वर्ष का बत्तीसवाँ सप्ताह, बुधवार - वर्ष 1

📕पहला पाठ

तीतुस के नाम सन्त पौलुस का पत्र

"हम भटके हुए थे, किन्तु मुक्तिदाता की कृपालुता ने हम को बचाया।”

सबों को याद दिलाओ कि शासकों तथा अधिकारियों के अधीन रहना और उनकी आज्ञाओं का पालन करना उनका कर्त्तव्य है। वे हर भले कार्य के लिए तत्पर रहें, किसी की निन्दा न करें, झगड़ालू नहीं बल्कि सहनशील हों और सब लोगों के साथ नम्रतापूर्वक व्यवहार करें। क्योंकि हम भी तो पहले नासमझ, अवज्ञाकारी, भटके हुए, हर प्रकार की वासनाओं और लालसाओं के वशीभूत थे। हम विद्वेष और ईर्ष्या में जीवन बिताते थे। हम घृणित थे और एक दूसरे से बैर करते थे। किन्तु हमारे मुक्तिदाता ईश्वर की कृपालुता तथा मनुष्यों के प्रति उसका प्रेम पृथ्वी पर प्रकट हो गया। उसने नवजीवन के जल और पवित्र आत्मा की संजीवन शक्ति द्वारा हम को बचाया। उसने हमारे किसी पुण्य कर्म के कारण ऐसा नहीं किया, बल्कि इसलिए कि वह दयालु है। उसने हमारे मुक्तिदाता येसु मसीह द्वारा हमें पवित्र आत्मा का प्रचुर वरदान दे दिया, जिससे हम उसकी कृपा की सहायता से धर्मी बन कर अनन्त जीवन के उत्तराधिकारी बनने की आशा कर सकें।

📖भजन : स्तोत्र 22:1-6

अनुवाक्य : प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं ।

1. प्रभु मेरा चरवाहा है। मुझे किसी बात की कमी नहीं। वह मुझे हरे मैदानों में चराता है। वह मुझे विश्राम के लिए जल के निकट ले जा कर मुझ में नवजीवन का संचार करता है। वह अपने नाम का सच्चा है, वह मुझे धर्ममार्ग पर ले चलता है।

2. चाहे अँधेरी घाटी से हो कर जाना ही क्यों न पड़े, मुझे किसी अनिष्ट की आशंका नहीं; क्योंकि तू मेरे साथ रहता है। तेरी लाठी, तेरे डण्डे पर मुझे भरोसा है।

3. तू मेरे शत्रुओं के देखते-देखते मेरे लिए खाने की मेज सजाता है। तू मेरे सिर पर तेल का विलेपन करता है, तू मेरा प्याला लबालब भर देता है।

4. इस प्रकार तेरी भलाई और तेरी कृपा से मैं जीवन भर घिरा रहता हूँ। प्रभु का मंदिर ही मेरा घर है, मैं उस में अनन्तकाल तक निवास करूँगा।

📒जयघोष

अल्लेलूया! आप लोग सब बातों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें, क्योंकि येसु मसीह के अनुसार आप लोगों के विषय में ईश्वर की इच्छा यही है। अल्लेलूया!

📙सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 17:11-19

"इस परदेशी को छोड़ कर और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे?"

येसु येरुसालेम की यात्रा करते हुए समारिया और गलीलिया के सीमा क्षेत्रों से हो कर जा रहे थे। किसी गाँव में प्रवेश करते समय उन्हें दस कोढ़ी मिले। वे दूर खड़े हो कर ऊँचे स्वर से पुकारने लगे, "हे येसु! हे गुरु! हम पर दया कीजिए।” येसु ने उन्हें देख कर कहा, "जाओ और अपने को याजकों को दिखलाओ", और ऐसा हुआ कि वे रास्ते में ही नीरोग हो गये। तब उन में से एक यह देख कर कि मैं नीरोग हो गया हूँ, ऊँचे स्वर से ईश्वर की स्तुति करते हुए लौटा। वह येसु को धन्यवाद देते हुए उनके चरणों पर मुँह के बल गिर पड़ा, और वह समारी था। येसु ने कहा, "क्या दसों नीरोग नहीं हुए? तो बाकी नौ कहाँ हैं? क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई नहीं मिला, जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे? " तब उन्होंने उस से कहा, "उठो, जाओ। तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है।"

प्रभु का सुसमाचार।