योब ने प्रभु को यह उत्तर दिया, "मैं जानता हूँ कि तू सर्वशक्तिमान् है और अपनी सब योजनाएँ पूरी कर सकता है। मैंने ऐसी बातों की चरचा चलायी, जिन्हें मैं नहीं समझता; मैं ऐसे चमत्कारों के विषय में बोला, जो मेरी बुद्धि से परे हैं। मैंने दूसरों से तेरी चर्चा सुनी थी; अब मैंने तुझे अपनी आँखों से देखा है। इसलिए मैं धूल और राख में बैठ कर रोते हुए पश्चात्ताप कर रहा हूँ।" प्रभु ने योब के पहले दिनों की अपेक्षा, उसके पिछले दिनों को अधिक आशीर्वाद दिया। उसके पास चौदह हजार भेड़ें; छह हजार ऊँट, बैलों की एक हजार जोड़ियाँ और एक हजार गधियाँ थीं। उसके चौदह पुत्र उत्पन्न हुए और तीन पुत्रियाँ । उसने पहली का नाम 'यमीमा' रखा, दूसरी का 'कसीआ' और तीसरी का 'केरेनहप्पूक' । देश भर में ऐसी स्त्रियाँ नहीं मिलीं, जो योब की पुत्रियों के समान सुन्दर हों। योब ने उन्हें उनके भाइयों के साथ विरासत का भाग दिया। इसके बाद योब एक सौ चालीस बरस जीवित रहा, अपने पुत्र-पौत्रों की चार पीढ़ियाँ देख सका और बहुत बड़ी उमर में चल बसा ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! अपने सेवक पर दयादृष्टि कर ।
1. मुझे सद्बुद्धि और ज्ञान प्रदान कर, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं पर भरोसा रखता हूँ
2. यह अच्छा हुआ कि मैंने कष्ट पाया मैंने तेरी आज्ञाओं का पालन करना सीखा
3. हे प्रभु ! मैं जानता हूँ कि तेरा विधान न्यायपूर्ण है, यह उचित ही है कि मैं कष्ट पाऊँ
4. सब कुछ तेरी इच्छा के अनुसार बना रहता है, क्योंकि सब चीजें तेरी आज्ञा मानती हैं।
5. मैं तेरा सेवक हूँ। मुझे शिक्षा प्रदान कर, तब मैं तेरी इच्छा जान जाऊँगा ।
6. तेरी वाणी की व्याख्या ज्योति प्रदान करती है। वह अशिक्षितों की भी समझ में आती है।
अल्लेलूया ! हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। अल्लेलूया !
बहत्तर शिष्य सानन्द लौटे और बोले, "हे प्रभु! आपके नाम के कारण अपदूत भी हमारे अधीन हैं।" येसु ने उन्हें उत्तर दिया, "मैंने शैतान को बिजली की तरह स्वर्ग से गिरते देखा। मैंने तुम्हें साँपों, बिच्छुओं और बैरी की सारी शक्ति को कुचलने का सामर्थ्य दिया है कुछ भी तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकेगा। लेकिन, इसलिए आनन्दित न हो कि अपदूत तुम्हारे अधीन हैं, बल्कि इसलिए आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं।" उसी घड़ी येसु ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर आनन्द के आवेश में कहा, "हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। हाँ, पिता, यही तुझे अच्छा लगा। मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर यह कोई भी नहीं जानता कि पुत्र कौन है और पुत्र को छोड़ कर यह कोई भी नहीं जानता कि पिता कौन है। केवल वही जानता है जिसके लिए पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करे।" तब उन्होंने अपने शिष्यों की ओर मुड़ कर एकांत में उन से कहा, "धन्य हैं वे आँखें, जो यह सब देखती हैं जिसे तुम देखते हो ! क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और राजा देखना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उनको देखा नहीं और जो बातें तुम सुन रहे हो, वे उन को सुनना चाहते थे, परन्तु उन को सुना नहीं।"
प्रभु का सुसमाचार।