प्रिय भाइयो ! आप मूर्तिपूजा से दूर रहें। मैं आप लोगों को समझदार समझ कर यह कह रहा हूँ, आप स्वयं मेरी बातों पर विचार करें। क्या आशिष का वह प्याला, जिस पर हम आशिष की प्रार्थना पढ़ते हैं, हमें मसीह के रक्त के सहभागी नहीं बनाता? क्या वह रोटी, जिसे हम तोड़ते हैं, हमें मसीह के शरीर के सहभागी नहीं बनाती? रोटी तो एक ही है, इसलिए अनेक होने पर भी हम एक हैं; क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं। इस्राएलियों को देखिए ! क्या बलि खाने वाले वेदी के सहभागी नहीं हैं? मैं यह नहीं कहता कि देवता को चढ़ाये हुए मांस की कोई विशेषता है अथवा यह कि देवमूर्ति का कुछ महत्त्व है। किन्तु धर्मग्रन्थ के अनुसार गैरयहूदियों के बलिदान ईश्वर को नहीं, बल्कि अपदूतों को चढ़ाये जाते हैं। मैं यह नहीं चाहता कि आप लोग अपदूतों के सहभागी बनें। आप प्रभु का प्याला और अपदूतों का प्याला, दोनों नहीं पी सकते । आप प्रभु की मेज और अपदूतों की मेज, दोनों के सहभागी नहीं बन सकते । क्या हम प्रभु को चुनौती देना चाहते हैं? क्या हम उस से बलवान् हैं?
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! मैं तुझे धन्यवाद का बलिदान चढ़ाऊँगा । (अथवा : अल्लेलूया !)
1. प्रभु के सब उपकारों के लिए मैं उसे क्या दे सकता हूँ? मैं मुक्ति का प्याला उठा कर प्रभु का नाम लूँगा।
2. मैं प्रभु का नाम लेते हुए धन्यवाद का बलिदान चढाऊँगा, प्रभु की सारी प्रजा के सामने प्रभु के लिए अपनी मन्नतें पूरी करूँगा ।
अल्लेलूया ! यदि कोई मुझे प्यार करेगा, तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आ कर उस में निवास करेंगे। अल्लेलूया !
प्रभु का सुसमाचार।