वर्ष का बाईसवाँ सप्ताह, मंगलवार - वर्ष 2

📕पहला पाठ

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 2:10-16

"प्राकृत मनुष्य ईश्वर के आत्मा की शिक्षा स्वीकार नहीं करता। आध्यात्मिक मनुष्य सब बातों की परख करता है।"

आत्मा सब कुछ की, ईश्वर के रहस्य की भी थाह लेता है। मनुष्य के निजी आत्मा को छोड़, कौन किसी का अन्तरतम जानता है? इसी तरह ईश्वर के आत्मा को छोड़, कोई भी ईश्वर का अन्तरतम नहीं जानता। हमें संसार का नहीं बल्कि ईश्वर का आत्मा मिला है, जिससे हम ईश्वर के वरदान पहचान सकें। हम इन वरदानों की व्याख्या करते समय मानवीय प्रज्ञा के शब्दों का नहीं, बल्कि आत्मा द्वारा प्रदत्त शब्दों का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार हम आध्यात्मिक शब्दावली में आध्यात्मिक तथ्यों की विवेचना करते हैं। प्राकृत मनुष्य ईश्वर के आत्मा की शिक्षा स्वीकार नहीं करता। वह उसे मूर्खता मानता और उसे समझने में असमर्थ है, क्योंकि आत्मा की सहायता से ही उस शिक्षा की परख हो सकती है। आध्यात्मिक मनुष्य सब बातों की परख करता है, किन्तु कोई भी उस मनुष्य की परख नहीं कर पाता। क्योंकि (लिखा है) प्रभु का मन कौन जानता है? कौन उसे शिक्षा दे सकता है? हम में तो मसीह का मनोभाव विद्यमान है।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 144:8-14

अनुवाक्य : प्रभु जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है।

1. प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील और अत्यन्त प्रेममय है प्रभु सबों का कल्याण करता है, वह अपनी सारी सृष्टि पर दया करता है।

2. हे प्रभु ! तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करे, तेरे भक्त तुझे धन्य कहें। वे तेरे राज्य की महिमा गायें और तेरे सामर्थ्य का बखान करें।

3. जिससे सभी मनुष्य तेरे महान् कार्य और तेरे राज्य की अपार महिमा जान जायें। तेरे राज्य का कभी अन्त नहीं होगा। तेरा शासन पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहेगा।

4. प्रभु अपनी सब प्रतिज्ञाएँ पूरी करता है। उसके समस्त कार्य उसके प्रेम से पूर्ण हैं। प्रभु निर्बल को संभालता और फुके हुए को सीधा करता है।

📒जयघोष

अल्लेलूया ! हमारे बीच महान् नबी उत्पन्न हुए हैं और ईश्वर ने अपनी प्रजा की सुध ली है। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:31-37

"मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।"

येसु गलीलिया के कफ़रनाहूम नगर आये और विश्राम के दिन लोगों को शिक्षा दिया करते थे। लोग उनकी शिक्षा सुन कर अचंभे में पड़ जाते थे, क्योंकि वह अधिकार के साथ बोलते थे। सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्ला उठा, "येसु नाजरी ! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।" येसु ने यह कह कर उसे डाँटा, "चुप रह, इस मनुष्य में से बाहर निकल जा।" अपदूत ने सब के देखते-देखते उस मनुष्य को भूमि पर पटक दिया और उसकी कोई हानि किये बिना वह उस में से निकल गया। सब विस्मित हो गये और आपस में कहने लगे, “यह क्या बात है ! वह अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आदेश देते हैं और वे निकल जाते हैं।" इसके बाद येसु की चरचा उस प्रदेश के कोने-कोने में फैल गयी।

प्रभु का सुसमाचार।