पुरोहिती तथा धर्मसंघी प्रशिक्षणार्थियों से संत पापा की मुलाकात

7 जुलाई 2013

Translated by Fr. Ronald Vaughan. Source:Zenit News


7 जुलाई 2013 को सन्त पापा फ़्रांसिस ने पौलुस छ्ठवें दर्शन कक्ष में दुनिया के 66 देशों से आए हुए करीब 6000 पुरोहिती तथा धर्मसंघी प्रशिक्षणार्थियों से मुलाकात की।
सन्त पापा ने याद किया कि सेमिनरी में प्रशिक्षण पाने वाले एक युवक ने उनसे एक बार कहा कि मैं दस साल येसु की सेवा करना चाहता हूँ और उसके बाद दूसरा जीवन शुरू करूँगा। इस पर टिप्पणी करते हुए सन्त पापा ने कहा, “हम एक अस्थायी संस्कॄति के अधीन जीवन बिता रहे हैं। मैं प्यार खत्म होने तक विवाहित रहूँगा, मैं एक धर्मबहन या धर्मसंघी हूँ पर मुझे मालूम नहीं कि आगे क्या होगा। यह सब येसु के साथ नहीं चलता।“ संत पापा ने लोगों को इस प्रकार की संस्कृति का तिरस्कार करने की चुनौती दी। उन्होंने सांसारिक प्रलोभनों पर विजय पाने की चुनौती दी और कहा, “मैं ईमानदारी से कहता हूँ कि जब मैं किसी पुरोहित या धर्मबहन को किसी आधुनिकतम गाडी के साथ देखता हूँ तो मुझे दुख होता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। गाड़ी तो ज़रूरी है, पर एक साधारण गाड़ी। अगर आप को अच्छी गाड़ी की इच्छा है तो सोचिए कि इस दुनिया में ऐसे कितने बच्चे हैं जो भूख के कारण मर जाते हैं। हमारी खुशी कुछ चीज़ों को पाने से नहीं, बल्कि दूसरों के साथ संबन्धों से, प्यार किए जाने तथा समझे जाने से उत्पन्न होती है। खुशी मिलन की कृतज्ञता से आती है – प्रभु से मिलने की खुशी, ईश्वर के प्यार के अनुभव करने की खुशी।“
“जब कोई किसी दुखी पुरोहिती तथा धर्मसंघी प्रशिक्षणार्थी से मिलता है, उसे लगता है कि कुछ ठीक नहीं है, क्योंकि उसमें प्रभु की खुशी का अभाव है। सन्त तेरेसा ने कहा है कि एक सन्त जिसका चेहरा दुखी है, वह एक दुखी सन्त है। उसकी खुशी के अभाव का कारण असन्तोष है।“
सन्त पापा ने कहा कि जो धर्मसंघीय जीवन बिताते हैं, उन्हें ब्रह्मचारी तथा जननक्षम बनना चाहिए, उन्हें समुदाय के पिता या माता बनना चाहिए।
सन्त पापा ने उन्हें पापस्वीकार सुनने वाले पुरोहित के सामने पारदर्शी बनने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “पुरोहित के सामने ’हे धर्मपिता, मैंने पाप किया है’ बोलने से नहीं डरना चाहिए। क्योंकि येसु सच्चाई जानते हैं और वे आपको हमेशा क्षमा करते हैं, लेकिन वे चाहते हैं आप उन्हें वह सब बतायें जिन्हें वे पहले से ही जानते हैं। यह दुख की बात है कि कोई पुरोहित या धर्मबहन पाप-स्वीकार में कुछ छिपाते हैं।“
सन्त पापा ने सामुदायिक जीवन पर भी जोर दिया और कहा, “सेमिनरी न होने से बेहत्तर है कि बेकार सेमिनरी हो क्योंकि सामुदायिक जीवन ज़रूरी है। चुगली करने से समुदाय को बहुत हानि होती है। पुरोहितों तथा धर्मबहनों के बीच यह साधारण बात है। यह ठीक नहीं है और मैं इस के लिए शर्मिन्दा हूँ। मैं शर्मिन्दा हूँ जब लोग यह बोल कर बात-चीत शुरू करते हैं कि क्या आपने इस के बारे में यह सुना या उस के बारे में वह सुना। ऐसा समुदाय नरक है। अगर किसी के साथ मेरी कोई समस्या है तो उसी से मुझे सीधी बात करनी चाहिए, न कि उसके पीछे।“
“एक बार किसी धर्म बहन ने मुझ से कहा कि मैंने प्रभु के सामने प्रतिज्ञा की है कि मैं किसी की चुगली नहीं करूँगी और अगर ज़रूरी हो तो अधिकारी से बात करूँगी, अन्यों से नहीं जो उस विषय में कुछ नहीं कर सकते।
सन्त पापा ने कहा, “हमें सुसमाचार सुनाना है, और येसु से मिलना भी है। कोलकत्ता की मदर तेरेसा कभी ड़रती नहीं थी क्योंकि वे रोज दो घंटे घुटने टेकती थी।“
“मैं एक ऐसी कलीसिया की कामना करता हूँ जो मिशनरी हो, आरामदेह न हो। मिशनरी लोग येसु के मार्ग में वफ़ादार रह कर अपना सहयोग देते हैं।“
“प्रतिकूल परिस्थितिग्रस्त लोगों से मिलने के लिए सक्षम बनिए। प्रवाह के विरुद्ध तैरने से न ड़रें, रोज माला विनती करें, प्रेरित सन्त योहन के समान अपने घर में कुँवारी मरियम को रखिए और मेरे लिए भी प्रार्थना कीजिए क्योंकि मैं एक निर्बल पापी हूँ, लेकिन फ़िर भी हमें आगे बढ़ने का साहस रखना चाहिए।“


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