प्रभु यह कहता है, "मैं अपने नाम की पवित्रता प्रमाणित करूँगा, जिस पर देश-विदेश का कलंक लगा है और जिसका अनादर तुम लोगों ने वहाँ जा कर कराया है। जब मैं तुम लोगों के द्वारा राष्ट्रों के सामने अपने पवित्र नाम की महिमा प्रदर्शित करूँगा, तब वे जान जायेंगे कि मैं प्रभु हूँ। मैं तुम लोगों को राष्ट्रों में से निकाल कर और देश-विदेश से इकट्ठा कर तुम्हारे निजी देश वापस ले जाऊँगा। मैं तुम लोगों पर पवित्र जल छिड़क दूँगा और तुम शुद्ध हो जाओगे। मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवित्रता से और तुम्हारी देवमूर्तियों के दूषण से शुद्ध कर दूँगा। मैं तुम लोगों को एक नया हृदय प्रदान करूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निकाल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा। मैं तुम लोगों में अपना आत्मा रख दूँगा, जिससे तुम मेरी संहिता पर चलोगे और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे। तुम लोग उस देश में निवास करोगे, जिसे मैंने तुम्हारे पुरखों को दिया है। तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।"
अनुवाक्य : मैं तुम लोगों पर पवित्र जल छिड़क दूँगा और तुम अपनी सारी अपवित्रता से शुद्ध हो जाओगे।
1. हे ईश्वर ! मेरा हृदय फिर शुद्ध कर और मेरा मन सुदृढ़ बना। अपने सान्निध्य से मुझे दूर न कर और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से न हटा।
2. मुक्ति का आनन्द मुझे फिर प्रदान कर और उदारता में मेरा मन सुदृढ़ बना। मैं विधर्मियों को तेरे मार्ग की शिक्षा दूँगा और पापी तेरे पास लौट आयेंगे।
3. तू बलिदान से प्रसन्न नहीं होता; यदि मैं होम चढ़ाता, तो तू उसे स्वीकार नहीं करता। मेरा पश्चात्ताप ही मेरा बलिदान होगा। तू पश्चात्तापी दीन-हीन हृदय का तिरस्कार नहीं करेगा।
अल्लेलूया ! आज अपना हृदय कठोर न बनाओ, प्रभु की वाणी पर ध्यान दो। अल्लेलूया !
येसु महायाजकों और जनता के नेताओं को फिर दृष्टान्त सुनाने लगे। उन्होंने कहा, "स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जिसने अपने पुत्र के विवाह में भोज दिया। उसने आमंत्रित लोगों को बुला लाने के लिए अपने सेवकों को भेजा, लेकिन वे आना नहीं चाहते थे। राजा ने फिर दूसरे सेवकों को यह कह कर भेजा, 'अतिथियों से कह दो देखिए! मैंने अपने भोज की तैयारी कर ली है। मेरे बैल और मोटे-मोटे जानवर मारे जा चुके हैं। सब कुछ तैयार है; विवाह-भोज में पधारिए।' अतिथियों ने इसकी परवाह नहीं की। कोई अपने खेत की ओर चला गया, तो कोई अपना व्यापार देखने। दूसरे अतिथियों ने राजा के सेवकों को पकड़ कर उनका अपमान किया और उन्हें मार डाला। राजा को बहुत क्रोध हुआ। उसने अपनी सेना भेज कर उन हत्यारों का सर्वनाश किया और उनका नगर जला दिया।" “तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, 'विवाह-भोज की तैयारी तो हो चुकी है, किन्तु अतिथि इसके योग्य नहीं ठहरे। इसलिए चौराहों पर जाओ और जितने भी लोग मिल जायें, सब को विवाह-भोज में बुला लाओ।' सेवक सड़कों पर चले गये और भले-बुरे जो भी मिले, सब को बटोर कर ले आये और विवाह-मण्डप अतिथियों से भर गया।" "राजा अतिथियों को देखने आया, तो वहाँ उसकी दृष्टि एक ऐसे मनुष्य पर पड़ी, जो विवाहोत्सव के वस्त्र नहीं पहने था। उसने उस से कहा, 'भई' विवाहोत्सव के वस्त्र पहने बिना तुम यहाँ कैसे आ गये?' वह मनुष्य तो चुप रहा। तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, 'इसके हाथ-पैर बाँध कर इसे बाहर, अंधकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।' क्योंकि बुलाये हुए तो बहुत हैं, पर चुने हुए थोड़े हैं।"
प्रभु का सुसमाचार।