वर्ष का इक्कीसवाँ सप्ताह, शनिवार - वर्ष 1

📕पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:26-31

"प्रभु ने उन लोगों को चुना, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं।"

भाइयो ! इस बात पर विचार कीजिए कि बुलाये जाते समय आप लोगों में से दुनिया की दृष्टि में बहुत कम लोग ज्ञानी, शक्तिशाली अथवा कुलीन थे। ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना, जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं। गण्य-मान्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं, जिससे कोई भी मनुष्य ईश्वर के सामने गर्व न करे। उसी ईश्वर के वरदान से आप लोग येसु मसीह के अंग बन गये हैं। ईश्वर ने मसीह को हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता तथा उद्धार बना दिया है। इसलिए, वह प्रभु पर गर्व करे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 32:12-13,18-21

अनुवाक्य : धन्य हैं वे लोग, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है।

1. धन्य हैं वे लोग, जिनका ईश्वर प्रभु है, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है। प्रभु आकाश के ऊपर से दृष्टि डालता और सभी मनुष्यों को देखता रहता है।

2. प्रभु की कृपादृष्टि अपने भक्तों पर बनी रहती है, उन पर जो उसके प्रेम से यह आशा करते हैं कि वह उन्हें मृत्यु से बचायेगा और अकाल के समय उनका पोषण करेगा।

3. हम प्रभु की राह देखते रहते हैं, वही हमारा उद्धारक और रक्षक हैं। हम उसकी सेवा करते हुए आनन्दित हैं और उसके पवित्र नाम पर भरोसा रखते हैं।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ तुम एक दूसरे को प्यार करो।" अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 25:14-30

"तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा।"

येसु ने अपने शिष्यों को यह दृष्टान्त सुनाया, "स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी। उसने प्रत्येक की योग्यता का ध्यान रख कर एक सेवक को पाँच हज़ार, दूसरे को दो हज़ार और तीसरे को एक हज़ार अशर्फियाँ दीं। इसके बाद वह विदेश चला गया। जिसे पाँच हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, वह तुरन्त उनके साथ लेन-देन करने लगा और उसने और पाँच हज़ार अशर्फ़ियाँ कमा लीं। इसी तरह जिसे दो हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने और दो हज़ार कमा लीं। लेकिन जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, वह गया और भूमि खोद कर उसने अपने स्वामी का धन छिपा दिया।" "बहुत समय बाद उन सेवकों का स्वामी लौटा और उन से लेखा लेने लगा। जिसे पाँच हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने और पाँच हज़ार ला कर कहा, 'स्वामी ! आपने मुझे पाँच हज़ार अशर्फियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और पाँच हज़ार कमायीं।' उसके स्वामी ने उस से कहा, 'शाबाश, भले और ईमानदार सेवक ! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।' इसके बाद वह आया, जिसे दो हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं। उसने कहा, 'स्वामी ! आपने मुझे दो हज़ार अशर्फियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और दो हज़ार कमायीं।' उसके स्वामी ने उससे कहा, 'शाबाश, भले और ईमानदार सेवक ! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।' अंत में वह आया, जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं। उसने कहा, 'स्वामी ! मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनते हैं और आपने जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं। इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह आपका है, इसे लौटाता हूँ।' स्वामी ने उसे उत्तर दिया,' दुष्ट और आलसी सेवक ! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनता हूँ और मैंने जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ; तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता। इसलिए ये हज़ार अशर्फ़ियाँ इससे ले लो और जिसके पास दस हज़ार हैं, उसी को दे दो; क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उससे वह ले लिया जायेगा, जो उसके पास है। और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अंधकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।"

प्रभु का सुसमाचार।