भाइयो ! मैं उस समय आप लोगों से उस तरह बातें नहीं कर सका, जिस तरह आध्यात्मिक व्यक्तियों से की जाती हैं। मुझे आप लोगों से उस तरह बातें करनी पड़ीं, जिस तरह प्राकृत मनुष्यों से, मसीह में निरे बच्चों से की जाती हैं। मैंने आप को दूध पिलाया। मैंने इसलिए आप को ठोस भोजन नहीं दिया कि आप इसे नहीं पचा सकते थे। आप इस समय भी इसे। पचा नहीं सकते, क्योंकि आप अब तक प्राकृत हैं। आप लोगों में ईर्ष्या और झगड़ा होता है : क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि आप प्राकृत हैं और निरे मनुष्यों जैसा आचरण करते हैं? जब कोई कहता है, "मैं पौलुस का हूँ" और कोई कहता है, "मैं अपोल्लो का हूँ", तो क्या यह निरे मनुष्यों जैसा आचरण नहीं है? अपोल्लो क्या है? पौलुस क्या है? हम तो धर्मसेवक मात्र हैं; जिनके माध्यम से आप विश्वासी बने। हम में प्रत्येक ने वही काम किया, जिसे प्रभु ने उस को सौंपा है। मैंने पौधा रोपा, अपोल्लो ने उसे सींचा, किन्तु ईश्वर ने उसे बड़ा किया। न तो रोपने वाले का कोई महत्त्व है और न सींचने वाले का, बल्कि वृद्धि करने वाले अर्थात् ईश्वर का महत्त्व है। रोपने वाला और सींचने वाला एक ही काम करते हैं और प्रत्येक अपने-अपने परिश्रम के अनुरूप अपनी मजदूरी पायेगा। हम ईश्वर के सहयोगी हैं और आप लोग हैं ईश्वर की खेती, ईश्वर के मंदिर।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : धन्य हैं वे लोग, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है।
1. धन्य हैं वे लोग, जिनका ईश्वर प्रभु है, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है। प्रभु आकाश के ऊपर से दृष्टि डालता और सभी मनुष्यों को देखता रहता है।
2. प्रभु स्वर्ग से देखता रहता और पृथ्वी के निवासियों पर दृष्टि रखता है। उसने सबों का हृदय बनाया और उनके सब कामों का लेखा रखता है।
3. हम प्रभु की राह देखते रहते हैं, वही हमारा उद्धारक और रक्षक है। हम उसकी सेवा करते हुए आनन्दित हैं और उसके पवित्र नाम पर भरोसा रखते हैं।
अल्लेलूया ! प्रभु ने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने और बंदियों को मुक्ति का संदेश देने भेजा है। अल्लेलूया !
येसु सभागृह से निकल कर सिमोन के घर गये। सिमोन की सास तेज़ बुखार में पड़ी हुई थी और लोगों ने उसके लिए उन से प्रार्थना की। येसु ने उसके पास जा कर बुखार को डाँटा और बुखार जाता रहा। वह उसी क्षण उठ कर उन लोगों का सेवा-सत्कार करने लगी। सूरज डूबने के बाद सब लोग नाना प्रकार की बीमारियों से पीड़ित अपने यहाँ के रोगियों को येसु के पास ले आये। येसु एक-एक पर हाथ रख कर उन्हें चंगा करते थे। बहुतों में से अपदूत यह चिल्लाते हुए निकलते थे, "आप ईश्वर के पुत्र हैं।" परन्तु वह उन को डाँटते और बोलने से रोकते थे, क्योंकि अपदूत जानते थे कि वह मसीह हैं। येसु प्रातःकाल घर से निकल कर किसी एकांत स्थान में चले गये। लोग उन को खोजते-खोजते उनके पास आये और अनुरोध करने लगे कि वह उन को छोड़ कर नहीं जायें। किन्तु उन्होंने उत्तर दिया, "मुझे दूसरे नगरों को भी ईश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना है - मैं इसीलिए भेजा गया हूँ।" और वह यहूदिया के सभागृहों में उपदेश देते थे।
प्रभु का सुसमाचार।