आप लोगों ने सुना होगा कि जब मैं यहूदी धर्म का अनुयायी था, तो मेरा आचरण कैसा था – मैं ईश्वर की कलीसिया पर घोर अत्याचार और उसके सर्वनाश का प्रयत्न करता था। मैं अपने पूर्वजों की परम्पराओं का कट्टर समर्थक था और अपने समय के बहुत-से यहूदियों की अपेक्षा हमारे राष्ट्रीय धर्म के पालन में अधिक उत्साह दिखलाता था। किन्तु ईश्वर ने मुझे माता के गर्भ से ही अलग कर लिया और अपने अनुग्रह से बुलाया था, इसलिए उसने मुझ पर और मेरे द्वारा अपना पुत्र प्रकट करने का निश्चय किया, जिससे मैं गैरयहूदियों में उसके पुत्र के सुसमाचार का प्रचार करूँ। इसके बाद मैंने किसी से परामर्श नहीं किया और जो मुझ से पहले प्रेरित थे, उन से मिलने के लिए मैं येरुसालेम नहीं गया; बल्कि मैं तुरन्त अरब देश गया और बाद में दमिश्क लौटा । मैं तीन वर्ष बाद केफस से मिलने येरुसालेम गया और उनके साथ पंद्रह दिन रहा। प्रभु के भाई याकूब को छोड़ कर मेरी भेंट अन्य प्रेरितों में से किसी से नहीं हुई। ईश्वर मेरा साक्षी है कि मैंने तुम्हें जो लिखा है, वह एकदम सच है। इसके बाद मैं सीरिया और सिलिसिया के प्रदेशों में चला गया। उस समय यहूदिया की मसीही कलीसियाएँ मुझे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती थीं। उन्होंने इतना ही सुना था कि जो व्यक्ति हम पर अत्याचार करता था, वह अब उस विश्वास का प्रचार कर रहा है, जिसका सर्वनाश करने का प्रयत्न करता था। और वे मेरे कारण ईश्वर की स्तुति करती थीं ।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! तू मुझे अनन्त जीवन के मार्ग पर ले चलने की कृपा कर ।
1. हे प्रभु ! तू मेरी थाह लेता है और मुझे जानता है। मैं चाहे लेदूँ या बैठ जाऊँ तू जानता है। मैं चाहे लेदूँ भाँप लेता है। मैं चाहे चलूँ या लेट जाऊँ तू देखता है। मैं जो भी हूँ – तू सब जानता है
2. तूने मेरे शरीर की सृष्टि की है, तूने मेरी माता के गर्भ में मुझे गढ़ा है। मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ मेरा निर्माण अपूर्व है। तेरे समस्त कार्य अपूर्व हैं
3. तू मुझे भली भाँति जानता है। तूने मेरी हड्डियों को बढ़ते देखा है, जब मैं अदृश्य में बन रहा था, जब मैं गर्भ के अन्धकार में गढ़ा जा रहा था।
अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं। अल्लेलूया !
येसु एक गाँव आये और मरथा नामक महिला ने अपने यहाँ उसका स्वागत किया। उसके मरियम नामक एक बहन थी, जो प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही। परन्तु मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी। उसने पास आ कर कहा, "प्रभु ! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।" प्रभु ने उसे उत्तर दिया, "मरथा ! मरथा ! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो; फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है, वह उस से नहीं लिया जायेगा ।"
प्रभु का सुसमाचार।