मैं इस पर गौरव नहीं करता कि मैं सुसमाचार का प्रचार करता हूँ। मुझे तो ऐसा करने का आदेश दिया गया है। धिक्कार मुझे ! यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ। यदि मैं अपनी इच्छा से यह करता, तो मुझे पुरस्कार का अधिकार होता । किन्तु मैं अपनी इच्छा से यह नहीं करता ! जो कार्य मुझे सौंपा गया है, मैं उसे पूरा करता हूँ। तो, पुरस्कार पर मेरा क्या दावा है ? वह यह है कि मैं बिना कुछ लिये सुसमाचार का प्रचार करता हूँ और सुसमाचार-सम्बन्धी अपने अधिकारों का पूरा उपयोग, नहीं करता । सब लोगों से स्वतंत्र होने पर भी मैंने अपने को सबों का दास बना लिया है, जिससे मैं अधिक से अधिक लोगों का उद्धार कर सकूँ। मैं दुर्बलों के लिए दुर्बल-सा बना, जिससे मैं उनका उद्धार कर सकूँ। मैं सबों के लिए सब कुछ बन गया हूँ, जिससे किसी न किसी तरह से कुछ लोगों का उद्धार कर सकूँ। मैं यह सब सुसमाचार के कारण कर रहा हूँ, जिससे मैं भी उसके कृपादानों का भागी बन जाऊँ। क्या आप लोग यह नहीं जानते कि अखाड़े में तो सभी प्रतियोगी दौड़ते हैं, किन्तु एक को ही पुरस्कार मिलता है ? आप इस प्रकार दौड़ें कि पुरस्कार प्राप्त करें । सब प्रतियोगी हर बात में संयम रखते हैं। वे नश्वर मुकुट प्राप्त करने के लिए ऐसा करते हैं, जब कि हम अनश्वर मुकुट के लिए। इसलिए मैं एक निश्चित लक्ष्य सामने रख कर दौड़ता हूँ, मैं ऐसा मुक्केबाज हूँ जो हवा में मुक्का नहीं मारता । मैं अपने शरीर को कष्ट देता हूँ और उसे वश में रखता हूँ। कहीं ऐसा न हो कि दूसरों को प्रवचन देने के बाद मैं स्वयं ठुकराया जाऊँ ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे विश्वमंडल के प्रभु ! तेरा मंदिर कितना रमणीय है !
1. प्रभु का प्रांगण देखने के लिए मेरी आत्मा तरसती रहती है। मैं उल्लसित हो कर तन-मन से जीवन्त ईश्वर का स्तुतिगान करता हूँ
2. गौरेया को बसेरा मिल जाता है और अबाबील को अपने बच्चों के लिए घोंसला । हे विश्वमंडल के प्रभु ! मेरे राजा ! मेरे ईश्वर ! मुझे तेरी वेदियाँ प्रिय हैं
3. तेरे मंदिर में रहने वाले धन्य हैं ! वे निरन्तर तेरा स्तुतिगान करते हैं। धन्य हैं वे, जो तुझ से बल पा कर तेरे पवित्र पर्वत सियोन की तीर्थयात्रा करते हैं
4. क्योंकि ईश्वर हमारी रक्षा करता और हमें कृपा तथा गौरव प्रदान करता है। वह सन्मार्ग पर चलने वालों पर अपने वरदान बरसाता है ।
अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा ही सत्य है। सत्य की सेवा में हमें समर्पित कर । अल्लेलूया !
येसु ने अपने शिष्यों को यह दृष्टान्त सुनाया, "क्या अंधा अंधे को राह दिखा सकता है ? क्या दोनों ही गड्ढे में नहीं गिर पड़ेंगे ? शिष्य गुरु से बड़ा नहीं होता। पूरी-पूरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह अपने गुरु जैसा बन सकता है।" "जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं है, तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो ? जब तुम अपनी ही आँख की धरन नहीं देखते, तो अपने भाई से कैसे कह सकते हो, 'भाई ! मैं तुम्हारी आँख का तिनका निकाल दूँ' ! रे ढोंगी ! पहले अपनी ही आँख की धरन निकाल लो। तभी तुम अपने भाई की आँख का तिनका निकालने के लिए अच्छी तरह देख सकोगे ।"
प्रभु का सुसमाचार।