प्रिय भाइयो! आप लोग सदा मेरी बात मानते रहें। अब मैं आप लोगों से दूर हूँ, इसलिए जिस समय मैं आपके साथ था, उस से कम नहीं बल्कि और भी अधिक उत्साह से, आप लोग डरते-काँपते हुए अपनी मुक्ति के कार्य में लगे रहिए। ईश्वर ही अपना प्रेमपूर्ण उद्देश्य पूरा करने के लिए आप लोगों में सदिच्छा भी उत्पन्न करता और उसके अनुसार कार्य करने का बल भी प्रदान करता है। आप लोग बिना भुनभुनाये और बहस किये अपने सब कर्त्तव्य पूरा करें, जिससे आप निष्कपट और निर्दोष बने रहें और इस कुटिल एवं पथभ्रष्ट पीढ़ी में ईश्वर की सच्ची सन्तान हो कर इस में आकाश के तारों की तरह चमकें और जीवन का शब्द प्रदर्शित करते रहें। इस प्रकार मैं मसीह के आगमन के दिन इस बात पर गौरव कर सकूँगा कि मेरी दौड़-धूप और मेरा परिश्रम व्यर्थ नहीं हुआ। यदि मुझे आपके विश्वासरूपी यज्ञ और धर्मसेवा में अपना रक्त भी बहाना पड़ेगा, तो मैं आनन्दित होऊँगा और आप सबों के साथ आनन्द मनाऊँगा। आप भी इसी कारण आनन्दित हों और मेरे साथ आनन्द मनायें।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु! मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है।
1. प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है, तो मैं किस से डरूँ? प्रभु मेरे जीवन की रक्षा करता है, तो मैं किस से भयभीत होऊँ?
2. मैं प्रभु से यही प्रार्थना करता रहा कि मैं जीवन भर प्रभु के घर में निवास करूँ और प्रभु की मधुर छत्रच्छाया में रह कर उसके मंदिर में मनन करूँ।
3. मुझे विश्वास है कि मैं इस जीवन में प्रभु की भलाई को देख पाऊँगा। प्रभु पर भरोसा रखो, दृढ़ रहो और प्रभु पर भरोसा रखो।
अल्लेलूया! यदि मसीह के नाम के कारण आप लोगों का अपमान किया जाये, तो अपने को धन्य समझिए, क्योंकि ईश्वर का महिमामय आत्मा आप पर छाया रहता है। अल्लेलूया!
येसु के साथ-साथ एक विशाल जनसमूह चल रहा था। उन्होंने मुड़ कर लोगों से कहा, "यदि कोई मेरे पास आये और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई-बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर न रखे, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता। जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।” "तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर खर्च का हिसाब न लगाये और यह न देखे कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी मेरे पास है? कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह पूरा न कर सके और देखने वाले यह कह कर उसकी हँसी उड़ाने लगें, 'इस मनुष्य ने निर्माण कार्य प्रारंभ तो किया, किन्तु यह उसे पूरा नहीं कर सका।" "अथवा कौन राजा ऐसा होगा, जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो और पहले बैठ कर यह विचार न करें कि जो बीस हजार की फौज के साथ मुझ पर चढ़ा आ रहा है, क्या मैं दस हजार की फौज से उसका सामना कर सकता हूँ? यदि वह सामना नहीं कर सकता, तो जब तक दूसरा राजा दूर है, वह राजदूतों को भेज कर संधि के लिए निवेदन करेगा।" "इसी तरह तुम में से जो अपना सब कुछ नहीं त्याग देता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।”
प्रभु का सुसमाचार।