वर्ष का बाईसवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 2

📕पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 2:1-5

"मैंने आप लोगों को क्रूस पर आरोपित मसीह का संदेश दिया।"

भाइयो ! जब मैं ईश्वर का संदेश सुनाने आप लोगों के यहाँ आया, तो मैंने शब्दाडम्बर अथवा पांडित्य का प्रदर्शन नहीं किया। मैंने निश्चय किया था कि मैं आप लोगों से येसु मसीह और क्रूस पर उनके मरण के अतिरिक्त किसी और विषय पर बात नहीं करूँगा। वास्तव में मैं आप लोगों के बीच रहते समय दुर्बल, संकोची और भीरु था। मेरे प्रवचन तथा मेरे संदेश में विद्वत्तापूर्ण शब्दों का आकर्षण नहीं, बल्कि आत्मा की शक्ति थी, जिससे आप लोगों का विश्वास मानवीय प्रज्ञा पर नहीं, बल्कि ईश्वर की शक्ति पर आधारित हो।

📖भजन : स्तोत्र 118:97-102

अनुवाक्य : हे प्रभु ! तेरी संहिता मुझे कितनी प्रिय है !

1. हे प्रभु ! तेरी संहिता मुझे कितनी प्रिय है ! मैं दिनभर इसका मनन करता हूँ।

2. तेरे आदेश सदा मेरे सामनें रहते हैं, इसलिए मैं अपने शत्रुओं से अधिक समझदार हूँ।

3. मैं तेरी शिक्षा का ध्यान किया करता हूँ, इसलिए मैं अपने शिक्षकों से अधिक बुद्धिमान् हूँ।

4. मैं तेरी आज्ञाओं का पालन करता हूँ, इसलिए मैं वयोवृद्धों से अधिक विवेकशील हूँ।

5. मैं कुमार्ग से दूर रहता हूँ, क्योंकि मैं तेरी शिक्षा पर चलता हूँ। 6 मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग से नहीं भटक गया, क्योंकि तूने स्वयं मुझे शिक्षा दी है।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है। उसने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने भेजा है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:16-30

"उसने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने भेजा है। अपनी मातृभूमि में नबी का स्वागत नहीं होता।"

येसु नाजरेत आये, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ था। विश्राम के दिन वह अपनी आदत के अनुसार सभागृह गये। वह पढ़ने के लिए उठ खड़े हुए और उन्हें नबी इसायस की पुस्तक दी गयी। पुस्तक खोल कर येसु ने वह स्थान निकाला, जहाँ लिखा है; प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बंदियों को मुक्ति का और अधों को दृष्टि-दान का संदेश दूँ, दलितों को स्वतंत्रता प्रदान करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ। येसु ने पुस्तक बंद कर दी और उसे सेवक को दे कर वह बैठ गये। सभागृह के सब लोगों की आँखें उन पर लगी हुई थीं। तब वह उन से कहने लगे, "धर्मग्रन्थ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है।" सबों ने उनकी प्रशंसा की। वे उनके मनोहर शब्द सुन कर अचंभे में पड़ गये और कहने लगे, "क्या यह योसेफ का बेटा नहीं है?" येसु ने उन से कहा, "तुम लोग निश्चय ही मुझे यह कहावत सुना दोगे- ऐ वैद्य ! अपना ही इलाज करो। कफ़रनाहूम में जो कुछ हुआ है, हमने उसके बारे में सुना है वह सब अपनी मातृभूमि में भी कर दिखाइए।" फिर येसु ने कहा, “मैं तुम से कहे देता हूँ - अपनी मातृभूमि में नबी का स्वागत नहीं होता। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि जब एलियस के दिनों में साढ़े तीन वर्षों तक पानी नहीं बरसा और सारे देश में घोर अकाल पड़ा था, तो उस समय इस्राएल में बहुत-सी विधवाएँ थीं। फिर भी एलियस उन में से किसी के पास नहीं भेजा गया वह सिदोन के सरेप्ता की एक विधवा के पास ही भेजा गया था। और नबी एलिसेयस के दिनों में इस्राएल में बहुत-से कोढ़ी थे। फिर भी उन में से कोई नहीं, बल्कि सीरी नामन ही नीरोग किया गया था।" यह सुन कर सभागृह के सब लोग बहुत क्रुद्ध हो गये। वे उठ खड़े हुए और उन्होंने येसु को नगर से बाहर निकाल दिया। जिस पहाड़ी पर उनका नगर बसा था, वे येसु को उसकी चोटी तक ले गये, ताकि उन्हें नीचे गिरा दें; परन्तु वह उनके बीच से निकल कर चले गये।

प्रभु का सुसमाचार।