इश्वर की सेविका रानी मरिया

जन्म और बाल्यकाल

रानी मरिया का जन्म 29 जनवरी 1954 को वट्टत्तिल परिवार के पैली और एलीस्वा से हुआ। वह एक कृषक परिवार था। उनका बपतिस्मा पुल्लुवज़ी के संत थॉमस गिरजा घर में 5 फरवरी 1954 को हुआ और उनका नाम मरियम रखा गया। उनके मामा श्री वर्की और दादी मरियाम्मा उनके धर्म माता-पिता थे। उनके माता पिता ने उन्हें और अन्य छ: बच्चों को ख्रीस्तीय विश्वास तथा परोपकार की शिक्षा दी। स्टीफन और वर्गीस उनके भाई थे तथा आनी, सेलिन और लूसी उनकी बहनें। इनमें से सेलीन ने बाद में रानी मरिया के आदर्श जीवन से प्रभावित होकर सेल्मी पॉल नाम स्वीकार कर फ्रांसिस्कन क्लारिस्ट धर्मसमाज में प्रवेश किया।

Parents of Rani Maria मेरीकुन्जु (छोटी मेरी, जैसे लोग उन्हें प्यार से बुलाते थे) ने 30 अप्रैल 1966 को पहला परम प्रसाद तथा दृढ़ीकरण स्वीकार किया। बचपन से ही उनके माता-पिता और दादा-दादी ने उन्हें प्रार्थना के महत्व के बारे में प्रशिक्षण दिया। छोटी उम्र में ही वे दैनिक मिस्सा बलिदान तथा लोकप्रिय भक्ति-कार्यों में नियमित रीति से भाग लेती थी। उन्होंने धर्मशिक्षा की कक्षाओं में दिलचस्पी से भाग लिया और जो शिक्षा उन्हें प्राप्त हुयी उसे व्यवहार में लाने की हर संभव कोशिश की।
उनके भाई स्टीफन के शब्दों में, “वे बहुत कम बात करती थी और वे बहुत ही साधे कपडों से खुश रहती थी। उन्हें किसी भी प्रकार का आभूषण पहनने की इच्छा नहीं थी। उन्होंने कभी भी ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे दूसरों को चोट पहुँचे। ऐसा कुछ हो जाने पर वे अफसोस जताती थीं।” उनकी माताजी का कहना है – “वह दूसरे बच्चों से बिलकुल भिन्न थी और बच्चों में सब से आज्ञाकारी थी”। उनके माता-पिता उन पर गर्व करते थे।
उनकी शिक्षा ’कलरी’ (केरल का परम्परागत प्राथमिक शिक्षा-शाला) में शुरू हुआ जहाँ उन्होंने दो साल तक पढ़ाई की। तत्पश्चत् वे पुल्लुवज़ी की सरकारी प्राथमिक शाला में भेजी गयीं। स्कुल में उनका नाम पी.वी.मेरी रखा गया। प्राथमिक शिक्षा के बाद की पढ़ाई पुल्लुवज़ि के जयकेरल स्कूल में हुयी। पढ़ाई के बीच उन्होंने पिताजी को खेत में और माताजी को घर में मदद करने के लिए समय निकाला। घर के नौकरों प्रति उनका व्यवहार बहुत ही संवेदनशील रहा और उनके साथ बात करने के लिए वे समय निकालती थी।
उच्चतर माध्यमिक शिक्षा में अच्छे परिणाम लाने के उद्देश्य से उनके माता-पिता ने उन्हें त्रिप्पूनित्तुरा के सेंट जोसेफ स्कूल में भेजा। वहाँ छात्रावास चलाने वाली धर्मबहनों के मार्गदर्शन में उनको आध्यात्मिक तथा बौद्धिक विकास का सुअवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने सफलता के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की।


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