भाइयो! आप सब मिल कर मेरा अनुसरण कीजिए। मैंने आप लोगों को एक नमूना दिया- इसके अनुसार चलने वालों पर ध्यान देते रहिए। क्योंकि जैसा कि मैं आप से बार-बार कह चुका हूँ और अब रोते हुए कहता हूँ, बहुत-से लोग ऐसा आचरण करते हैं कि मसीह के क्रूस के शत्रु बन जाते हैं। उनका सर्वनाश निश्चित है। वे भोजन को अपना ईश्वर बना लेते हैं और ऐसी बातों पर गौरव करते हैं, जिन पर लज्जा करनी चाहिए। उनका मन संसार की चीजों में लगा रहता है। हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले मुक्तिदाता प्रभु येसु मसीह की राह देखते रहते हैं। वह जिस शक्ति द्वारा सब कुछ अपने अधीन कर सकते हैं, उसी के द्वारा हमारे तुच्छ शरीर का रूपान्तरण करेंगे और उसे अपने महिमामय शरीर के अनुरूप बना देंगे। इसलिए, हे मेरे प्रिय भाइयो! प्रभु में इस तरह दृढ़ रहिए। प्यारे भाइयो! मैं आप लोगों को बहुत प्यार करता हूँ; आप मेरे आनन्द और मेरे मुकुट हैं।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हम आनन्दित हो कर ईश्वर के मंदिर चलें।
1. मुझे यह सुन कर कितना आनन्द हुआ "आओ, हम ईश्वर के मंदिर चलें।" हे येरुसालेम! अब हम पहुँचे हैं, हमने तेरे फाटकों में प्रवेश किया है।
2. यहाँ इस्राएल के वंश, प्रभु के वंश आते हैं। वे ईश्वर का स्तुतिगान करने आते हैं जैसा कि इस्राएल को आदेश मिला है। यहाँ न्याय के आसन संस्थापित हैं, और दाऊद के वंश का सिंहासन भी।
अल्लेलूया! जो मसीह की आज्ञाओं का पालन करता है, ईश्वर का प्रेम उस में परिपूर्णता तक पहुँचता है। अल्लेलूया!
येसु ने अपने शिष्यों से यह कहा, "किसी धनवान का एक कारिन्दा था। लोगों ने उसके पास जा कर कारिन्दा पर दोष लगाया कि वह आपकी सम्पत्ति उड़ा रहा है। इस पर स्वामी ने उसे बुला कर कहा, 'मैं तुम्हारे विषय में क्या सुन रहा हूँ? अपनी कारिन्दगरी का हिसाब दो, क्योंकि तुम अब से कारिन्दा नहीं रह सकते। ' तब कारिन्दा ने मन-ही-मन यह कहा, 'मैं क्या करूँ? मेरा स्वामी मुझे कारिन्दगरी से हटा रहा है। मिट्टी खोदने का मुझमें बल नहीं, भीख माँगने में मुझे लज्जा आती है। हाँ, अब समझ में आया कि मुझे क्या करना चाहिए, जिससे कारिन्दगरी से हटाये जाने के बाद लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें। ' उसने अपने मालिक के कर्जदारों को एक-एक करके बुला कर पहले से कहा, 'तुम पर मेरे स्वामी का कितना ऋण है? ' उसने उत्तर दिया, 'सौ मन तेल'। कारिन्दा ने कहा, "अपना रुक्का लो और बैठ कर जल्दी पचास लिख दो। ' फिर उसने दूसरे से पूछा, 'तुम पर कितना ऋण है? ' उसने कहा, 'सौ मन गेहूँ'। कारिन्दा ने उस से कहा, 'अपना रुक्का लो और अस्सी लिख दो। ' स्वामी ने बेईमान कारिन्दा को सराहा कि उसने चतुराई से काम किया है। क्योंकि इस संसार की सन्तान आपसी लेन-देन में ज्योति की सन्तान से अधिक चतुर है।"
प्रभु का सुसमाचार।