यदि आप आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलते हैं, तो संहिता के अधीन नहीं हैं। शरीर के कुकर्म प्रत्यक्ष हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, लम्पटता, मूर्तिपूजा, जादू-टोना, बैर, फूट, ईर्ष्या, क्रोध, महत्त्वाकांक्षा, मनमुटाव, दलबन्दी, द्वेष, मतवालापन, रंग-रलियाँ और इस प्रकार की और बातें। मैं आप लोगों से कहता हूँ, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है जो इस प्रकार का आचरण करते हैं, वे ईश्वर के राज्य के अधिकारी नहीं होंगे। परन्तु आत्मा का फल यह है - प्रेम, आनन्द, शांति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, ईमानदारी, सौम्यता और संयम । इनके विरुद्ध कोई विधि नहीं है। जो लोग येसु मसीह के हैं, उन्होंने वासनाओं तथा अभिलाषाओं सहित अपने शरीर को क्रूस पर चढ़ा दिया है। यदि हमें आत्मा द्वारा जीवन प्राप्त हो गया है, तो हम आत्मा के अनुरूप जीवन बितायें।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! जो तेरा अनुसरण करता है, उसे जीवन की ज्योति प्राप्त होगी।
1. धन्य है वह मनुष्य, जो दुष्टों की सलाह नहीं मानता, जो पापियों के मार्ग पर नहीं चलता और अधर्मियों के साथ नहीं बैठता, जो प्रभु का नियम हृदय से चाहता और रात-दिन उसका मनन करता है
2. वह उस वृक्ष के सदृश है, जो जलस्रोत के पास लगाया गया है, जो समय पर फल देता और जिसके पत्ते मुरझाते नहीं। वह मनुष्य अपने सब कामों में सफल हो जाता है
3. दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, नहीं होते, वे तो पवन द्वारा छितरायी हुई भूसी के सदृश हैं। प्रभु धर्मियों के मार्ग की रक्षा करता है, किन्तु दुष्टों का मार्ग विनाश की ओर ले जाता है।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मेरी भेड़ें मेरी आवाज पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।" अल्लेलूया !
प्रभु ने कहा, "ऐ फरीसियो ! धिक्कार तुम लोगों को ! क्योंकि तुम पुदीने, रास्ने और हर प्रकार के साग का दशमांश तो देते हो; लेकिन न्याय और ईश्वर के प्रति प्रेम की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना, तुम्हारे लिए उचित था। ऐ फरीसियो, धिक्कार तुम लोगों को ! क्योंकि तुम सभागृहों में प्रथम आसन और बाजारों में प्रणाम चाहते हो । धिक्कार तुम लोगों को ! क्योंकि तुम उन कब्रों के समान हो, जो दीख नहीं पड़तीं और जिन पर लोग अनजाने ही चलते-फिरते हैं।" इस पर एक शास्त्री ने येसु से कहा, "गुरुवर ! ऐसी बातें कह कर आप हमारा भी अपमान करते हैं।" येसु ने उत्तर दिया, "ऐ शास्त्रियो, धिक्कार तुम लोगों को भी ! क्योंकि तुम मनुष्यों पर बहुत-से भारी बोझ लादते हो और स्वयं उन्हें उठाने के लिए अपनी एक उँगली भी नहीं लगाते ।"
प्रभु का सुसमाचार।