मुझे आश्चर्य होता है कि जिसने आप लोगों को मसीह के अनुग्रह द्वारा बुलाया है, उसे आप इतने शीघ्र त्याग कर एक दूसरे सुसमाचार के अनुयायी बन गये हैं। दूसरा तो है ही नहीं, किन्तु कुछ लोग आप में अशांति उत्पन्न करते और मसीह का सुसमाचार विकृत कर देना चाहते हैं। लेकिन जो सुसमाचार मैंने आप को सुनाया, यदि कोई चाहे वह मैं स्वयं या कोई स्वर्गदूत ही क्यों न हो उस से भिन्न सुसमाचार सुनाये, तो वह अभिशप्त हो। मैं जो कह चुका हूँ, उसे दुहराता हूँ जो सुसमाचार आप को मिला है, यदि कोई उस से भिन्न सुसमाचार सुनाये, तो वह अभिशप्त हो। मैं अब किसका कृपापात्र बनने की कोशिश कर रहा हूँ। मनुष्यों का अथवा ईश्वर का? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूँ? यदि मैं अब तक मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता, तो मैं मसीह का सेवक नहीं होता। भाइयो! मैं आप लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने जो सुसमाचार सुनाया, वह मनुष्य-रचित नहीं है। मैंने न तो उसे किसी मनुष्य से ग्रहण किया और न सीखा, बल्कि येसु मसीह ने उसे मुझ पर प्रकट किया है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु अपने विधान सदा स्मरण करता है।
1. धर्मियों की गोष्ठी और उनकी सभा में मैं सारे हृदय से प्रभु की स्तुति करूँगा । प्रभु के कार्य महान् हैं, भक्त जन उनका मनन करें
2. उसके कार्य सच्चे और न्यायपूर्ण हैं। उसके सभी नियम अपरिवर्तनीय हैं। वे युग युगों तक बनें रहेंगे, उनके मूल में न्याय और सत्य है
3. उसने अपनी प्रजा का उद्धार किया और सदा के लिए अपना विधान निर्धारित किया है। उसका नाम पवित्र और पूज्य है। प्रभु की स्तुति युगानुयुग होती रहेगी ।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मैं तुम लोगों को एक नयी आज्ञा देता हूँ मैंने जैसे तुम लोगों को प्यार किया है, वैसे तुम भी एक दूसरे को प्यार करो।" अल्लेलूया !
किसी दिन एक शास्त्री आ कर इस प्रकार येसु की परीक्षा करने लगा, "गुरुवर ! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?" येसु ने उस से कहा, "संहिता में क्या लिखा है? तुम उस में क्या पढ़ते हो?" उसने उत्तर दिया, "अपने प्रभु ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।" येसु ने उस से कहा, "तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे ।" इस पर उसने अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए येसु से कहा, "लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?" येसु ने उसे उत्तर दिया, "एक मनुष्य येरुसालेम से येरिको जा रहा था और वह डाकुओं के हाथों पड़ गया। उन्होंने उसे लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ कर चले गये । संयोग से एक याजक उसी राह से जा रहा था और उसे देख कर कतरा कर चला गया । इसी प्रकार एक लेबी वहाँ आया और उसे देख कर वह भी कतरा कर चला गया। इसके बाद एक समारी यात्री वहाँ आ गया और उसे देख कर उस को तरस हो आया। वह उसके पास गया और उसने उसके घावों पर तेल और अंगूरी डाल कर पट्टी बाँध दी। तब वह उसे अपनी ही सवारी पर बैठा कर एक सराय ले गया और उसने उसकी सेवा-शुश्रूषा की। दूसरे दिन उसने दो दीनार निकाल कर मालिक को दिये और उससे कहा- आप इसकी सेवा-शुश्रूषा करें। यदि कुछ और खर्च हो जाये, तो मैं लौटते समय आप को चुका दूँगा।' तुम्हारी राय में उन तीनों में से कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?" उसने उत्तर दिया, "वही, जिसने उस पर दया की।" येसु बोले, "जाओ, तुम भी ऐसा ही करो ।"
प्रभु का सुसमाचार।