वर्ष का इकतीसवाँ सप्ताह, सोमवार - वर्ष 2

📕पहला पाठ

फिलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:1-4

"आप एकमत हो जायें और इस प्रकार मेरा आनन्द परिपूर्ण बना दें।"

यदि आप लोगों के लिए मसीह के नाम पर निवेदन तथा प्रेमपूर्ण, अनुरोध कुछ महत्त्व रखता हो और आत्मा में सहभागिता हार्दिक अनुराग तथा सहानुभूति का कुछ अर्थ हो, तो आप लोग एकचित्त, एकहृदय तथा एकमत हो कर प्रेम के सूत्र में बँध जायें और इस प्रकार मेरा आनन्द परिपूर्ण बना दें। आप दलबन्दी तथा मिथ्याभिमान से दूर रहें। हर व्यक्ति नम्रतापूर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। कोई भी केवल अपने हित का नहीं बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन : स्तोत्र 130:1-3

अनुवाक्य : हे प्रभु! मेरी आत्मा को शांति में सुरक्षित रखने की कृपा कर।

1. हे प्रभु! मेरे हृदय में अहंकार नहीं है। मैं महत्त्वाकांक्षी नहीं हूँ। मैं न तो बड़ी-बड़ी योजनाओं के फेर में पड़ा और न ऐसे कार्यों की कल्पना की, जो मेरी शक्ति से परे हैं।

2. मैं माँ की गोद में सोये हुए दूध छुड़ाये बच्चे की भाँति तेरे सामने शांत और मौन रहता हूँ।

3. हे इस्राएल! प्रभु पर भरोसा रखो, अभी और अनन्तकाल तक।

📒जयघोष

अल्लेलूया! प्रभु कहते हैं, "यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे और सत्य को पहचान जाओगे।” अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 14:12-14

"अपने मित्रों को नहीं, बल्कि कंगालों और लूलों को बुलाओ।”

फिर येसु ने अपने निमंत्रण देने वाले से कहा, "जब तुम दोपहर या शाम का भोज दो, तो न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें निमंत्रण दे कर बदला चुका दें। पर जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लँगड़ों और अंधों को बुलाओ। तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरुत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।”

प्रभु का सुसमाचार।