भाइयो ! मैं आप लोगों को उस सुसमाचार का स्मरण दिलाना चाहता हूँ, जिसका प्रचार मैंने आपके बीच किया, जिसे आपने ग्रहण किया, जिस में आप दृढ़ बने रहते हैं और यदि आप उसे उसी रूप में बनाये रखेंगे, जिस रूप में मैंने उसे आप को सुनाया, तो उसके द्वारा आप को मुक्ति मिलेगी, नहीं तो आपका विश्वास व्यर्थ होगा। जो शिक्षा मुझे मिली थी, वही मैंने सब से पहले आप लोगों को सुनायी। वह इस प्रकार है मसीह, हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिए मर गये, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है। वह कब्र में रखे गये और तीसरे दिन जी उठे हैं, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है। वह कैफ़स को और बाद में बारहों को दिखाई दिये। फिर वह एक ही समय पाँच सौ से अधिक भाइयों को दिखाई दिये। उन में से अधिकांश आज भी जीवित हैं, यद्यपि कुछ मर गये हैं। बाद में वह याकूब को और फिर सब प्रेरितों को दिखाई दिये। सबों के बाद वह मुझे भी, मानो ठीक समय में पीछे जन्मे को दिखाई दिये । मैं प्रेरितों में सब से छोटा हूँ। सच पूछिए, तो मैं प्रेरित कहलाने योग्य भी नहीं; क्योंकि मैंने ईश्वर की कलीसिया पर अत्याचार किया था। मैं जो कुछ भी हूँ, ईश्वर की कृपा से हूँ और जो कृपा मुझे उस से मिली, वह व्यर्थ नहीं हुई। मैंने उन सब से अधिक परिश्रम किया है मैंने नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा ने, जो मुझ में विद्यमान है। खैर चाहे मैं होऊँ, चाहे वे हम वही शिक्षा देते हैं और उसी पर आप लोगों ने विश्वास किया ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है। (अथवा : अल्लेलूया !)
1. प्रभु का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है। उसका प्रेम अनन्तकाल तक बना रहता है। इस्राएल का घराना यह कहता जाये, "उसका प्रेम अनन्तकाल तक बना रहता है।"
2. प्रभु के दाहिने हाथ ने अपना बल दिखाया है, उसके दाहिने हाथ ने मेरा उद्धार किया है। मैं नहीं मरूँगा, मैं जीवित रहूँगा और प्रभु के कार्यों का बखान करूँगा
3. हे मेरे ईश्वर ! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ। हे मेरे ईश्वर ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो ! तुम सब के सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।" अल्लेलूया !
किसी फरीसी ने येसु को अपने यहाँ भोजन करने का निमंत्रण दिया। वह उस फरीसी के घर आ कर भोजन करने बैठे । नगर की एक पापिनी स्त्री यह जान गयी कि येसु फरीसी के यहाँ भोजन कर रहे हैं। वह संगमरमर के पात्र में इत्र ले कर आयी और रोती हुई येसु के चरणों के पास खड़ी हो गयी। उसके आँसू उनके चरण भिगोने लगे, इसलिए उसने उन्हें केशों से पोंछ लिया और उनके चरणों को चूम-चूम कर उन पर इत्र लगाया। वह फरीसी, जिसने येसु को निमंत्रण दिया था, यह देख कर मन-ही-मन कहने लगा, "यदि यह आदमी नबी होता, तो जरूर जान जाता कि जो स्त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है वह तो पापिनी है।" परन्तु येसु ने उस से कहा, "सिमोन, मुझे तुम से कुछ कहना है।" उसने उत्तर दिया, "गुरुवर ! कहिए।" "किसी महाजन के दो कर्जदार थे। एक पाँच सौ दीनार का ऋणी था और दूसरा, पचास का। उनके पास कर्ज अदा करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए महाजन ने दोनों को माफ कर दिया। उन दोनों में से कौन उसे अधिक प्यार करेगा?" सिमोन ने उत्तर दिया, "मेरी समझ में तो वही, जिसका अधिक ऋण माफ हुआ।" येसु ने उससे कहा, "तुम्हारा निर्णय सही है।" तब उन्होंने उस स्त्री की ओर मुड़ कर सिमोन से कहा, "इस स्त्री को देखते हो? मैं तुम्हारे घर आया, तुमने मुझे पैरों के लिए पानी नहीं दिया; पर इसने मेरे पैर अपने आँसुओं से धोये और अपने केशों से पोछे । तुमने मेरा चुम्बन नहीं किया, परन्तु यह, जब से भीतर आयी है, मेरे पैर चुमती रही है। तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है। इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, इसके बहुत-से पाप क्षमा हो गये हैं, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है। पर जिसे कम क्षमा किया गया, वह कम प्यार दिखाता है।" तब येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं।" साथ भोजन करने वाले मन-ही-मन कहने लगे, "यह कौन है, जो पापों को भी क्षमा करता है?" पर येसु ने उस स्त्री से कहा, "तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है। शांति ग्रहण कर जाओ ।"
प्रभु का सुसमाचार।