रन्थ 12:1-12

"तुम दिन में उनके देखते ही प्रवास के लिए प्रस्थान करोगे।"

प्रभु की वाणी मुझे यह कहती हुई सुनाई दी, "मनुष्य के पुत्र ! तुम विद्रोही लोगों के बीच रहते हो। देखने के लिए उनके आँखें हैं, किन्तु वे देखते नहीं; सुनने के लिए कान हैं, किन्तु वे सुनते नहीं; क्योंकि वे विद्रोही हैं। मनुष्य के पुत्र ! प्रवास का सामान बाँध लो और दिन में सबों के देखते प्रवास के लिए प्रस्थान करो। तुम जहाँ रहते हो, उनके देखते ही वहाँ से प्रवास के लिए प्रस्थान करो। हो सकता है कि वे समझ जायें कि वे एक विद्रोही प्रजा हैं। प्रवास का सामान दिन में ही उनके देखते-देखते बाहर रखो और संध्या को उनकी आँखों के सामने प्रवास के लिए प्रस्थान करो। उनके देखते ही दीवाल में छेद करो और उस से निकल जाओ। उनके देखते ही सामान कंधों पर रख कर संध्या के समय प्रस्थान करो। अपना मुँह ढक लो जिससे तुम भूमि नहीं देख सको, क्योंकि मैं तुम्हें इस्राएली प्रजा के सामने एक चिह्न के रूप में प्रस्तुत करने जा रहा हूँ।" मुझे जैसा आदेश मिला था, मैंने वैसा ही किया। मैंने दिन में प्रवास का सामान बाहर रखा और संध्या के समय अपने हाथ से दीवाल में छेद किया। मैं झटपुटे में कंधे पर सामान रख कर उनके देखते ही चला गया। दूसरे दिन प्रातः मुझे प्रभु की वाणीं यह कहती हुई सुनाई पड़ी, "मनुष्य के पुत्र ! क्या इस्राएल की विद्रोही प्रजा ने तुम से यह नहीं पूछा कि तुम क्या करते हो? उन से कहो : प्रभु-ईश्वर यह कहता है। यह येरुसालेम के राजा और वहाँ रहने वाली समस्त इस्राएली प्रजा के विषय में भविष्यवाणीं है। उन से यह कहो : मैं तुम लोगों के लिए एक चिह्न हूँ। तुमने जैसा किया उन लोगों के साथ वैसा ही किया जायेगा। वे बन्दी बन कर निर्वासित किये जायेंगे। उन लोगों का राजा संध्या के समय अपना सामान कंधे पर रख कर नगर से चला जायेगा। लोग दीवाल में छेद करेंगे, जिससे वह बाहर जा सके। वह अपना मुँह ढक लेगा, क्योंकि वह अपनी आँखों से यह भूमि फिर नहीं देखेगा।"

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 77:56-59,61-62

अनुवाक्य : ईश्वर के महान् कार्य कभी न भुलाओ।

1. वे सर्वोच्च ईश्वर की अवज्ञा करते रहे। वे उसकी आज्ञाओं का उल्लंघन करते थे, वे अपने पूर्वजों की तरह भटक गये और ईश्वर के साथ विश्वासघात करते थे।

2. वे पर्वतों पर देवमूर्तियों की पूजा द्वारा ईश्वर को चिढ़ाते रहते थे। इस कारण प्रभु का कोप भड़क उठा और उसने इस्राएल का परित्याग किया।

3. उसने विधान की महिमामय मंजूषा को शत्रुओं के हवाले कर दिया। उसने अपनी प्रजा पर क्रोध किया और उसे तलवार का शिकार होने दिया।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! हे प्रभु ! अपने सेवक पर दयादृष्टि कर और मुझे अपनी संहिता सिखा। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 18:21-19:1

"मैं तुम से नहीं कहता सात बार तक क्षमा करो, बल्कि सत्तर-गुना सात बार तक।"

तब पेत्रुस ने पास आ कर येसु से कहा, "प्रभु ! यदि मेरा भाई मेरे विरुद्ध अपराध करता जाये, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? सात बार तक?" येसु ने उत्तर दिया, "मैं तुम से नहीं कहता - सात बार तक, बल्कि सत्तर-गुना सात बार तक।" "यही कारण है कि स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जो अपने सेवकों से लेखा लेना चाहता था। जब वह लेखा लेने लगा, तो उसका लाखों रुपये का एक कर्जदार उसके सामने पेश किया गया। अदा करने के लिए उसके पास कुछ भी नहीं था, इसलिए स्वामी ने आदेश दिया कि उसे, उसकी पत्नी, उसके बच्चों और उसकी सारी जायदाद को बेच दिया जाये और ऋण अदा कर लिया जाये। इस पर वह सेवक उसके पैरों पर गिर कर अनुनय-विनय करने लगा, 'मुझे समय दीजिए और मैं आप को सब चुका दूँगा'। उस सेवक के स्वामी को तरस हो आया और उसने उसे जाने दिया और उसका कर्ज माफ़ कर दिया। जब वह सेवक बाहर निकला, तो वह अपने एक सह-सेवक से मिला, जो उसका लगभग एक सौ रुपये का कर्जदार था। उसने उसे पकड़ लिया और उसका गला घोंट कर कहा, 'अपना कर्ज़ चुका दो'। सह-सेवक उसके पैरों पर गिर पड़ा और यह कह कर अनुनय-विनय करने लगा, 'मुझे समय दीजिए और मैं आप को चुका दूँगा'। परन्तु उसने नहीं माना और जा कर उसे तब तक के लिए बंदीगृह में डलवा दिया, जब तक वह अपना कर्ज़ न चुका दे। यह सब देख कर उसके दूसरे सह-सेवक बहुत दुखी हो गये और उन्होंने स्वामी के पास जा कर सारी बातें बता दीं। तब स्वामी ने उस सेवक को बुला कर कहा, 'रे दुष्ट सेवक ! तुम्हारी अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा वह सारा कर्ज माफ़ कर दिया था, तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?' और स्वामी ने क्रुद्ध हो कर उसे तब तक के लिए जल्लादों के हवाले कर दिया, जब तक वह कौड़ी-कौड़ी न चुका दे। यदि तुम में हर एक अपने भाई को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा।" अपना यह उपदेश समाप्त कर येसु गलीलिया से चले गये और यर्दन के पार यहूदिया प्रदेश पहुँचे।

प्रभु का सुसमाचार।